पुण्यतिथिः टीपू सुल्तान के आगे टेक दिए थे अंग्रेजों ने घुटने, बाद में कहलाए 'शेर-ए-मैसूर'
By रामदीप मिश्रा | Published: May 4, 2018 09:01 AM2018-05-04T09:01:44+5:302018-05-04T09:01:44+5:30
Tipu Sultan Death Anniversary: टीपू ने बचपन में पढ़ाई के साथ साथ सैन्य शिक्षा और राजनीतिक शिक्षा भी ली थी। 17 वर्ष की उम्र में उसको महत्वपूर्ण राजनयिक और सैन्य मिशन में स्वतंत्र प्रभार दे दिया गया था।
नई दिल्ली, 4 मईः टीपू सुल्तान की शुक्रवार को पुण्यतिथि है। उनका जन्म 20 नवम्बर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली (यूसुफाबाद) में हुआ था। उनका पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था। वह मैसूर राज्य के शक्तिशाली शासक थे। उनके पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फकरुन्निसा था। उनके पिता मैसूर साम्राज्य के सेनापति थे। जो अपनी ताकत से 1761 में मैसूर साम्राज्य के शासक बने। टीपू को मैसूर का शेर कहा जाता था। उनकी गिनती एक विद्वान, शक्तिशाली और योग्य कवियों में होती थी।
पढ़ाई में थे होशियार
बताया जाता है कि टीपू ने बचपन में पढ़ाई के साथ साथ सैन्य शिक्षा और राजनीतिक शिक्षा भी ली थी। 17 वर्ष की उम्र में उसको महत्वपूर्ण राजनयिक और सैन्य मिशन में स्वतंत्र प्रभार दे दिया गया था। वो युद्ध में अपने पिता का दाया हाथ था, जिससे हैदर दक्षिणी भारत का एक शक्तिशाली शासक बना।
अंग्रेजों को खदेड़ने में पिता का दिया साथ
कहा जाता है कि टीपू सुल्तान काफी बहादुर होने के साथ ही दिमागी सूझबूझ से रणनीति बनाने में भी बेहद माहिर था। अपने शासनकाल में भारत में बढ़ते ईस्ट इंडिया कंपनी के साम्राज्य के सामने वह कभी नहीं झुका और उसने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। मैसूर की दूसरी लड़ाई में अंग्रेजों को खदेड़ने में उसने अपने पिता हैदर अली की काफी मदद की थी। उसने अपनी बहादुरी से जहां कई बार अंग्रेजों को पटखनी दी, वहीं निजामों को भी कई मौकों पर धूल चटाई। अपनी हार से बौखलाए हैदराबाद के निजाम ने टीपू सुल्तान से गद्दारी की और अंग्रेजों से मिल गया।
हिन्दू मंदिरों को दीं बेशकीमती भेंट
टीपू सुल्तान ने कई हिंदू मंदिरों को काफी बेशकीमती भेटें दी थी। थालकोट के मन्दिर में सोने और चांदी के बर्तन है, जिनके शिलालेख बताते हैं कि ये टीपू ने भेंट किए थे। 1782 और 1799 के बीच, टीपू सुल्तान ने अपनी जागीर के मन्दिरों को 34 दान के सनद जारी किए। इनमें से कई को चांदी और सोने की थाली के तोहफे पेश किए। ननजनगुड के श्रीकान्तेश्वर मन्दिर में टीपू का दिया हुआ एक रत्न-जड़ित कप है। ननजनगुड के ही ननजुनदेश्वर मन्दिर को टीपू ने एक हरा-सा शिवलिंग भेंट किया था। श्रीरंगपटना के रंगनाथ मन्दिर को टीपू ने सात चांदी के कप और एक रजत कपूर-ज्वालिक पेश करने का भी जिक्र किताबों में मिलता है।
18 की उम्र में जीता पहला युद्ध
टीपू ने 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेजों के विरुद्ध पहला युद्ध जीता था। उन्हें सुल्तान का 'शेर-ए-मैसूर' कहा जाता हैं, क्योंकि उन्होनें 15 साल की उम्र से अपने पिता के साथ जंग में हिस्सा लेने की शुरुआत कर दी थी। उनकी तलवार पर रत्नजड़ित बाघ बना हुआ था। बताया जाता हैं कि टीपू की मौत के बाद ये तलवार उसके शव के पास पड़ी मिली थी, जिसकी आज के समय में 21 करोड़ रुपए कीमत है। उस तलवार को अंग्रेज अपने साथ ब्रिटेन ले गए थे, जिसे 21 करोड़ रुपए में नीलाम किया गया है। यह नीलामी अप्रैल 2010 में लंदन की नीलामी संस्था सोदेबीजज ने नीलाम किया था। इसे उद्योगपति विजय माल्या ने खरीदा।
1799 में हो गई थी मृत्यु
टीपू सुल्तान अंग्रेजों से मुकाबला करते हुए 4 मई 1799 को मौत हो गई थी। वहीं, उनके चरित्र के सम्बंध में विद्वानों ने काफी मतभेद है। कई अंग्रेज विद्वानों ने उसकी आलोचना करते हुए उसे अत्याचारी और धर्मान्त बताया है। जबकि भारतीय इतिहासकारों ने उन्हें काफी चतुर, होशियार और तेज-तर्रार लिखा है, जिनकी नजर में सारे धर्म बराबर थे।
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