'चाहे मंदिर हो या मस्जिद, सार्वजनिक स्थान पर बनी अवैध धार्मिक इमारत धर्म प्रचार के लिए सही नहीं हो सकती', सुप्रीम कोर्ट ने कहा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 27, 2024 08:10 AM2024-02-27T08:10:25+5:302024-02-27T08:14:06+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सार्वजनिक स्थान पर अनधिकृत रूप से बनी धार्मिक संरचनाएं कभी भी धर्म प्रचार का स्थान नहीं हो सकती हैं।

'Whether it is a temple or a mosque, religious buildings built illegally in a public place cannot be suitable for propagating religion', said the Supreme Court. | 'चाहे मंदिर हो या मस्जिद, सार्वजनिक स्थान पर बनी अवैध धार्मिक इमारत धर्म प्रचार के लिए सही नहीं हो सकती', सुप्रीम कोर्ट ने कहा

फाइल फोटो

Highlightsसार्वजनिक स्थान पर बनी अवैध धार्मिक संरचना कभी भी धर्म प्रचार का स्थान नहीं हो सकती हैं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चाहे मस्जिद हो या मंदिर, अगर निर्माण अवैध है तो वह स्वीकार्य नहीं है सार्वजनिक सड़कों या सार्वजनिक स्थानों पर अवैध मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे मान्य नहीं हैं

नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सार्वजनिक स्थान पर अनधिकृत रूप से बनी धार्मिक संरचनाएं कभी भी धर्म प्रचार का स्थान नहीं हो सकती हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने देशभर में बने ऐसे अतिक्रमणों को तुरंत हटाने के लिए संबंधित अधिकारियों को उनके दायित्व की भी याद दिलाई है।

समाचार वेबसाइट हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथ ने तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में सार्वजनिक स्थान पर अवैध रूप से बनाई गई एक मस्जिद को हटाने का आदेश देते हुए कहा कि अतीत में शीर्ष अदालत की ओर से दिये कई आदेशों में यह सुनिश्चित करने के लिए राज्यों और हाईकोर्ट को आदेश दिया गया है कि सार्वजनिक सड़कों या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे के नाम पर किसी भी अनधिकृत धार्मिक निर्माण की अनुमति नहीं है।

दोनों जजों की बेंच ने अपने आदेश में कहा, “हमने सभी अनधिकृत धार्मिक संरचनाओं को ध्वस्त करने का आदेश दिया है, चाहे वह मंदिर हो या मस्जिद। इस न्यायालय द्वारा एक निर्णय दिया गया था और सभी उच्च न्यायालय सर्वोच्च अदालत के आदेश की निगरानी कर रहे हैं और इस संबंध में कोर्ट द्वारा राज्य सरकारों को भी उचित निर्देश जारी किए गए हैं।”

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह आदेश मद्रास हाईकोर्ट के नवंबर 2023 के फैसले के खिलाफ एक मुस्लिम धार्मिक संस्था द्वारा दायर की गई याचिका पर दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने मुस्लिम संस्था को चेन्नई में सार्वजनिक भूमि पर बनी मस्जिद हटाने का आदेश दिया गया था।

मामले में हिदायत मुस्लिम वेलफेयर ट्रस्ट का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील एस नागामुथु ने तर्क दिया कि मस्जिद के कारण जनता को कोई बाधा नहीं थी और ट्रस्ट ने जमीन का उक्त टुकड़ा खरीदा था।

वहीं पीठ ने कहा कि मस्जिद की जमीन चेन्नई मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (सीएमडीए) द्वारा अधिग्रहित की गई थी और ट्रस्ट ने बिना किसी योजना की अनुमति के धार्मिक संरचना का निर्माण किया था। नागामुथु ने तर्क दिया कि भूमि बहुत लंबे समय तक खाली रही, जिसका अर्थ है कि सरकार को किसी भी सार्वजनिक प्रयोजन के लिए उसकी आवश्यकता नहीं थी।

नागामुथु के इस तर्क पर दोनों जजों की बेंच ने बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, “क्या इसका मतलब यह है कि आप भूमि का अतिक्रमण करेंगे? ज़मीन सरकार की थी और वे इसका उपयोग कभी भी कर भी सकते हैं लेकिन आपको उस जमीन पर अवैध कब्ज़े का अधिकार नहीं है।”

Web Title: 'Whether it is a temple or a mosque, religious buildings built illegally in a public place cannot be suitable for propagating religion', said the Supreme Court.

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