जमानत याचिकाओं पर निर्णय करते समय अदालतों को विशिष्ट कारण बताना चाहिए : उच्चतम न्यायालय
By भाषा | Published: December 6, 2019 06:04 AM2019-12-06T06:04:07+5:302019-12-06T06:04:07+5:30
जमानत मंजूर करने का सवाल आपराधिक अभियोजन का सामना करने वाले व्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही आपराधिक न्यायिक व्यवस्था के हितों से जुड़ा हुआ है जिसमें सुनिश्चित किया जाता है कि जो अपराध करता है उसे न्याय बाधित करने का अवसर नहीं मिले।
उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि अदालतों को जमानत मंजूर करते समय या इंकार करते समय विशिष्ट कारण बताने चाहिए, क्योंकि मामला आरोपी की स्वतंत्रता के साथ ही अपराधी न्याय प्रदान करने में बाधा नहीं पहुंचाए इस बात को सुनिश्चित करने से जुड़ा है।
इसने कहा कि खुला न्याय इस अवधारणा पर आधारित है कि यह न केवल होना चाहिए बल्कि ‘‘स्पष्ट रूप और नि:संदेह रूप से’’ होते हुए दिखना भी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायाधीशों का कारण सहित फैसला देने का कर्तव्य इस प्रतिबद्धता के मूल में है। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने हत्या के मामले में एक आरोपी की जमानत को रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा आरोपी को दी गई जमानत को उच्चतम न्यायालय ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह सकारण आदेश नहीं है और न्यायाधीश ने बिना सोचे समझे फैसला दिया। इसने कहा, ‘‘महज ‘रिकॉर्ड को देख लिया गया है’ और ‘मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए’ दर्ज कर देने से सकारण न्यायिक आदेश के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो जाती। यह खुले न्याय का मूलभूत आधार है जिसके लिए हमारी न्यायिक व्यवस्था प्रतिबद्ध है।
किसी जमानत को खारिज करने या मंजूर करने के जो कारक न्यायाधीश के दिमाग में चलते हैं, उन्हें पारित आदेश में रिकॉर्ड किया जाता है।’’ इसने कहा, ‘‘जमानत मंजूर करने का सवाल आपराधिक अभियोजन का सामना करने वाले व्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही आपराधिक न्यायिक व्यवस्था के हितों से जुड़ा हुआ है जिसमें सुनिश्चित किया जाता है कि जो अपराध करता है उसे न्याय बाधित करने का अवसर नहीं मिले। न्यायाधीशों का कर्तव्य है कि वे बताएं कि किस आधार पर वे निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।’’