तेजस्वी यादव पैदा तो हुए चांदी का चम्मच लेकर लेकिन मुकाम हासिल किया अपनी मेहनत के दम पर

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 10, 2022 04:52 PM2022-08-10T16:52:32+5:302022-08-10T16:58:44+5:30

बिहार के करिश्माई नेता लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद की चुनावी कमान संभाली और 75 सीटें जीतकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।

Tejashwi Yadav: Born with a silver spoon but achieved the position on the strength of hard work | तेजस्वी यादव पैदा तो हुए चांदी का चम्मच लेकर लेकिन मुकाम हासिल किया अपनी मेहनत के दम पर

फाइल फोटो

Highlightsतेजस्वी यादव एक बार फिर उपमुख्यमंत्री बनकर बिहार में ‘‘किंगमेकर’’ की भूमिका में आ गए हैंतेजस्वी यादव ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 75 सीटें जीतकर सियासत में खुद को स्थापित कर लियाक्रिकेटर से नेता बने तेजस्वी यादव आरके पुरम के दिल्ली पब्लिक स्कूल से नौवीं कक्षा पास हैं

पटना: सात साल पहले पहली बार विधायक बने तेजस्वी प्रसाद यादव ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर एक शानदार शुरुआत की थी लेकिन उसके बाद उनके राजनीतिक सितारे गर्दिश की ओर जा ही रहे थे कि फिर एक बार किस्मत ने पलटी मारी और अब वह फिर उपमुख्यमंत्री बन कर ‘‘किंगमेकर’’ की भूमिका में बिहार की राजनीति के केंद्र में आ गए हैं।

बिहार के करिश्माई नेता लालू प्रसाद यादव के 33 साल के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की चुनावी कमान संभाली और प्रभावी प्रदर्शन किया। राजद ने इस चुनाव में करीबी मुकाबले में ने 75 सीटें जीतकर अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और सबसे बड़े दल का तमगा हासिल किया।

वह भी ऐसी परिस्थिति में जब पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद जेल में थे और उनके उत्तराधिकारी में स्पष्ट रूप से कौशल की कमी दिख रही थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा तेजस्वी को दूसरी बार उपमुख्यमंत्री बनाए जाने के फैसले के पहले, वह एक सशक्त विपक्ष के नेता के रूप में प्रभाव छोड़ रहे थे और अपने पिता के कट्टर प्रतिद्वंद्वी के नेतृत्व वाली सरकार को वह विधानसभा से लेकर सड़क पर चुनौती दे रहे थे।

राजनीति में नाटकीय तरीके से जनता दल यूनाईटेड और राजद के बीच गठबंधन से ठीक पहले राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी ने कांग्रेस और वाम दलों के साथ मिलकर केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार के खिलाफ व्यापक प्रतिरोध मार्च निकाला था और स्पष्ट संकेत दिया था कि राज्य में विपक्ष के पास संघर्ष की भूख अभी है।

नौ नवंबर 1989 को जन्मे तेजस्वी यादव लालू और राबड़ी देवी के नौ बच्चों में सबसे छोटे हैं और वह अपने पिता के सबसे चहेते भी हैं। लालू ने संभवत: छोटी सी उम्र में ही तेजस्वी की राजनीतिक क्षमता को पहचान लिया था। तेजस्वी की सात बड़ी बहनें और एक छोटी बहन हैं जबकि एक बड़े भाई तेज प्रताप यादव हैं, जिनपर ‘‘तुनकमिजाज’’ होने का अक्सर आरोप लगता है।

लालू की राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी तेजस्वी को घर वाले और रिश्तेदार ‘‘तरुण’’ के नाम से पुकारते हैं। उन्होंने चंडीगढ़ की रहने वाली राचेल आयरिश से विवाह किया है। शादी के बाद राचेल ने अपना नाम ‘‘राजश्री’’ अपना लिया।

राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा अपनी शिक्षा को लेकर अक्सर निशाना बनाए जाने वाले तेजस्वी ने राजधानी दिल्ली के आर के पुरम स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल की कक्षा नौंवी की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। हालांकि, इसके बावजूद उन्होंने परिस्थितियों को पढ़ने और उसमें से एक सर्वश्रेष्ठ रास्ता निकालने की क्षमता जरूर प्रदर्शित की है।

तेजस्वी को लग गया था कि पढ़ाई उनके बस की बात नहीं है। उन्होंने क्रिकेट के मैदान में अपनी आकांक्षाओं को आगे बढ़ाया लेकिन वहां भी उन्हें कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी। वर्ष 2015 में महज 25 साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश से कुछ ही साल पहले उन्होंने क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी थी। राजनीति की पिच उनके लिए मुफीद साबित हुई और उन्होंने राघोपुर से विधानसभा का चुनाव आसानी से जीत लिया।

इस चुनाव में राजद और जदयू के बीच गठबंधन था। हालांकि कुछ ही दिनों बाद यह टूट भी गया। अपने पिता का चहेता होने के अलावा तेजस्वी ने एक परिपक्वता भी दिखाई जो उनकी उम्र के अनुकूल नहीं थी और निश्चित रूप से इस गुण ने उनके उत्थान में अहम भूमिका भी निभाई।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के पहले कार्यकाल में जब लालू रेल मंत्री थे, उस वक्त जमीन के अवैध लेनदेन से जुड़े धन शोधन के एक मामले में तेजस्वी का भी नाम सामने आया। इस मुद्दे पर विपक्षी दलों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जोरदार हमला आरंभ कर दिया।

इसके बाद नीतीश कुमार ने राजद से गठबंधन तोड़ दिया और राजग में वापस लौट गए। तेजस्वी इसके बावजूद रुके नहीं। चारा घोटाले से जुड़े कई मामलों में पिता लालू यादव जेल में थे। इन विपरीत परिस्थितियों में तेजस्वी ने राजद को मजबूत बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

2019 में लोकसभा चुनाव में जब राजद का सूपड़ा साफ हो गया और राज्य की 40 में 39 सीटों पर राजग ने कब्जा जमा लिया तब तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे थे। उस समय भारतीय जनता पार्टी और जदयू ने उन्हें एक ऐसा कमजोर छात्र कहकर उनका मजाक उड़ाया था जो परीक्षा से डरता है।

हालांकि, जब विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई तब सबने तेजस्वी को एक नए रूप में देखा। पार्टी के भीतर विरोध की आवाज उठाने वालों के प्रति उन्होंने कड़ा रुख अपनाया तो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) सहित अन्य दलों के साथ गठबंधन में उन्होंने राजनीतिक कौशल का भी प्रदर्शन किया।

भाकपा (माले) को गठबंधन में साथ लाना आसान नहीं था क्योंकि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष चंद्रशेखर की हत्या का आरोप राजद नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन पर था।

उनके आलोचक यह सोच सकते हैं कि तेजस्वी ने तात्कालिक फायदे के लिए उपमुख्यमंत्री बनना आसानी से स्वीकार कर लिया जबकि वह इंतजार करते तो शायद मुख्यमंत्री की कुर्सी भी हासिल कर सकते थे। हालांकि, समर्थकों का यह मानना है कि उन्होंने पांच साल पहले राजद को सत्ता से बाहर कर ‘‘पिछले दरवाजे से सत्ता’’ हासिल करने वाली भाजपा को करारा जवाब दिया है।

Web Title: Tejashwi Yadav: Born with a silver spoon but achieved the position on the strength of hard work

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