Vijay Diwas, 16 December: भारत-पाकिस्तान के बीच 13 दिन का युद्ध और फिर ऐसे बना बांग्लादेश
By विनीत कुमार | Published: December 12, 2019 03:55 PM2019-12-12T15:55:34+5:302019-12-12T15:55:34+5:30
भारत ने तीन दिसंबर, 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश किया और फिर 13 दिन बाद यानी 16 दिसंबर को पाकिस्तानी सैनिकों ने समर्पण कर दिया।
भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद विश्व इतिहास में बांग्लादेश के बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान का निर्माण हुआ। एक ही देश के दो हिस्सों के बीच दूरी, भाषाई अंतर सहित कई और ऐसे बड़े कारण रहे जिन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में नाराजगी का माहौर बनाना शुरू कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान में आंदोलन और विरोध प्रदर्शन दिनों-दिन बढ़ते गये और 1971 में एक नये देश 'बांग्लादेश' का जन्म हुआ।
पाकिस्तानी सेना और मुक्ति बाहिनी के बीच संघर्ष
पूर्वी पाकिस्तान में विरोध-प्रदर्शन और उनके साथ दोयम व्यवहार की बातें कई दिनों से हो रही थी लेकिन दोनों हिस्सों में सबसे बड़ा अंतर 1970 में पाकिस्तान में हुए आम चुनाव के बाद आने शुरू हुए। चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान की बड़ी पार्टी आवामी लीग सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पार्टी ने 160 सीटें जीती। दूसरी ओर पश्चिमी पाकिस्तान से जुल्फिकार अली भुट्टो की पार्टी पीपीपी ने केवल 81 सीटें हासिल की। पाकिस्तान के राष्ट्रपति याहया खान और पीपीपी नहीं चाहते थे कि पूर्वी पाकिस्तान से किसी पार्टी की सरकार बने।
इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान में गृह युद्ध के हालात शुरू हो गये और इसने बांग्लादेश की आजादी के रास्ते खोल दिए। देखते-देखते आजादी के संघर्ष के लिए बांग्लादेश में हथियारबंद मुक्ति बाहिनी सेना का निर्माण हो गया और पाकिस्तानी सेना से इसकी लड़ाई शुरू हो गई। भारत ने मुक्ति बाहिनी सेना का समर्थन किया और इस तरह तेहर दिन की लड़ाई के बाद पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग हुआ।
तीन दिसंबर, 1971 से भारतीय सैनिकों ने शुरू किया अभियान
भारत पूर्व में सैन्य रूप से पूर्वी पाकिस्तान में चल रहे प्रदर्शन और लड़ाई से अलग था। हालांकि, उसका साथ जरूर मुक्ति बाहिनी को था लेकिन तीन दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की ओर से भारतीय ठिकानों पर हमले के बाद भारतीय सैनिक खुल कर इस अभियान में कूद पड़े। भारत पूरी ताकत से पाकिस्तान से भिड़ गया। पाकिस्तान के लिए मुश्किल ये थी कि उसे दो मोर्चों पर लड़ाई करनी पड़ रही थी।
एक मोर्चा पश्चिमी पाकिस्तान का था जबकि दूसरा मोर्चा आज के बांग्लादेश का था। मुक्ति बाहिनी ने पूर्वी पाकिस्तान में कई जगहों पर पाकिस्तानी सैनिकों पर घात लगा कर हमला किया और पकड़ कर भारतीय सैनिकों के हवाले करते चले गये। कुल मिलाकर पाकिस्तानी सेना का मनोबल टूटता चला गया और आखिरकार 16 दिसंबर को उन्हें समर्पण के लिए मजबूर होना पड़ा।
इंदिरा गांधी मार्च, 1971 में ही करना चाहती थी पाकिस्तान पर चढ़ाई
उस समय भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थीं कि 1971 में सेना पाकिस्तान पर चढ़ाई कर दे। हालांकि, तब भारतीय सेना क अध्यक्ष सैम मानेकशॉ ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। मॉनेकशॉ ने कहा कि भारतीय सेना अभी हमले के लिए तैयार नहीं है। कहते हैं कि इंदिरा गांधी इससे नाराज भी हुईं लेकिन मानेकशॉ ने उनके पूछा कि आप युद्ध जीतना चाहती हैं या नहीं। इंदिरा ने कहा, 'हां।' इस पर मानेकशॉ ने कहा, 'मुझे 6 महीने का समय दें। मैं गारंटी देता हूं कि जीत आपकी होगी।'