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विक्रम साराभाईः भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के जनक की जिंदगी का रोमांचक सफरनामा

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 12, 2018 07:45 IST

Vikram Sarabhai birth anniversary , biography, Life journey,interesting facts in Hindi: महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई ने अब्दुल कलाम और के कस्तूरी रंगन जैसे वैज्ञानिकों की पीढ़ी तैयार की है।

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विक्रम अंबालाल साराभाई सही मायने में एक लीडर थे। उन्होंने अंतरिक्ष विज्ञान में ना सिर्फ प्रत्यक्ष योगदान दिया बल्कि अब्दुल कलाम जैसे वैज्ञानिकों को तैयार करके अप्रत्यक्ष रूप से भी देश सेवा की। उन्हें भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान जनक माना जाता है। सिर्फ कलाम ही नहीं, विक्रम साराभाई ने इसरो के पूर्व अध्यक्ष के कस्तूरी रंगन जैसे वरिष्ठ वैज्ञानिकों की पीढ़ी तैयार की है। साराभाई के बारे में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने एकबार कहा था, 'मैंने कोई बहुत ऊंचे दर्जे की शिक्षा नहीं ली है लेकिन अपने काम में बहुत मेहनत करता था और यही वजह रही कि प्रोफेसर विक्रम साराभाई ने मुझे पहचाना, मौका दिया और आगे बढ़ाया। जब मेरा आत्मविश्वास सबसे निचले स्तर पर था तब उन्होंने मुझे जिम्मेदारी दी और यह सुनिश्चित किया कि मैं अपने काम में सफल रहूं। यदि मैं असफल होता तब भी मुझे पता था कि वे मेरे साथ हैं।'

विक्रम साराभाई की ज़िंदगी का सफरनामाः-

- विक्रम साराभाई का जन्म अगस्त 12, 1919 को अहमदाबाद के प्रगतिशील उद्योगपति के संपन्न परिवार में हुआ था। वे अंबालाल व सरला देवी के आठ बच्चों में से एक थे। 

- उन्होंने प्राथमिक शिक्षा मोंटेसरी लाइन के निजी स्कुल ‘रिट्रीट’ से प्राप्त की, जो उनके माता-पिता चला रहे थे। विक्रम साराभाई मेट्रिक्युलेशन के बाद, कालेज शिक्षण, के लिए केब्रिडज चले गये तथा वर्ष 1940 में सेंट जान कालेज से प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपोस किया।

- द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में वे घर वापस आये तथा भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलूरु में सर सी.वी. रमन के अधीन अनुसंधान छात्र के रुप में कार्य ग्रहण किया। उनके सौर भौतिकशास्त्र व कास्मिक किरण में रुचि के कारण, उन्होंने देश में कई प्रेक्षण स्टेशनों को स्थापित किया। उन्होंने आवश्यक उपकरणों का निर्माण किया तथा बैंगलूरु, पुणे व हिमालयों में मापन किया। वे 1945 में केब्रिडज वापस गए तथा 1947 में उन्होंने विद्या वाचस्पति (Phd) की शिक्षा पूर्ण की।

- घर वापस आने के बाद वर्ष 1947 नंवबर में अहमदाबाद में भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की। उनके माता पिता के द्वारा स्थापित अहमदाबाद एजुकेशन सोसाइटी के एम.जी विज्ञान संस्थान के कुछ कमरों में प्रयोगशाला को स्थापित किया गया। तदनंतर वैज्ञानिक व औद्योगिकी अनुसंधान परिषद (सी एस आई आर) तथा परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा समर्थन भी मिला।

- विक्रम साराभाई ने कास्मिक किरणों के समय परिवर्तन पर अनुसंधान किया और निष्कर्ष किया कि मौसम विज्ञान परिणाम कास्मिक किरण के दैनिक परिवर्तन प्रेक्षण पर पूर्ण रुप से प्रभावित नहीं होगा। आगे, बताया कि अवशिष्ट परिवर्तन विस्तृत तथा विश्वव्यापी है तथा यह सौर क्रियाकलापों के परिवर्तन से संबंधित है। विक्रम साराभाई ने सौर तथा अंतरग्रहीय भौतिकी में अनुसंधान के नए क्षेत्रों के सुअवसरों की कल्पना की थी।

- वर्ष 1957-1958 को अंतर्राष्ट्रीय भू-भौतिकी वर्ष (IGW) के रुप में देखा जाता है। साराभाई द्वारा IGW के लिए भारतीय कार्यक्रम एक अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा। 1957 में स्पुटनिक-1 के प्रमोचन ने उनको अंतरिक्ष विज्ञान के नये परिदृश्यों से अवगत कराया। तदनंतर, उनकी अध्यक्षता में अंतरिक्ष अनुसंधान हेतु भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) का गठन किया गया।

- थुम्बा का विशेष नक्शा कि वह भू-चुबंकीय मध्यरेखा के निकट है को देखते हुए विक्रम साराभाई ने तिरुअनंतपुरम के पास अरबी तट पर स्थित एक मछुवाही गॉव थुम्बा में देश के प्रथम राकेट प्रमोचन स्टेशन, थुम्बा भू-मध्य रेखीय राकेट प्रमोचन स्टेशन (TERLS) की स्थापना का चयन किया।

- इस साहस में, उनको होमी भाभा जो उस समय परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष थे से सक्रिय सहयोग मिला था। नवंबर 21, 1963 को सोडियम वाष्प नीतभार के साथ प्रथम राकेट का प्रमोचन किया गया। संयुक्त राष्ट्र महा सभा ने 1965 में, TERLS को एक अंतर्राष्ट्रीय सुविधा के रुप में मान्यता दी।

- विमान दुर्घटना में होमी भाभा के अकालिक मृत्यु के बाद, विक्रम साराभाई ने मई 1966 में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष पद को संभाला। वे हमेशा से यह चाहते थे कि विज्ञान के प्रायोगिक उपयोग आम आदमी तक पहुँचे। उन्होंने राष्ट्र के वास्तविक संसाधन की तकनीकी तथा आर्थिक मूल्यांकन के आधार पर देश की समस्याओं के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी में सक्षमता प्राप्त करने की दिशा में कार्य किया। उन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की, जो आज पूरे विश्व में विख्यात है।

- डॉ. विक्रम साराभाई ने 1962 में शांति स्वरुप भटनागर पदक प्राप्त किया। राष्ट्र ने वर्ष 1966 में पद्म भूषण तथा वर्ष 1972 में पद्म विभूषण (मृत्योपरांत) से सम्मानित किया।

- विक्रम साराभाई की मृत्यु दिसंबर 31, 1971 को निद्रावस्था में हुई थी।

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