'लॉकडाउन में घरवाले भी देने लगे गाली', कोरोना काल में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों का जीना हुआ मुश्किल

By भाषा | Published: August 30, 2020 06:49 PM2020-08-30T18:49:17+5:302020-08-30T18:49:17+5:30

देश के लगभग 4.88 लाख ट्रांसजेंडर लोग भीख मांगने, शादी में नाचने और समारोह में नाचने जैसे काम करने के लिए मजबूर हैं। लेकिन महामारी के प्रकोप के बाद से समुदाय के सदस्यों ने अपनी आजीविका के साधन खो दिए हैं।

Transgender community faces mental and physical harassment COVID-19 lockdown | 'लॉकडाउन में घरवाले भी देने लगे गाली', कोरोना काल में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों का जीना हुआ मुश्किल

प्रतीकात्मक तस्वीर

Highlightsजयपुर से ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता पुष्पा माई ने कहा,एक बार ये कमाई करना बंद कर दें उसके बाद परिवार वाले आदर नहीं करते हैं।एलजीबीटीक्यू कार्यकर्ता बिट्टू ने कहा कि ट्रांसजेंडर समुदाय के कई सदस्यों को लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के कारण बचाना पड़ा है।

नई दिल्ली: लॉकडाउन का समाज के लगभग हर वर्ग पर असर पड़ा है और ट्रांसजेंडर समुदाय भी इससे अछूता नहीं है। इस दौरान उन्हें तमाम तरह की मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा है। अजमेर की रहने वाली रेशमा ट्रांसजेंडर समुदाय से हैं और परिवार का सहारा बनने के लिए उन्होंने 16 साल की उम्र से ही ट्रेन में भीख मांगना शुरू कर दिया था। रेशमा कहती हैं कि उन्होंने पूरे जीवन लोगों के ताने और अपमानजनक बातें सुनी हैं लेकिन लॉकडाउन के बाद से तो घर वालों का रवैया भी पूरी तरह से बदल गया।

वह कहती हैं ,‘‘जैसे-जैसे लॉकडाउन आगे बढ़ा और मैं कुछ भी घर नहीं ला पा रही थी तो धीरे-धीरे ताने शुरू हो गए, जो जल्द ही गाली गलौच में बदल गए। मेरे परिवार के सदस्य खासतौर पर मेरा भाई जिसके लिए मैंने स्कूल जाना बंद किया कि वह पढ़ सके, मेरा अपमान करने लगा।’’ उन्होंने कहा,‘‘जब मैं आर्थिक तौर पर उनकी मदद कर रही थी तब उन्हें नहीं लगा कि मैं कलंक हूं। धीरे-घीरे गाली गलौच से बात मारपीट तक आ गई और एक दिन यह सब इतना असहनीय हो गया कि मैंने इससे बाहर निकलने का निर्णय किया।’’

बिहार से ताल्लुक रखने वाली एक अन्य ट्रांसजेंडर सुनहरी (परिवर्तित नाम) की भी यही कहानी है। घरेलू मारपीट से तंग आ कर उन्होंने बरसों पहले घर छोड़ दिया था। वह कहती हैं कि वह हर माह घर पैसे भेजती थीं लेकिन लॉकडाउन में काम नहीं होने से वह घर जाने के लिए मजबूर हो गईं।

सुनहरी ने कहा,‘‘ मेरे पास पैसे नहीं थे तो मैं घर लौटने पर मजबूर हो गई। मैंने सोचा कि हालात बदल गए होंगे आखिर सारे मेरे पर ही आश्रित थे लेकिन मैं गलत थी। मेरे वापस आते ही उनकी अपमानजनक बातें शुरू हो गईं।’’ अधिकार समूहों के अनुसार, देश के लगभग 4.88 लाख ट्रांसजेंडर लोग भीख मांगने, शादी में नाचने और समारोह में नाचने जैसे काम करने के लिए मजबूर हैं। लेकिन महामारी के प्रकोप के बाद से समुदाय के सदस्यों ने अपनी आजीविका के साधन खो दिए हैं और वे जीविकोपार्जन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

जयपुर से ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता पुष्पा माई ने कहा,‘‘ एक बार ये कमाई करना बंद कर दें उसके बाद परिवार के सदस्यों के लिए उनका कोई मोल नहीं रह जाता इसलिए परिवार के सदस्य इनके साथ मनचाहा व्यवहार करते हैं।’’

एलजीबीटीक्यू कार्यकर्ता बिट्टू ने कहा कि ट्रांसजेंडर समुदाय के कई सदस्यों को लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के कारण बचाना पड़ा है।

गैर-लाभकारी संगठन सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीएफएआर) की प्रबंध न्यासी और कार्यकारी निदेशक अखिला शिवदास ने कहा कि घरेलू हिंसा, सामाजिक कलंक और भेदभाव को रोकने का एकमात्र तरीका ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और समूहों को सशक्त बनाना है।

Web Title: Transgender community faces mental and physical harassment COVID-19 lockdown

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