उज्जैन: महाकाल मंदिर के सामने जमीन से निकले एक हजार साल पुराने खंडित मंदिर के जीर्णोद्धार की तैयारी
By बृजेश परमार | Published: May 11, 2023 09:39 PM2023-05-11T21:39:02+5:302023-05-11T21:39:02+5:30
मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग मुख्यालय के पुराविद एवं पुरातत्व अधिकारी डॉ. रमेश यादव ने बताया कि अगस्त 2022 में आयुक्त पुरातत्व शिल्पा गुप्ता ने उज्जैन जाकर इस मंदिर की स्थिति को देखा था। उसके बाद उन्होंने इसके जीर्णोद्धार की योजना बनाने के निर्देश दिए थे।
उज्जैन: श्री महाकालेश्वर मंदिर परिसर में पिछले साल खुदाई में मिले करीब एक हजार साल पुराने खंडित मंदिर को दोबारा प्राचीन स्वरूप में बनाने की तैयारी हो गई है। जीर्णोद्धार के तहत यह मंदिर इस पर करीब एक करोड़ रुपए खर्च हो सकते हैं और यह 37 फीट ऊंचा होगा। पुरातत्व विभाग ने इसे बनाने के लिए 85 लाख रुपए का टेंडर निकाला था, लेकिन काम कठिन होने से किसी ठेकेदार ने टेंडर नहीं भरा। अब विभाग के सुपर विजन में ही मंदिर का जीर्णोद्धार होगा।
मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग मुख्यालय के पुराविद एवं पुरातत्व अधिकारी डॉ. रमेश यादव ने बताया कि अगस्त 2022 में आयुक्त पुरातत्व शिल्पा गुप्ता ने उज्जैन जाकर इस मंदिर की स्थिति को देखा था। उसके बाद उन्होंने इसके जीर्णोद्धार की योजना बनाने के निर्देश दिए थे। इस पर काम करते हुए विभाग ने टेंडर निकाला। ठेकेदार के नहीं आने पर अब लेबर और मटेरियल के अलग अलग टेंडर लगाए जाएंगे।
मटेरियल एवं लेबर दोनों का ही लगभग 70 लाख से अधिक का टेंडर होगा। एक हजार साल पुराने इस मंदिर के जीर्णोद्धार में सुपरविजन विभाग खुद करेगा। जमीन के अंदर से निकले मंदिर के अवशेषों को जोड़ा जाएगा। इस माह के अंत तक काम शुरू करने की तैयारी है। इसके लिए मंदिर के सभी पत्थरों पर नंबरिंग कर दी गई है।
इसके आधार पर ही मंदिर का निर्माण किया जाएगा। पुराविद एवं शोध अधिकारी डॉ.वाकणकर शोघ संस्थान ध्रुवेंद्रसिंह जोधा ने बताया कि यह मंदिर 11वीं सदी का एक हजार साल से ज्यादा पुराना है। यह भूमिज शैली में बना था, जो मंदिर निर्माण की नागर शैली की उपशैली है। जो पत्थर नहीं मिलेंगे, उनको ढूंढा जाएगा या फिर सेंड स्टोन के पत्थरों का उपयोग कर पुरातन स्वरूप दिया जाएगा।
मंदिर का गर्भगृह भी तैयार होगा। डॉ. जोधा ने बताया कि इसमें मंदिर की शुरूआत भूमि से ही होती है। भूमिज शैली उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला की एक किस्म है, जो गर्भगृह के शीर्ष पर शिखर निर्माण के लिए घूर्णन वर्ग-वृत्त सिद्धांत पर आधारित है। परमार वंश के शासन के दौरान मध्य भारत के मालवा क्षेत्र में 10 वीं शताब्दी के बारे में खोजा गया।
यह हिंदू और जैन मंदिरों में पाया जाता है। गुजरात, राजस्थान, डेक्कन और दक्षिणी और पूर्वी भारत के कुछ प्रमुख हिंदू मंदिर परिसरों में भी यही शैली है। भूमिज शैली के मंदिर परमार काल में बनाए जाते थे। इसलिए इस मंदिर के पुनः बनने से इतिहास सुरक्षित होगा। राजस्थान में भूमिज शैली का सबसे पुराना मंदिर पाली जिले में सेवाड़ी का जैन मंदिर है।झालरापाटन का सूर्य मंदिर सप्तरथ व सप्तभूम भी इसी शैली का है।