UP Lok Sabha Elections 2024: दलबदलू नेताओं से फायदा हुआ या नुकसान, 4 जून को खुलासा, मनोज पांडेय, नारद राय, रितेश पांडेय और दानिश अली का क्या होगा?
By राजेंद्र कुमार | Updated: June 1, 2024 18:08 IST2024-06-01T18:06:42+5:302024-06-01T18:08:29+5:30
UP Lok Sabha Elections 2024: समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) तथा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तमाम नेता 4 जून को यह भी जानना चाहते हैं कि चुनाव के दौरान उनके साथ आए अन्य दलों के नेताओं के प्रभाव का उनके दल को लाभ हुआ या नुकसान.

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UP Lok Sabha Elections 2024: उत्तर प्रदेश में सातों चरणों का मतदान पूरा हो गया. बीते 15 मार्च से सूबे में जो चुनावी हलचल शुरू हुई थी, उस पर अब विराम लग चुका है. अब सभी को 4 जून को घोषित होने वाले चुनाव परिणाम का इंतजार है. इसके साथ ही समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) तथा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तमाम नेता 4 जून को यह भी जानना चाहते हैं कि चुनाव के दौरान उनके साथ आए अन्य दलों के नेताओं के प्रभाव का उनके दल को लाभ हुआ या नुकसान.
रायबरेली में मनोज से भाजपा को होगा लाभ?
इस मामले में भाजपा नेताओं का कहना कि चुनाव के दौरान उनकी पार्टी में सपा और बसपा के कई बड़े नेता शामिल हुए. अब हमें यह जानना है सपा और बसपा के बड़े नेताओं के भाजपा में आने से पार्टी को कितना लाभ हुआ है और इन नेताओं ने अपनी पार्टी को कितना नुकसान पहुंचाया है.
इन नेताओं का कहना है कि चुनाव नतीजे आने पर यह पता चलेगा कि रायबरेली में सपा विधायक मनोज पांडेय के भाजपा में आने का कितना लाभ पार्टी को हुआ है. इसी तरह से सुल्तानपुर के बाहुबली नेता तथा पूर्व विधायक चंद्रभद्र सिंह के सपा का दामन थामने से भाजपा को कितना नुकसान उस सीट पर हुआ.
सपा मान रही है कि चंद्रभद्र सिंह का साथ मिलने से सुल्तानपुर में सपा के चुनावी समीकरण और बेहतर हुए हैं. अब यह चुनाव नतीजों से साफ होगा, वह सपा प्रत्याशी के पक्ष में कितनी मजबूती दे पाए हैं. इसी तरह बाबू सिंह कुशवाहा का अचानक अपनी पार्टी का विलय कर सपा में करने और जौनपुर से सपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने से सपा को कुशवाहा समाज का वोट मिलना आसान हुआ या नहीं.
अब 4 जून को ही यह पता चलेगा कि कुशवाहा समाज को सपा से जोड़ने की कोशिश कितनी सफल हुई. आजमगढ़ में सपा ने अपने समीकरण दुरुस्त करने के लिए बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को जोड़ने का जो कदम उठाया वह कितना सफल हुआ, वह भी 4 जून को साफ होगा.
नारद राय के भाजपा में जाने से क्या कमजोर हुई सपा
इसी प्रकार सातवें चरण के मतदान के तीन दिन पहले सपा के पूर्व विधायक नारद राय के भाजपा में शामिल होने से सपा का चुनावी गणित गड़बड़ाया या नहीं, इसका भी खुलासा 4 जून को होगा. नारद राय बलिया में सपा प्रत्याशी सनातन पांडेय के लिए धुआंधार प्रचार कर रहे थे, इसी बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह वाराणसी पहुंचे और उनसे मिलने के बाद बलिया के कद्दावर सपा नेता नारद राय ने भाजपा का दामन थाम लिया. बलिया के राम इकबाल सिंह भी सपा छोड़कर भाजपाई हो गए.
अब बलिया में प्रत्याशियों को मिले वोट से अंदाजा लग सकता है कि ऐन मौके पर पाला बदलने से किसको लाभ व किसको नुकसान हुआ. इसी प्रकार बसपा सरकार में वित्त मंत्री रहे केके गौतम अब स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ आ गए हैं. मौर्य खुद अपनी पार्टी बना कर कुशीनगर से चुनाव लड़ रहे हैं. इलाहाबाद से सपा विधायक पूजा भी भाजपा नेताओं से साथ बैठकों में शामिल होने लगी हैं.
उंसके बागी होने से इलाहाबाद में भाजपा को बढ़त मिलती है या नहीं इसका भी पता अब 4 जून को ही चलेगा. अंबेडकरनगर में बसपा के सांसद रितेश पांडेय का भाजपा के टिकट पर और अमरोहा में बसपा के सांसद दानिश अली का कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडना भाजपा और कांग्रेस के लिए कितना फायदेमंद रहा है? 4 जून को यह भी पता चलेगा.