कला जगत ने विवादों में घिरे रहने वाले, प्रगतिशील और हर दौर में प्रासंगिक शख्स के तौर पर हुसैन को याद किया

By भाषा | Published: June 18, 2021 03:51 PM2021-06-18T15:51:00+5:302021-06-18T15:51:00+5:30

The art world remembered Hussain as a controversial, progressive and relevant person in all times. | कला जगत ने विवादों में घिरे रहने वाले, प्रगतिशील और हर दौर में प्रासंगिक शख्स के तौर पर हुसैन को याद किया

कला जगत ने विवादों में घिरे रहने वाले, प्रगतिशील और हर दौर में प्रासंगिक शख्स के तौर पर हुसैन को याद किया

(तृषा मुखर्जी)

नयी दिल्ली, 18 जून स्वदेश लौटने के लिए बेताब लेकिन जान से मारने की धमकियां मिलने के कारण इस ख्वाहिश को पूरा न कर सकने वाले मकबूल फिदा हुसैन लंदन में सुपुर्द-ए-खाक होने के दस साल बाद भी भारत के सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय कलाकारों में से एक बने हुए हैं, जिनकी कलाकृतियां दुनियाभर में कला जगत को प्रेरित करती हैं।

इतिहास, पौराणिक कथाओं और भारतीय संस्कृति के उत्साही पाठक हुसैन की कला के एक बड़े हिस्से में तत्कालीन समय की राजनीति के संदर्भ में देवी और देवताओं की पेंटिंग शामिल हैं जिसने उन्हें विवादों में ला खड़ा किया था।

कई प्राथमिकियां दर्ज होने और जान से मारने की धमकियां मिलने के कारण हुसैन को देश से खुद निर्वासित होना पड़ा। वह दुबई में रहे और न्यूयॉर्क तथा लंदन जाते रहे, जहां 95 साल की उम्र में नौ जून 2011 को उनका निधन हो गया और उन्होंने अपने पीछे अपनी विलक्षण कला को छोड़ दिया। निधन से एक साल पहले उन्होंने कतर की नागरिकता ली थी और उनके करीबी लोग अपने देश लौटने के लिए उनकी बेताबी को याद करते हैं।

संग्रहाध्यक्ष (क्यूरेटर) किशोर सिंह उन्हें ऐसे कलाकार के तौर पर याद करते हैं, जिनके पास असाधारण रूप से हर कोई पहुंच सकता था। डीएजी संग्रहाध्यक्ष ने 1982 के एशियाई खेलों से पहले के दौर को याद करते हुए जब हुसैन नयी दिल्ली में कनिष्क होटल (अब शांगरी ला) की छत पर भित्ति चित्र बना रहे थे, कहा कि वह अक्सर बातचीत करने और एक कप चाय पीने के लिए रुकते थे।

सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘मैं अक्सर होटल में जाता था, जो तब निर्माणाधीन था। कोई भी आसानी से उनके पास जाकर हेलो कह सकता था, उनके साथ चाय पी सकता था, उनके साथ बात कर सकता था, जो आज की सेलिब्रिटी संस्कृति में मुश्किल होगा। उन तक आसानी से पहुंचा जा सकता था।’’

बहुलवादी और राजनीतिक शख्सियत हुसैन अपनी सफेद दाढ़ी के साथ आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। एक वक्त में ‘‘नंगे पांव चलने वाला भारत का पिकासो’’ कहे जाने वाले हुसैन को दक्षिण मुंबई के एक क्लब में प्रवेश करने से इसलिए रोक दिया गया था, क्योंकि वह जूते नहीं पहनते थे।

उनकी लोकप्रिय हस्तियों में अच्छी-खासी दिलचस्पी थी, चाहे वह इंदिरा गांधी हो, मदर टेरेसा या माधुरी दीक्षित हो। उनकी कलाकृतियों का एक और विषय ग्रामीण भारत की परेशानियां थीं।

दिल्ली की धूमीमल गैलरी के मालिक ने कहा, ‘‘हुसैन साहब आधुनिक भारत की कला के पर्याय थे। एफ एन सूजा, एस एच रजा और वी एस गायतोंडे जैसे कलाकारों ने कला के पारखियों के बीच भारतीय कला को लोकप्रिय बनाने में अहम योगदान दिया लेकिन आम आदमी के लिए हमेशा एम एफ हुसैन सबसे ऊपर रहे।’’

हुसैन को करीब से जानने वाले और उनके साथ 20 से अधिक साल तक काम करने वाले वढेरा गैलरी के अरुण वढेरा ने कहा कि हुसैन का करीब आठ दशक के करियर में अपना खुद का कभी कोई स्टूडियो नहीं रहा। उन्होंने डिफेंस कॉलोनी में स्थित इस गैलरी के लिए कम से कम 500 कलाकृतियां बनायीं।

‘प्रोग्रेसिव आर्ट मूवमेंट’ के दिनों में ऐसा भी वक्त था जब हुसैन के चित्र 10 रुपये में बिके। उनके निधन के नौ साल बाद 2020 में उनकी पेंटिंग ‘‘वॉयसेस’’ (1958) 18.47 करोड़ रुपये में बिकी, जो कलाकार की सबसे महंगी कलाकृति बन गयी है।

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Web Title: The art world remembered Hussain as a controversial, progressive and relevant person in all times.

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