विश्व पर्यावरण दिवस विशेषः गढ़चिरोली जंगलों में जल क्रांति?, अनिकेत आमटे के 30 तालाबों से बदली आदिवासी गांवों की तकदीर
By फहीम ख़ान | Updated: June 4, 2025 17:20 IST2025-06-04T16:29:52+5:302025-06-04T17:20:23+5:30
विश्व पर्यावरण दिवस विशेषः प्रकृति और इंसान के बीच की डोर को फिर से जोड़ रहा है, पानी की एक बूंद से उम्मीद की एक पूरी नदी बना रहा है.

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नागपुरः पानी, जंगल और इंसान के रिश्ते को नई परिभाषा देने वाला एक अनोखा प्रयास गढ़चिरोली के घनघोर जंगलों में खामोशी से आकार ले रहा है. समाजसेवी बाबा आमटे के पोते, डॉ. प्रकाश आमटे के बेटे और लोकबिरादरी प्रकल्प के संचालक अनिकेत आमटे ने आदिवासी जीवन में बदलाव लाने के लिए जो बीज बोया, वह अब हरियाली और समृद्धि में बदल चुका है. विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर यह कहानी एक ऐसे सच्चे पर्यावरण योद्धा की है, जो प्रकृति और इंसान के बीच की डोर को फिर से जोड़ रहा है, पानी की एक बूंद से उम्मीद की एक पूरी नदी बना रहा है.
वर्ष 2016 से शुरू हुए इस उपक्रम के तहत अब तक कुल 30 तालाबों का निर्माण भामरागढ़ और अहेरी तहसीलों के दुर्गम आदिवासी गांवों में पूरा हो चुका है. इन तालाबों से न सिर्फ खेती को सालभर पानी मिलने लगा है, बल्कि मछली पालन और सब्जी उत्पादन से गांवों को स्थानीय स्तर पर रोजगार और आर्थिक आत्मनिर्भरता भी मिली है.
ग्रामीणों की भागीदारी अहम
इस परियोजना की खास बात यह है कि हर गांव से 10 से 15 प्रतिशत आर्थिक सहयोग लिया जाता है, जिससे लोग खुद इस कार्य में भागीदारी करते हैं. निर्माण से पहले गांववालों से कुछ शर्तें भी रखी जाती हैं शराबबंदी, विवादमुक्त ग्राम और जंगल की रक्षा. जब गांववाले इन शर्तों को मानते हैं, तभी वहां तालाब बनाया जाता है.
लहलहाने लगी खेती
तालाबों के पास अब हरी-भरी खेती लहलहा रही है, बच्चों को गांव से बाहर पलायन नहीं करना पड़ रहा और महिलाएं पहली बार अपने खेत में सब्जियां उगाकर उन्हें बेच रही हैं. यह सिर्फ जलसंवर्धन का काम नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी जीवन की पुनर्रचना करने जैसा काम बन गया है. अनिकेत आमटे का कहना है कि गढ़चिरोली जिले में कहने को तो दर्जनों नदियां हैं,
लेकिन असलियत यह है कि बरसात में जो नदियां बाढ़ बनकर तबाही लाती हैं, वही गर्मी में सूख जाती हैं और पानी की एक-एक बूंद को तरसने लगती हैं. जमीन का जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है. ऐसे में मेरे मन में यह विचार आया कि क्यों न ग्रामीणों के साथ मिलकर तालाब खोदे जाएं. जब यह काम शुरू किया तो देखा कि यह वास्तव में कारगर है.
मुझे लगता है कि जब आप पर्यावरण संरक्षण को लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी, उनकी आजीविका से जोड़ देते हैं, तो फिर लोग खुद ही पर्यावरण की रक्षा के लिए आगे आने लगते हैं. यह केवल पर्यावरण या विकास की बात नहीं, यह आपसी तालमेल का मामला है.