उत्तराखंड आपदा, बचावकर्मियों ने रणनीति बदली

By भाषा | Updated: February 11, 2021 21:49 IST2021-02-11T21:49:48+5:302021-02-11T21:49:48+5:30

Uttarakhand disaster, rescuers changed strategy | उत्तराखंड आपदा, बचावकर्मियों ने रणनीति बदली

उत्तराखंड आपदा, बचावकर्मियों ने रणनीति बदली

तपोवन/नयी दिल्ली, 11 फरवरी ग्लेशियर टूटने से उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार को आई बाढ़ से क्षतिग्रस्त तपोवन-विष्णुगाड परियोजना की गाद से भरी तपोवन सुरंग में फंसे 30-35 लोगों तक पहुंचने के लिए बृहस्पतिवार को अभियान फिर शुरू कर दिया गया। इससे पहले धौलीगंगा नदी में जलस्तर बढ़ने से राहत एवं बचावकर्मियों ने अभियान कुछ समय के लिए रोक दिया था।

इस आपदा में 35 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 169 अन्य लापता हैं।

बृहस्पतिवार को दोपहर बाद तब एक और डर पैदा हो गया जब अलकनंदा नदी की सहायक धौलीगंगा में जलस्तर फिर से बढ़ना शुरू हो गया।

नदी के जलस्तर में वृद्धि के बाद लगभग 45 मिनट के लिए रुका अभियान फिर शुरू हो गया है, लेकिन अधिकारियों ने कहा कि वे अब मलबे और गाद से अवरुद्ध सुरंग में छोटी टीमों को ही भेज रहे हैं।

जलस्तर में अचानक वृद्धि से कुछ घंटे पहले राहतकर्मियों ने रणनीति में बदलाव करते हुए सुरंग के मुंह से मलबे में छेद करने का अभियान भी शुरू किया था, ताकि फंसे कर्मियों तक पहुंचा जा सके और उन तक जीवनरक्षक उपकरण पहुंचाए जा सकें।

जलस्तर में वृद्धि की सूचना मिलने के बाद राहतकर्मियों को अपनी भारी मशीनरी के साथ सुरंग से बाहर निकलना पड़ा।

चमोली की जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया ने कहा कि राहत एवं बचाव कार्य सावधानी के तौर पर अस्थायी तौर पर बंद किया गया था।

सुरंग में फंसे लोगों के जीवन को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच अब सारा ध्यान सुरंगों के 2.5 किलोमीटर नेटवर्क के 1.5 किलोमीटर हिस्से पर केंद्रित है।

बचाव अभियान में कई एजेंसियां लगी हैं और पिछले चार दिन से उनके अभियान का केंद्र यह सुरंग है। हर गुजरता क्षण इसके भीतर फंसे लोगों की सुरक्षा संबंधी चिंता को बढ़ा रहा है।

बचाव कार्य में लगी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के प्रवक्ता विवेक कुमार पांडे ने नयी दिल्ली में कहा कि बचाव दलों ने बीती देर रात दो बजे गाद और मलबे से भरी सुरंग में प्रवेश के लिए इसमें छेद करने का अभियान शुरू किया था।

उन्होंने कहा कि सुरंग में फंसे लोगों को बचाने में कीचड़ और गाद सबसे बड़े अवरोधक हैं तथा ऐसे में यह पता लगाने के लिए एक बड़ी मशीन से छेद कर कीचड़ और गाद को निकाला जा रहा है कि क्या इस समस्या को किसी और तरीके से सुलझाया जा सकता है तथा क्या बचावकर्मी और गहराई में जा सकते हैं।

राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) परियोजना स्थल पर बचाव कार्य की निगरानी कर रहे गढ़वाल आयुक्त रविनाथ रमन ने पीटीआई-भाषा को बताया कि सुरंग के भीतर करीब 68 मीटर से मलबे में छेद करने का काम शुरू किया गया है।

उन्होंने कहा कि इस समय नई रणनीति उस स्थान तक ऑक्सीजन सिलेंडर जैसी जीवनरक्षक प्रणाली मुहैया कराने पर केंद्रित है, जहां लोग फंसे हो सकते हैं और मलबे में छेद कर उन तक पहुंचने की कोशिश की जा रही है।

रमन ने कहा कि उस स्थल तक पहुंचने के लिए 12 मीटर की गहराई तक बड़ा छेद किया जाना है, जहां लोगों के फंसे होने की संभावना है।

उन्होंने तपोवन में प्रेस ब्रीफिंग में ऋषिगंगा में जलस्तर बढ़ने संबंधी खबरों के बारे में पूछे जाने पर कहा कि उनके पास कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है।

रमन ने कहा, ‘‘यह अफवाह से अधिक कुछ नहीं है।’’

बाद में, उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमारी रणनीति स्थिति के अनुसार काम करने की है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम एनटीपीसी के अधिकारियों और वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।’’

सुरंग के मुंह से बुधवार तक करीब 120 मीटर मलबा साफ किया जा चुका था और ऐसा बताया जा रहा है कि लोग 180 मीटर की गहराई पर कहीं फंसे हैं, जहां से सुरंग मुड़ती है।

गढ़वाल रेंज की पुलिस महानिरीक्षक नीरू गर्ग ने कहा, ‘‘जहां तक आप देख सकते हैं, सभी एजेंसियां अधिक से अधिक लोगों का जीवन बचाने के संकल्प के साथ पूरी तरह मिलकर काम कर रही हैं।’’

इससे पहले, उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को तब कुछ लापता लोगों के परिजनों के विरोध का सामना करना पड़ा जब वह राहत एवं बचाव स्थल पर पहुंचीं।

भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के प्रमुख एस एस देसवाल ने बुधवार को ‘पीटीआई भाषा’ से कहा था कि सुरंग में फंसे श्रमिकों को ढूंढ़ने का अभियान तब तक चलेगा, जब तक कि यह किसी तार्किक निष्कर्ष तक नहीं पहुंच जाता।

देसवाल ने उम्मीद जताई थी कि फंसे लोग सुरंग में संभावित वायु मौजूदगी के चलते सुरक्षित हो सकते हैं।

इस संबंध में एक अन्य अधिकारी ने कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि फंसे लोग भोजन-पानी के बिना बुरी स्थिति में हो सकते हैं, लेकिन ‘‘उम्मीद के विपरीत यह उम्मीद’’ है कि वे किसी तरह जीवित होंगे क्योंकि सुरंग के भीतर तापमान करीब 20-25 डिग्री सेल्सियस है और कुछ ऑक्सीजन उन्हें मिल रही होगी।

उल्लेखनीय है ऋषिगंगा घाटी में पहाड़ से गिरी बर्फ के कारण ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ़ से 13.2 मेगावाट ऋषिगंगा जल विद्युत परियोजना पूरी तरह तबाह हो गई थी और बुरी तरह क्षतिग्रस्त 480 मेगावाट तपोवन-विष्णुगाड परियोजना की सुरंग में काम कर रहे लोग उसमें फंस गए थे। उसके बाद से ही सेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ), भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) और राज्य आपदा प्रबंधन बल (एसडीआरएफ) लगातार बचाव और तलाश अभियान चला रहे हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Uttarakhand disaster, rescuers changed strategy

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