राजस्थान लोकसभा चुनावः देश-प्रदेश में राजस्थानी सियासी हवा क्या असर दिखाएगी?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: April 27, 2019 07:16 AM2019-04-27T07:16:29+5:302019-04-27T07:16:29+5:30
जब 2014 में गुजरात से मोदी लहर चली थी, तो राजस्थान में गुजरात में रहने वाले इन्हीं राजस्थानियों के दम पर इसका गहरा असर हुआ था।
जहां राजस्थान की सियासी सोच देश के कई राज्यों में असर डालती है, वहीं देश के विभिन्न राज्यों के राजनीतिक रंग का प्रभाव राजस्थान में भी नजर आता रहा है। राजस्थान के लाखों परिवार गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल सहित दक्षिण के कई राज्यों में हैं। इनका संबंध राजस्थान से बना हुआ है। यही वजह है कि जो सियासी सोच इन राज्यों में रहती है, वही कई बार लहर बन कर राजस्थान आती है, तो राजस्थान में होने वाले बदलावों का असर इन राज्यों में भी नजर आता है।
जब 2014 में गुजरात से मोदी लहर चली थी, तो राजस्थान में गुजरात में रहने वाले इन्हीं राजस्थानियों के दम पर इसका गहरा असर हुआ था। जब गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी कमजोर हुई तो इसके नतीजे में राजस्थान के उपचुनाव, विस चुनाव में बीजेपी के हिस्से में हार आई। इतना ही नहीं, चुनाव के वक्त ऐसे राजस्थानी जिनका नाम राजस्थान की मतदाता सूचियों में है, वे खासतौर पर मतदान के लिए राजस्थान आते हैं, बुलाए जाते हैं।
मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, इंदौर आदि शहरों की ज्यादातर चाय की दुकानों पर मेवाड़-वागड़ के लोग कार्यरत हैं, तो जयपुर, मारवाड़, शेखावाटी, मेवाड़, हाड़ौती आदि क्षेत्र के लाखों लोग पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, असम, तमिलनाडु सहित अनेक प्रदेशों में सपरिवार रहते हैं और कार्य-व्यवसाय करते हैं। ये लोग केवल सियासी सोच बनाने का काम ही नहीं करते हैं, बल्कि अपनी पसंद की पार्टियों, उम्मीदवारों को चंदे के रूप में आर्थिक सहयोग भी करते हैं। ये राजस्थान में मतदान के लिए विभिन्न प्रदेशों के बड़े शहरों से अपने देस (राजस्थान) मतदाताओं को लाने के लिए बसों आदि की व्यवस्थाएं भी करते हैं। इन प्रवासी राजस्थानियों के दम पर ही कई नेताओं, पार्टियों को सियासी खाद-पानी मिलता है।
यही नहीं, राजस्थान के कई नेताओं का भी विभिन्न राज्यों में रहनेवाले राजस्थानियों से अच्छा संपर्क-प्रभाव है, जिसका फायदा इनके दलों को मिलता रहा है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, पूर्व मंत्री भंवरलाल शर्मा, राजकुमार शर्मा, महेन्द्रजीत सिंह मालवीया, घनश्याम तिवाड़ी आदि अनेक नेताओं का राजस्थान से बाहर रहने वाले राजस्थानियों से अच्छा संपर्क है, विशेष प्रभाव है। देखना रोचक होगा कि प्रवासी राजस्थानियों की सियासी सोच इस बार क्या राजनीतिक रंग दिखाती है?