Lockdown: महाराष्ट्र में ढाई लाख प्रवासी गन्ना मजदूरों के सामने रोटी का संकट, खेतों में बद से बदतर हालत
By शिरीष खरे | Published: April 3, 2020 02:39 PM2020-04-03T14:39:22+5:302020-04-03T14:40:12+5:30
सांगली जिले में आष्टा के नजदीक एक खेत में फंसे मजदूर परिवार की मधु जाधव (परिवर्तित नाम) बताती हैं कि दो दिन पहले वे अपने बच्चे के लिए दूध खरीदने गांव की दुकान गईं तो वहां कुछ लोगों ने उन्हें खेत में ही रहने की सलाह दी.
लॉकडाउन के कारण महाराष्ट्र के अलग-अलग जगहों से गन्ना काटने वाले प्रवासी मजदूरों के अपने घरों से दूर दूसरे जिलों के विभिन्न गांवों के खेतों में अनाज खत्म हो गया है. राज्य के श्रम संगठनों की मानें तो गन्ने के खेतों में अपनी झोपड़ियां बनाकर रह रहे ऐसे प्रवासी गन्ना मजदूरों की संख्या ढाई लाख तक हो सकती है. सबसे बुरी स्थिति मराठवाड़ा की है.
इसका कारण यह है कि यह इलाका 'शुगर बेल्ट' के नाम से जाना जाता है और राज्य भर से अधिकतर गन्ना काटने वाले मजदूर इसी इलाके में एक जिले से दूसरे जिले में प्रवास करते हैं. लेकिन, लॉकडाउन के बाद हर जिले की सीमाएं सील कर देने के बाद वे अपने घरों की तरफ लौट नहीं पा रहे हैं और खेतों में ही फंसे होने से उनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.
प्रवासी मजदूरों के पास आटा खत्म
खेतों में रह रहे कई प्रवासी मजदूरों ने बताया कि लॉकडाउन के बाद वे अपने घरों से कई किलोमीटर दूर गन्ने के खेतों में ही रह गए हैं और अनाज खत्म होने के बाद उनके सामने दो जून की रोटी का सवाल खड़ा हो गया है.
सोलापुर जिले के संगोला तहसील में भी कोरोना संकट के कारण इन मजदूर परिवारों के बीच भूख की समस्या गहरा गई है. संगोला तहसील के अंतर्गत नाझरे गांव के एक खेत में गन्ना काटने वाले मजदूर विनोद वाघमारे भी इन दिनों इसी संकट से गुजर रहे हैं. दिवाली के बाद उनके साथ 40 मजदूर परिवार सांगली जिले के इस्लामपुर से सोलापुर जिले के कई खेतों में गन्ना काटने के लिए आए थे.
इन प्रवासी मजदूरों का कहना है कि कई जगहों पर गन्ना कटाई का काम करीब खत्म हो चुका है और जब उनके घर लौटने के दिन आए हैं तो कोरोना विपत्ति ने उन्हें मुश्किल में डाल दिया है. पुलिस और प्रशासन ने जिलों की सीमाएं सील कर दी हैं. वे आम लोगों को एक जिले से दूसरे जिले जाने से रोक रहे हैं. इससे गन्ना काटने वाले प्रवासी मजदूरों को कोरोना संक्रमण का भय सता ही रहा है, खाने-पीने की परेशानी भी भुगतनी पड़ रही है.
मुसीबत में परिवार से मिलना है
कई प्रवासी मजदूरों का कहना है कि उनके परिवार के कुछ सदस्य जहां खेतों में फंसे हैं वहीं कुछ बड़े और बच्चे कई किलोमीटर दूर उनके अपने गांवों के घरों में रह गए हैं. प्रवासी मजदूरों के बिना वे अपने घर पर या तो अकेले रह रहे हैं या पड़ोसी और रिश्तेदारों के भरोसे हैं. इसलिए, कई प्रवासी मजदूर इस मुसीबत के समय अपने घर पहुंचकर अपने परिवार के अन्य सदस्यों से मिलना चाहते हैं.
नहीं हो रही सुनवाई
संगोला इलाके में एक महिला मजदूर बताती हैं, "हमारी जिंदगी खेतों में घिसट रही है. हम अपने घर लौटना चाहते हैं. पर, कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है. खाने का अनाज और राशन का सामान हम खेतों में अधिक मात्रा में ज्यादा दिनों तक नहीं रख सकते हैं. कुछ दिनों में वह भी खत्म हो गया है. इसलिए, भूख से मरने की नौबत आ गई है."
