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बजट में महिला सशक्तीकरण के नाम पर लॉलीपॉप!

By IANS | Updated: February 2, 2018 19:33 IST

देश में लगातार बढ़ रही दुष्कर्म की घटनाओं के बीच महिला सुरक्षा को दरकिनार कर दिया गया। निर्भया फंड में भी कुछ खास नहीं किया गया।

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मोदी सरकार के इस बार के बजट में कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा और उद्योगों पर मेहरबानी तो अच्छी बात है, लेकिन थोड़ी-बहुत तवज्जो महिलाओं को भी दी जानी चाहिए थी। देश में लगातार बढ़ रही दुष्कर्म की घटनाओं के बीच महिला सुरक्षा को दरकिनार कर दिया गया। निर्भया फंड में भी कुछ खास नहीं किया गया। विरोध के बावजूद सैनिटरी पैड पर जीएसटी ज्यों का त्यों है। मतलब साफ है कि स्वच्छता अभियान चलाने वाली सरकार को सैनिटरी पैड विलासिता की चीज लगती है। नए बजट में कामकाजी महिलाओं की अनदेखी की गई है। आयकर में छूट का दायरा बढ़ाकर कम से कम तीन लाख रुपये किए जाने की उम्मीद भी धराशाई हो गई, ऊपर से शिक्षा और स्वास्थ्य पर उपकर (सेस) लगाकर जले पर नमक छिड़क दिया गया।सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते वक्त महिला सशक्तीकरण का जैसा दंभ भरा था, बजट में वह नदारद दिखा। इस बार बजट में महिलाओं के हाथ कुछ ज्यादा नहीं लगा। महिलाओं के लिए किसी खास योजना का भी ऐलान नहीं हुआ। कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं पार्टी के संचार विभाग की संयोजक प्रियंका चतुर्वेदी ने बजट पर निराशा जताते हुए कहा, "सरकार के पिछले तीन बजट निराशा से भरे हुए थे। इस बजट से कुछ उम्मीदें थीं, लेकिन सरकार के इस आखिरी बजट ने भी निराश किया। बजट में कुछ खास नहीं है। महिलाओं को टैक्स में छूट नहीं दी गई। सैनिटरी पैड जैसी जरूरी चीज से जीएसटी हटाने की मांग को भी अनसुना कर दिया गया।"उन्होंने आगे कहा, "नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान छाती ठोककर कहा था कि सत्ता में आएंगे, तो पांच लाख रुपये तक की कमाई पर कोई टैक्स नहीं लगाएंगे, उस वादे का क्या हुआ? सरकार ने वेतनभोगी वर्ग को अभी तक कोई राहत नहीं दी है।"दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने बजट को लेकर अपनी हताशा जताते हुए कहा, "देश में आधी आबादी महिलाओं की है, लेकिन बजट में इनका ध्यान नहीं रखा गया। ऐसे समय में जब देश में बच्चियों व महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ रही हैं, बजट में महिला सुरक्षा की बात नहीं करना दुर्भाग्यपूर्ण है। शिक्षा पर भी सेस लगा दिया गया। निर्भया फंड के लिए कुछ खास नहीं किया गया। इस बजट ने तो महिलाओं को पूरी तरह से हताश किया है।"उत्तर प्रदेश की महिला कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी लेकिन बजट से संतुष्ट हैं। पार्टी बदलने के बाद उनका सुर बदलना लाजिमी है। उन्होंने कहा, "ग्रामीण महिलाओं को बजट में खास तवज्जो दी गई है। उज्‍जवला योजना के तहत सरकार ने 2018 में आठ करोड़ गरीब महिलाओं तक निशुल्क गैस कनेक्शन पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। महिला कर्मचारियों को ईपीएफओ कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की योजना के तहत मासिक वेतन से कम योगदान देना होगा। ईपीएफ में रोजगार के पहले तीन वर्षों में महिला कर्मचारियों को आठ फीसदी योगदान ही देना होगा। सुकन्या समृद्धि को बढ़ाने पर जोर दिया गया। मुद्रा योजना के तहत तीन लाख रुपये आवंटित किए हैं, इसका सर्वाधिक लाभ तो महिलाओं को ही होता है। साथ ही 70 लाख नई नौकरियों के सृजन का लक्ष्य रखा गया है। महिला स्वसहायता समूहों की ऋण सीमा भी बढ़ाई गई है।"गुड़गांव की मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली सुजाता दीक्षित कहती हैं, "मुद्रास्फीति बढ़ने के बावजूद आयकर दरों में इस बार बदलाव नहीं किया गया है। हमें उम्मीद थी कि बजट से महिलाओं को तो कम से कम राहत मिलेगी। सैनिटरी पैड से भी सरकार ने जीएसटी नहीं हटाया। माना कि सरकार ने चुनावों को ध्यान में रखते हुए बजट तैयार किया है, मगर उसे यह भी तो सोचना चाहिए कि महिला वोटरों की नाराजगी का नतीजा बुरा हो सकता है।"प्रियंका चतुर्वेदी कहती हैं, "कहने को तो महिला विकास एवं बाल कल्याण मंत्रालय को पिछले साल की तुलना में 12 फीसदी अधिक कुल 24,700 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, लेकिन यह किन-किन मदों में खर्च किया जाएगा, इसे लेकर स्पष्टता नहीं है।"दिल्ली में पिछले 15 वर्षो से किराए पर रह रहीं कुसुमलता कहती हैं, "मुझे बजट ज्यादा समझ नहीं आता, लेकिन इतना पता है कि मेरी रसोई में इस्तेमाल होने वाला सामान महंगा होने जा रहा है। सरकार ने हर बार की तरह इस बार भी नारी शक्ति के नाम पर लॉलीपॉप पकड़ा दिया है।"

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