'आरक्षण में वर्गीकरण के समर्थकों की बसपा में जगह नहीं', मायावती ने दो टूक कहा
By राजेंद्र कुमार | Published: September 1, 2024 06:49 PM2024-09-01T18:49:09+5:302024-09-01T18:49:09+5:30
मायावती का यह भी कहना है कि एससी-एसटी आरक्षण के वर्गीकरण और क्रीमी लेयर का मुद्दा इन वर्गों को बांटने वाला है।
लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने पार्टी कैडर वोट को एकजुट करने के लिए नया दांव चला। जिसके तहत उन्होंने आरक्षण में वर्गीकरण का समर्थन करने वाले नेताओं को पार्टी से निकाले जाने की चेतावनी दे दी है। नब्बे के दशक में बसपा के संस्थापक कांशीराम ने भी सोशल इंजीनियरिंग के तहत पार्टी में सवर्णों को लाने जाने की पैरवी वाले नेताओं को भी पार्टी से निकाले जाने की चेतावनी दी थी। उनकी चेतावनी का असर हुआ था और बसपा यूपी ही नहीं देश भर में दलित समाज की सबसे प्रमुख पार्टी बन गई थी।
अब बसपा के खिसक रहे कैडर वोट को रोककर पार्टी को फिर से देश में दलित समाज की प्रमुख पार्टी में तब्दील करने के लिए मायावती ने पार्टी में आरक्षण में वर्गीकरण का समर्थन करने वाले नेताओं के लिए पार्टी के दरवाजे बंद कर दिए है। यानी अब से आरक्षण में वर्गीकरण के समर्थकों की बसपा में जगह नहीं है। ऐसा करने वाले पार्टी नेताओं को बसपा छोड़कर जाना होगा।
एससी-एसटी आरक्षण के वर्गीकरण और क्रीमी लेयर के मुद्दे का मायावती ने विरोध किया है। उनकी इस राय से दक्षिण भारत के चार राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में बसपा के नेता सहमत नहीं है। इन राज्यों के नेताओं ने आरक्षण में वर्गीकरण का समर्थन करने की बात कही।
यह बात मायावती को पता चली तो उन्होने इस मामले को गंभीरता से लिया, जिसके तहत उन्होंने पार्टी नेताओं को यह संदेश दिया कि बसपा में रहते हुए जो लोग आरक्षण में वर्गीकरण और कांग्रेस की तरह क्रीमी लेयर के पक्षधर हैं, उनका पार्टी में में कोई स्थान नहीं है।
मायावती के अनुसार किसी एक के स्वार्थ में बाकी पूरे बहुजन समाज के हित की उपेक्षा ठीक नहीं। ऐसी मानसिकता के लोग अगर पार्टी छोड़कर खुद चले जाते हैं, तो यह पार्टी और मूवमेंट के हित में उचित निर्णय होगा अन्यथा उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया जाएगा।
मायावती का यह भी कहना है कि एससी-एसटी आरक्षण के वर्गीकरण और क्रीमी लेयर का मुद्दा इन वर्गों को बांटने वाला है। बसपा जाति के आधार पर सदियों से सताए गए इन लोगों को जोड़कर बहुजन समाज बनाने का मानवतावादी मूवमेंट है। इससे कोई समझौता संभव नहीं है।
मायावती के अनुसार, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की सरकारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले ही वहां एससी-एसटी को तोड़ने की राजनीति की जा रही है, जो ठीक नहीं है।
इस मंशा के तहत मायावती ने लिया फैसला
मायावती को लगता है कि आरक्षण में वर्गीकरण के मुद्दे का खुलकर विरोध कर वह पार्टी के खिसक रहे जनाधार को रोक सकती है। बीते लोकसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद से मायावती पार्टी के कैडर वोट को वापस लाने पर फोकस कर रही हैं।
इसी क्रम में जब आरक्षण में वर्गीकरण का मुद्दा उठा तो मायावती ने इसका खुलकर विरोध किया. मायावती को लगता है कि यह मुद्दा आने वाले चुनावों में दलितों को एकजुट कर सकता है। ऐसा होने पर बसपा को फायदा होगा।
इसी सोच के तहत मायावती ने नब्बे के दशक में कांशीराम के चले गए दांव की तर्ज पर आरक्षण में वर्गीकरण के समर्थकों की बसपा में कोई जगह ना होने का संदेश पार्टी नेताओं को दिया। अपने इस फैसले को मायावती ने सोशल मीडिया के जरिए समूचे दलित समाज को भी बता दिया है।