रानी पद्मावती से कमतर नहीं है 'हाड़ी रानी' का शौर्य, पति को भिजवा दिया था अपना ही शीश
By आदित्य द्विवेदी | Published: January 26, 2018 03:56 PM2018-01-26T15:56:51+5:302018-01-26T16:16:12+5:30
शौर्य और बलिदान के ऐसे अप्रतिम उदाहरण बहुत कम मिलते हैं। क्यों हाड़ी रानी ने शादी के सात दिनों बाद ही अपना सिर काटकर रणभूमि में पति के पास भिजवा दिया था?
बात 16वीं शताब्दी की है। राजस्थान के मेवाड़ में राज सिंह का शासन था। सुलुम्बर के राव चूड़ावत सिंह उनके सामन्त थे। राव चूड़ावत की राजपुताना शौर्य की इलाके में मिसाल दी जाती थी। चूड़ावत सिंह का विवाह बूंदी के हाड़ा शासक की पुत्री से हुआ था। जिन्हें 'हाड़ी रानी' के नाम से जानते हैं। वही हाड़ी रानी, जिनके शादी के महावर का रंग भी नहीं उतरा था और अपना खून से लथपथ शीश रणभूमि में अपने पति के पास भिजवा दिया था। जानें, लोककथाओं में प्रचलित हाड़ी रानी के अप्रतिम बलिदान की कहानी।
राव चूड़ावत अपनी नव विवाहिता पत्नी 'हाड़ी रानी' के साथ आनंद जिंदगी जी रहे थे। हाड़ी रानी बहुत खूबसूरत थी। राव चूड़ावत एक पल को भी उन्हें अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहते थे। विवाह के सात दिन ही बीते थे कि एक सुबह राजा राज सिंह का दूत शार्दूल सिंह आ पहुंचा। उसने राव चूड़ावत को राजा का एक पत्र दिया जिसमें शीघ्र मदद की गुहार लगाई गई थी। उस पत्र का आशय यह था कि औरगंजेब की सेना ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया है। राजा राज सिंह की सेना उनसे लोहा ले रही है। लेकिन खबर मिली है कि औरंगजेब की मदद के लिए एक और टुकड़ी पीछे से आ रही है। राव चूड़ावत के ऊपर उस टुकड़ी को उलझाए रखने की जिम्मेदारी दी गई थी। पत्र पढ़ते ही राव चूड़ावत को रोएं फड़कने लगे। राज्य की सेवा के लिए वो तत्पर हो उठे। लेकिन सामने नवविवाहिता हाड़ी रानी का चेहरा देखकर राव का दिल बैठ गया।
राव चूड़ावत सोचने लगे कि अभी तो हाड़ी रानी के महावर का रंग भी नहीं छूटा। मरने से मुझे डर नहीं लगता लेकिन अगर रणभूमि में मुझे कुछ हो गया तो रानी का क्या होगा। पशोपेश में फंसे राव चूड़ावत ने फौरन अपनी सेना को कूच का करने का आदेश दिया। अब वह हाड़ी रानी के पास विदाई के लिए पहुंचे। केसरिया बाना पहने युद्ध वेष में सजे पति को देखकर हाड़ी रानी को समझते देर ना लगी। उन्होंने दिल कड़ा करते हुए आरती की ताल सजाई और राव चूड़ावत को युद्ध में जाने की अनुमति दे दी। विदा होते समय राव ने हाड़ी रानी से पूछा, अगर युद्ध में मुझे कुछ हो गया तो तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगी? राव का यह सवाल हाड़ी रानी के मन में घर कर गया। राव रणभूमि में पहुंच गए और औरंगजेब की सेना की एक टुकड़ी से लोहा लेने लगे।
राव चूड़ावत के जाने के बाद रानी महल में उनकी याद में खोई उनकी कुशलता और विजय की कामना करती रहती थी। राव ने जाने के दूसरे ही दिन अपने दूत को भेजकर रानी के नाम एक चिट्ठी भिजवाई जिसमें लिखा था कि मैंने यहां दुश्मनों को मजा चखा दिया है। लेकिन युद्ध के वक्त मुझे तुम्हारी याद आती है। कहीं युद्ध में कुछ हो गया तो तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगी। हाड़ी रानी ने जवाब दिया कि आप हमेशा मेरे स्वामी रहेंगे। मैं राजपुतानी हूं और आखिरी सांस तक आप मेरे पति रहेंगे।
अगले दिन फिर एक दूत रानी के पास वही सवाल लेकर आया। हाड़ी रानी को समझ आ गया कि पत्नी के मोह में राव चूड़ावत अपने कर्तव्य से विमुख हो रहे हैं। उन्होंने अपना जी कड़ा करके दूत को वहीं बैठने को कहा और एक चिट्ठी लिखी। इसके बाद उन्होंने दूत से कहा कि मैं एक अंतिम निशानी दे रही हूं जिसे राव को इस चिट्ठी के साथ सौंप देना। हाड़ी रानी ने अपनी कटार निकाली और अगले ही पल अपनी शीश धड़ से अलग कर दिया। दूत उस शीश को लेकर रणभूमि पहुंचा जिसे देखकर राव चूड़ावत अवाक् रह गए। उन्होंने चिट्ठी पढ़ी तो आंखों से अश्रुधारा बह चली। चिट्ठी में लिखा था कि आप मेरे इसी चेहरे के मोह में युद्ध से विमुख हो रहे हैं। मैंने इसी चेहरा ही भिजवा दिया। पत्नी का कटा शीश देखकर उनका जीवन के प्रति मोह जाता रहा। राव चूड़ावत युद्ध में शौर्य से लड़े और विजय प्राप्त की।
इस वक्त पूरे देश में रानी पद्मावती के जौहर की चर्चा जोरो पर है। ऐसे में हाड़ी रानी के बलिदान को भी कमतर नहीं आंका जाना चाहिए। राजस्थान की धरती ऐसी वीरता और बलिदान के किस्सों से भरी पड़ी है।
*यह स्टोरी राजस्थान के मेवाड़ में प्रचलित लोक कथाओं के आधार पर लिखी गई है। हाड़ी रानी के संबंध कई वेबसाइट्स और यूट्यूब पर भी तमाम कहानियां और लोकगीत उपलब्ध हैं।