मुंबई की चुनावी राजनीति-3: शिवसेना के साथ-साथ समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीस के उभार की कहानी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 14, 2019 01:29 PM2019-09-14T13:29:10+5:302019-09-14T13:29:10+5:30

जार्ज के नेतृत्व में मुंबई में समाजवादियों का भी प्रभाव क्षेत्र बढ़ा. जार्ज 1949 में ही नौकरी की तलाश में बंबई (मुंबई) आ गए थे और जल्दी ही उन्होंने देश की व्यावसायिक राजधानी में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी.

Mumbai's electoral politics-3: The story of the rise of socialist leader George Fernandes along with the Shiv Sena | मुंबई की चुनावी राजनीति-3: शिवसेना के साथ-साथ समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीस के उभार की कहानी

मुंबई की चुनावी राजनीति-3: शिवसेना के साथ-साथ समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीस के उभार की कहानी

हर्षवर्धन आर्य

साठ के दशक में मुंबई में जब बालासाहब ठाकरे उभर रहे थे, उसी वक्त समाजवादी नेता जार्ज फर्नाडीस का प्रभाव क्षेत्र भी बढ़ रहा था. कांग्रेस के पास एस.के. पाटिल और मुंबई प्रांत के मुख्यमंत्री रह चुके मोरारजी देसाई जैसे प्रभावशाली एवं लोकप्रिय चेहरे थे. मोरारजी भाई के कारण मुंबई का मजबूत गुजराती वोट बैंक कांग्रेस के साथ खड़ा था. एस.के. पाटिल को उस वक्त बंबई (अब मुंबई) का बेताज बादशाह  कहा जाता था.  मोरारजी भाई तथा पाटिल जैसे चेहरों के भरोसे हर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा. श्रीपाद अमृत डांगे ने श्रमिकों तथा सवर्ण मराठी भाषियों के बीच भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का वोट बैंक तैयार किया जिसकी बदौलत वामपंथी मुंबई में अस्सी के दशक तक बड़ी ताकत रहे.

उधर, जार्ज के नेतृत्व में मुंबई में समाजवादियों का भी प्रभाव क्षेत्र बढ़ा. जार्ज 1949 में ही नौकरी की तलाश में बंबई (मुंबई) आ गए थे और जल्दी ही उन्होंने देश की व्यावसायिक राजधानी में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी. जार्ज ने कपड़ा मिल तथा बंदरगाह में काम करनेवाले श्रमिकों, ऑटो तथा टैक्सी चालकों, हाथठेलों पर व्यापार करनेवाले मेहनतकश लोगों पर ध्यान  केंद्रित किया और देखते ही देखते मुंबई में बड़ी राजनीतिक ताकत बन गए. 

1960 और 1970-75 के दौर में मुंबई में विधानसभा चुनावों  में कांग्रेस को चुनौती देने के लिए तीन ताकतें मजबूती से उभर चुकी थीं. इनमें श्रीपाद अमृत डांगे के नेतृत्व में कम्युनिस्ट, जार्ज के नेतृत्व समाजवादी तथा बालासाहब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना का समावेश था. ‘मराठी अस्मिता’ के नाम पर संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन से जुड़ा सामान्य मराठी माणुस का बड़ा हिस्सा शिवसेना के पास जुड़ने लगा था मगर सत्तर के दशक तक बालासाहब का लक्ष्य महाराष्ट्र विधानसभा के बजाय बृहन मुंबई महानगर पालिका पर कब्जा करने का था.

दूसरी ओर जार्ज ने हिंदी-मराठी की राजनीति किए बिना ही मुंबई के निम्न मध्यम वर्गीय तथा रोज कमाकर घर चलाने वाले गरीब तबकों के बीच अपनी पैठ बना ली थी. टैक्सी ऑटोचालक और फेरी वाले उनका वोट बैंट बने. इनमें से अधिकांश उत्तर भारतीय थे. इस तरह बालासाहब ने जहां खुलकर मराठी वोट बैंक तैयार किया, वहीं खामोशी के साथ  श्रमिकों को न्याय दिलाने के नाम पर जार्ज ने गरीब हिंदी भाषियों के बीच अपनी पैठ बना ली. 1967 के महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में मुंबई में वामपंथियों के साथ-साथ समाजवादियों को भी अच्छी सफलता मिली.

जार्ज की बढ़ती ताकत के कारण शिवसेना भी सत्तर के दशक में कुछ वक्त के लिए पृष्ठभूमि में रही लेकिन एस.के. पाटिल के नेतृत्व में कांग्रेस 1967 के लोकसभा चुनाव में अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई. कांग्रेस ने जार्ज के प्रभाव को कम  आंका. दक्षिण बंबई से उस वक्त के मुंबई के बेताज बादशाह के नाम से मशहूर एस.के. पाटिल को जार्ज फर्नाडीस ने 48 प्र.श. से ज्यादा वोट लेकर धूल चटा दी. इसके बाद अपनी राजनीति बिहार ले जाने के बावजूद एक दशक तक मुंबई पर जॉर्ज का एकछत्र राज रहा. अस्सी के दशक में शिवसेना के कदम पूरी तरह जम जाने तक जॉर्ज की ही तूती मुंबई में बोलती रही. बहरहाल इस झटके के बावजूद मुंबई की राजनीति पर कांग्रेस का असर बहुत ज्यादा कमजोर नहीं हुआ.

Web Title: Mumbai's electoral politics-3: The story of the rise of socialist leader George Fernandes along with the Shiv Sena

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