यौन शोषण पीड़ितों की पहचान बताने वाले मीडिया घरानों पर मामला क्यों नही: सुप्रीम कोर्ट

By भाषा | Published: October 23, 2018 02:33 AM2018-10-23T02:33:18+5:302018-10-23T02:33:18+5:30

पीठ ने कहा, ‘‘यह बताने का मतलब नहीं है कि हमने डीएवीपी से कहा है। इस बारे में कोई नहीं जानता। आपको कानून के तहत काम करना होगा और कानून कहता है कि इस तरह के लोगों पर अभियोजन चलाया जाना चाहिए।’’ 

Why is not the case on the media houses who identify sexual identity victims: Supreme Court | यौन शोषण पीड़ितों की पहचान बताने वाले मीडिया घरानों पर मामला क्यों नही: सुप्रीम कोर्ट

यौन शोषण पीड़ितों की पहचान बताने वाले मीडिया घरानों पर मामला क्यों नही: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारतीय प्रेस परिषद् (पीसीआई) सहित मीडिया संगठनों से पूछा कि उन मीडिया घरानों और पत्रकारों के खिलाफ अभियोजन की कार्यवाही क्यों नहीं की गई जिन्होंने यौन हमले के पीड़ितों की पहचान उजागर की।

न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि यौन हमलों के पीड़ितों की पहचान उजागर करना अपराध है और अगर कानून का उल्लंघन हुआ है तो कार्रवाई अवश्य होनी चाहिए।

पीठ ने पीसीआई के वकील से पूछा, ‘‘आपने कितने लोगों को दंडित किया है?’’ 

पीसीआई के वकील ने कहा कि इस तरह के पीड़ितों के मामलों की पहचान उजागर करने के मामले में परिषद् की शक्तियां उन मीडिया घरानों की निंदा करने तक सीमित हैं और वे अपने आदेश को विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) को भेज सकते हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘अगर किसी प्रकाशन ने ऐसा आपराधिक कृत्य किया है, उस पर अभियोजन चलाना होगा। किसी को उन पर अभियोजन चलाना होगा। डीएवीपी के बारे में भूल जाइए। अभियोजन के बारे में क्या है? आप पुलिस को बताइए कि कानून का उल्लंघन हुआ है और आप उन पर अभियोजन चलाएं।’’ 

पीठ ने कहा, ‘‘यह बताने का मतलब नहीं है कि हमने डीएवीपी से कहा है। इस बारे में कोई नहीं जानता। आपको कानून के तहत काम करना होगा और कानून कहता है कि इस तरह के लोगों पर अभियोजन चलाया जाना चाहिए।’’ 

अदालत ने कहा कि न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडडर्स अथॉरिटी (एनबीएसए) की तरफ से दायर दस्तावेजों में ‘‘कुछ नहीं’’ है और प्राधिकरण की तरफ से दायर हलफनामे से स्पष्ट है कि किसी भी कथित मुजरिम के खिलाफ अभियोजन शुरू नहीं हुआ।

इसने पीसीआई, एनबीएसए, एडिटर्स गिल्ड और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फेडरेशन से कहा कि तीन हफ्ते के अंदर अपना हलफनामा दायर करें।

पीठ ने कहा, ‘‘हम यह विशेष रूप से जानना चाहेंगे कि क्या ये निकाय पुलिस को इस तरह के अपराध के बारे में सूचित कर सकते हैं और अगर कर सकते हैं तो उन्होंने कथित मुजरिमों के अभियोजन के बारे में पुलिस को सूचित क्यों नहीं किया।’’ 

सुनवाई के दौरान पीसीआई के वकील ने कहा कि उन्हें पत्रकारिता की नीतियों और मानकों के मुताबिक काम करना होता है और उन्हें पहचानना होगा कि किन मानकों का उल्लंघन हुआ है।

एनबीएसए के वकील ने कहा कि उन्होंने ऐसे मामलों में जुर्माना लगाया है।

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