महाराष्ट्र के अलग-अलग जगहों में फंसे गन्ना काटने वाले मजदूर खेतों में घास-फूस की अस्थायी झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं. लेकिन, अप्रैल में गर्मी और धूप बढ़ने के कारण उनका खेतों में रह पाना मुश्किल हो रहा है. आने वाले दिनों में जब गर्मी की मार बढ़ेगी तब उन्हें पानी की कमी सहित दूसरी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
गांव में घुसने पर रोक
कई जगहों से ऐसी सूचनाएं मिल रही हैं कि कोरोना के डर से पुश्तैनी गांव के लोग उन्हें गांव में घुसने से मना कर रहे हैं. ऐसे में उन्हें राशन खरीदने में भी कठिनाई आ रही है.
सांगली जिले में आष्टा के नजदीक एक खेत में फंसे मजदूर परिवार की मधु जाधव (परिवर्तित नाम) बताती हैं कि दो दिन पहले वे अपने बच्चे के लिए दूध खरीदने गांव की दुकान गईं तो वहां कुछ लोगों ने उन्हें खेत में ही रहने की सलाह दी. उन्हें डर है कि अगली बार गांव के लोग उन्हें गांव में घुसने से ही मना न कर दें.
वहीं, खेतों में रहने वाले मजदूरों को भी कोरोना संक्रमण का डर सता रहा है. दूसरी तरफ, यदि किसी क्षेत्र में संक्रमण का खतरा बढ़ता है तो स्थानीय प्रशासन और समुदाय और अधिक सख्ती पर उतर सकता है. बता दें कि राज्य में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रभाव और पुणे व मुंबई में इसके कारण होने वाली मौतों के बाद कई गांवों ने अपनी सीमाओं पर नाकाबंदी कर दी है. यह गांव बाहरी व्यक्तियों को गांव में प्रवेश देने से मना कर रहे हैं.
बताया जा रहा है कि लॉकडाउन के बाद सबसे ज्यादा गन्ना काटने वाले मजदूर उस्मानाबाद, परभणी, वाशिम, सोलापुर, सांगली और अहमदनगर जिलों में फंसे हैं. इसके पीछे की वजह यह है कि इन जिलों में एक अनुमान के अनुसार कुल सात लाख गन्ना काटने वाले मजदूर एक जिले से दूसरी जिले में प्रवास करते हैं. लेकिन, सरकार की लॉकडाउन की अचानक घोषणा के बाद उन्हें अपने जिलों की तरफ समय रहते लौटने का मौका ही नहीं मिला और कोई नहीं जानता है कि घरबंदी की यह स्थिति कब तक रहेगी.
ऐसे में सवाल है कि यह स्थिति यदि लंबे समय तक इसी तरह बनी रही तो राज्य में जिन परिवारों के घर नहीं हैं या जो अपने घरों से दूर हैं उनके सामने आई समस्या से सरकार कैसे निपटेगी.
हालांकि, लॉकडाउन से पहले कोरोना संकट के कारण कई खेतों में गन्ना काटने का काम बंद करा दिया गया था और गन्ना काटने वाले कई प्रवासी मजदूर परिवारों को सुरक्षित उनके घरों तक पहुंचा दिया गया था. लेकिन, लाखों की संख्या में फंसे प्रवासी मजदूर अब भी खेतों से अपने घर पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं.
गन्ना मजदूर संगठन के नेता शिवाजी बांगर इस संकट से मजदूरों को निकालने के लिए लगातार पत्रकारों से बातचीत करके सूचना दे रहे हैं.
शिवाजी बांगर का भी मानना है कि राज्य में दो लाख से ज्यादा गन्ना काटने वाले मजदूर अलग-अलग ठिकानों में फंसे हैं. कई खेतों में करीब-करीब गन्ना काटने का काम खत्म हो गया है. फिर भी मजदूर घर नहीं जा सकते. इस्लामपुर जैसी जगहों पर जहां कोरोना संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा है, वहां मजदूरों से काम कराना उनकी जान को जोखिम में डालने जैसा है. उन्होंने सरकार, प्रशासन और कारखाना प्रबंधन से प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाने की मांग की है.
वहीं, कई शक्कर कारखाना प्रबंधक इस बारे में बात करने से बच रहे हैं. उनका मानना है कि कई खेतों में अब तक गन्ने की फसल खड़ी है. इसके कारण किसान, मजदूर और कारखाना प्रबंधक तीनों के सामने समस्या है. हालांकि, कुछ कारखाना प्रबंधकों ने बताया कि वे गन्ना मजदूरों के लिए रहने और खाने की व्यवस्था कर रहे हैं.
इस बीच, राज्य के सामाजिक न्याय मंत्री धनंजय मुंडे ने वक्तव्य जारी किया है. धनंजय मुंडे के मुताबिक, "राज्य सरकार ने हर एक गन्ना काटने वाले मजदूर की सुरक्षा के लिए संकल्प लिया है. हमारी ओर से कारखानों को यह निर्देश दिया गया है कि वे मजदूरों के भोजन, आवास और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का ध्यान रखें."