हमारे स्वतंत्रता दिवस पर इस बार हम अफगान खुद को कैदी की तरह महसूस कर रहे: पूर्व पत्रकार

By भाषा | Published: August 19, 2021 05:33 PM2021-08-19T17:33:05+5:302021-08-19T17:33:05+5:30

We Afghans feel like prisoners this time on our Independence Day: Ex-journalist | हमारे स्वतंत्रता दिवस पर इस बार हम अफगान खुद को कैदी की तरह महसूस कर रहे: पूर्व पत्रकार

हमारे स्वतंत्रता दिवस पर इस बार हम अफगान खुद को कैदी की तरह महसूस कर रहे: पूर्व पत्रकार

तालिबान के, राजधानी काबुल पर कब्जा करने के बाद से अपने परिवार के साथ अपने घर के अंदर बंद अख्तरबीर अख्तर बेसब्री से 19 अगस्त को अफगानिस्तान के स्वतंत्रता दिवस का इंतजार कर रहे थे लेकिन अब उनका कहना है कि इस बार स्वतंत्रता दिवस पर हम अफगान खुद को कैदी की तरह महसूस कर रहे हैं। पूर्व पत्रकार अख्तर का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाओं ने उनकी रातों की नींद उड़ा दी है। काबुल से 54 वर्षीय अख्तर ने फोन पर ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘19 अगस्त हमारा स्वतंत्रता दिवस है और हम हर साल इस अवसर पर दावत करते हैं और बहुत उल्लास के साथ यह दिन मनाते हैं। लोग अपने घरों को सजाते हैं और देश के झंडे लगाते हैं, मौज-मस्ती करते हैं, सजे-धजे बाजारों में जाते हैं, रंगीन राष्ट्रीय कपड़े पहनते हैं और राष्ट्रीय नृत्य ‘अत्तन’ करते हैं। वह सब आज गायब है।’’ अफगानिस्तान में फोन लाइन और इंटरनेट काम कर रहे हैं, नेटवर्क कनेक्शन में दिक्कत आ रही है और उनकी आवाज कभी-कभी कांप जाती है और फिर भी उन्होंने अपनी मातृभूमि की स्थिति पर अपनी भावनाओं को प्रकट किया। उन्होंने कहा, ‘‘अफगान 19 अगस्त मनाते हैं, लेकिन सरकार गिर गई है, आजादी की क्या बात करें। लोग काबुल से कंधार तक अपने घरों के अंदर बंद हैं और बाहर निकलने से डरते हैं क्योंकि तालिबान के लोग सड़कों पर मार्च कर रहे हैं। हम सभी हमारी ‘आजादी’ की सालगिरह पर कैदियों की तरह महसूस कर रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि खाद्य और अन्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई हैं क्योंकि सीमाएं व्यावहारिक रूप से सील कर दी गई हैं। एक सरकारी अधिकारी के रूप में काम करने वाले अख्तर अपनी पत्नी और 27 और 18 साल की दो बेटियों के साथ काबुल में रहते है, जबकि उसका बड़ा बेटा जर्मनी में काम करता है और छोटा बीजिंग के एक विश्वविद्यालय में पढ़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘मेरी पत्नी एक निजी अस्पताल में कार्यरत है। वह अब काम पर जाने से डरती है। मेरी बड़ी बेटी जो पहले एक बैंक में काम करती थी, अनिश्चितता की स्थिति महसूस कर रही है और मेरी छोटी बेटी जो एक कॉलेज जाने और उच्च अध्ययन करने का सपना देख रही थी, वह अब सोच रही है कि क्या उसे तालिबान द्वारा अध्ययन करने और स्वतंत्र रूप से जीने की अनुमति दी जाएगी।’’ अख्तर इस महीने की शुरुआत में तालिबान के हमले के बाद से कार्यालय नहीं गये है। उन्होंने अफसोस जताया कि ‘‘अफगानिस्तान अनिश्चितता की खाई में चला गया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यहां अब कोई नहीं रहना चाहता क्योंकि उन्हें अपनी जान का खतरा है। मेरे कुछ रिश्तेदार और दोस्त भी राजधानी शहर से उड़ान भरने के लिए काबुल हवाई अड्डे पर गए थे, लेकिन वे जा नहीं सके, इसलिए अपने घरों को लौट गए।’’ अख्तर परिवार की कहानी पूरे अफगानिस्तान में हजारों परिवारों की कहानी है। तालिबान ने इस महीने देश के लगभग सभी प्रांतों और काबुल पर कब्जा कर लिया। अख्तर का कहना है कि वह अफगानिस्तान से प्यार करते है और भावनात्मक रूप से अपनी मातृभूमि से जुड़े हुए है, लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए यदि कोई मौका मिलता है, तो ‘‘मैं अपने परिवार के साथ देश से बाहर चला जाऊंगा, और मैं भारत को प्राथमिकता दूंगा, जो मेरे दूसरे घर जैसा है।’’ काबुल के पूर्व पत्रकार ने 2011-12 में अपनी भारत यात्रा को याद किया, जब वह मध्य-कैरियर पाठ्यक्रम के लिए दिल्ली आए थे और भारत और इसकी संस्कृति के प्रशंसक बन गए थे। अख्तर ने कहा, ‘‘मेरे पास भारत यात्रा की बहुत अच्छी यादें हैं और हम ताजमहल और अन्य स्थानों को देखने भी गए थे। भारत का भोजन और संस्कृति बहुत लाजवाब है जैसे कि हमारे पास अफगानिस्तान में है। हम अच्छे दोस्त हैं और इस बात पर मेरा दिल टूट गया जब काबुल 15 अगस्त को तालिबान के हाथों में चला गया, जिस दिन भारत ने अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाया था।‘‘ उन्होंने 10 साल पहले दक्षिण दिल्ली के लाजपत नगर की अपनी यात्रा को याद किया, जिसे ‘छोटा काबुल’ कहा जाता है - और उन्हें लगा कि यह ‘‘भारत में अफगानिस्तान का टुकड़ा’’ है। काबुल निवासी अख्तर ने कहा, ‘‘भारत और इसकी संस्कृति और सिनेमा ने मुझे हमेशा आकर्षित किया है। यहां तक कि मैंने हिंदी फिल्म ‘काबुलीवाला’ भी देखी है। यह इतना खूबसूरत संयोग था कि दोनों देशों ने अगस्त के महीने में... अफगानिस्तान ने 1919 में और भारत ने 1947 में आजादी हासिल की। उन्होंने कहा, ‘‘आज हमारे दरवाजे पर तालिबान आ पहुंचा है, हम अपना राष्ट्रीय ध्वज भी नहीं लगा सकते हैं। केवल अल्लाह ही जानता है, अब अफगानिस्तान का क्या होगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: We Afghans feel like prisoners this time on our Independence Day: Ex-journalist

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे