यूएपीए आतंकवाद को अस्पष्ट रूप से परिभाषित करता है, लापरवाह तरीके से लागू नहीं किया जा सकता:अदालत
By भाषा | Published: June 15, 2021 05:42 PM2021-06-15T17:42:38+5:302021-06-15T17:42:38+5:30
नयी दिल्ली, 15 जून दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि आतंकवाद रोधी कठोरतम कानून यूएपीए के तहत ‘‘आतंकवादी गतिविधि’’ की परिभाषा ‘कुछ न कुछ अस्पष्ट’ है और इसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आने वाले आपराधिक कृत्यों पर ‘‘लापरवाह तरीके से’’ लागू नहीं किया जा सकता है।
उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अदालत की यह राय है कि गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) को लागू करने और 2004 एवं 2008 में इसमें संशोधन करने के पीछे संसद का इरादा और उद्देश्य यह था कि आतंकवादी गतिविधियों को इसके दायरे में लाया जाए, इसके जरिए ‘‘भारत की रक्षा पर गहरा असर डालने वाले विषयों से निपटना था, इससे न कुछ ज्यादा ना कुछ कम (इरादा एवं उद्देश्य) था।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि यूएपीए के तहत लोगों पर अत्यधिक जघन्य एवं गंभीर दंडनीय प्रावधान लगाना उस कानून को लागू करने में संसद के इरादे और उद्देश्य को कमतर करता है, जिसका मकसद हमारे राष्ट्र के अस्तित्व को पेश आने वाले खतरों से निपटना है।
अदालत ने यह टिप्पणी पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की व्यापक साजिश रचने के एक मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्राओं और ‘पिंजरा तोड़’ मुहिम की कार्यकर्ताओं देवांगना कलिता एवं नताशा नरवाल तथा जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देते हुए की।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति एजे भंभानी की पीठ ने कहा, ‘‘हमारे विचार से, यूएपीए की धारा 15 में ‘आतंकवादी गतिविधि’ की परिभाषा हालांकि व्यापक है और कुछ न कुछ अस्पष्ट है, ऐसे में आतंकवाद के मूल चरित्र को सम्मलित करना होगा और ‘आतंकवादी गतिविधि’ मुहावरे को उन आपरधिक गतिविधियों पर ‘लापरवाह तरीके से’’ इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती जो भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) के तहत आते हैं।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।