तमिलनाडु: मद्रास हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम को दिया झटका, दशकों पुराने भ्रष्टाचार के केस को फिर से खोला
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: September 1, 2023 02:31 PM2023-09-01T14:31:31+5:302023-09-01T14:47:38+5:30
मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम को तगड़ा झटका देते हुए दशकों पुराने भ्रष्टाचार के केस में स्वत: संज्ञान लेते हुए उसे फिर से खोलने का आदेश दिया है।
चेन्नई: मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और निष्कासित अन्नाद्रमुक नेता ओ पन्नीरसेल्वम को उस समय बेहद तगड़ा झटका दिया, जब कोर्ट ने उनके खिलाफ दशकों पुराने भ्रष्टाचार के केस को स्वत: संज्ञान लेते हुए फिर से खोलने का आदेश दिया है, जिसमें वो बरी हो गये थे।
समाचार वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार हाईकोर्ट ने यह आदेश सत्ताधारी डीएमके के शीर्ष मंत्रियों के पोनमुडी, थंगम थेनारासु और केकेएसआर रामचंद्रन से जुड़े ऐसे ही केस में मिली रिहाई के मामले पर फिर से विचार करते हुए दिया है।
जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने अपने आदेश में न्याय के उस सिद्धांत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि "अपराध कभी नहीं मरता" उन्होंने आदेश दिया कि अदालत इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं है कि शिवगंगा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) को मामले में आदेश दिये 10 साल हो गए हैं।"
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में दिसंबर 2012 में शिवगंगा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पन्नीरसेल्वम को बरी करने के आदेश का जिक्र करते हुए कहा, "पैराग्राफ 25 में सूचीबद्ध तथ्य चौंकाने वाले और परेशान करने वाले हैं।" यह एक ऐसा मामला है जहां एक राजनीतिक व्यक्ति ने योजनाबद्ध तरीके से डीवीएसी (सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय), राज्य सरकार और न्यायालय को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित किया कि उनके खिलाफ मुकदमा पटरी से उतर जाए।"
जस्टिस वेंकटेश ने गुरुवार को दिये अपने आदेश में कहा, "पूर्व मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम और उनके परिवार के सदस्यों से जुड़े इस केस में एक चौंकाने वाली कहानी उजागर होती है कि कैसे इन सभी लोगों ने मिलकर सामूहिक प्रयास से आपराधिक न्याय प्रणाली को ही नष्ट कर दिया गया था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी आरोपियों को कानून के चंगुल से छुड़ाया जा सके।"
मालूम हो कि यह मामला उस वक्त का है, जब पन्नीरसेल्वम 2001-2006 के बीच राजस्व मंत्री और 2001-2002 के बीच में राज्य के मुख्यमंत्रीथे। साल 2006 में जब डीएमके सत्ता में आई तो डीवीएसी द्वारा प्रारंभिक जांच के बाद पूर्व मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
मामले की जांच मदुरै के डीवीएसी के पुलिस उपाधीक्षक एन कुलोथुंगा पांडियन ने की थी और पन्नीरसेल्वम के खिलाफ 272 गवाहों से पूछताछ की गई थी और 235 दस्तावेज एकत्र किए गए थे।
साल 2009 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष आर अवुदियाप्पन ने मामले में अभियोजन की मंजूरी दे दी थी क्योंकि उस वक्त पन्नीरसेल्वम विधायक थे। उसके बाद सीआरपीसी धारा 173(2) के तहत एक रिपोर्ट थेनी में सीजेएम (विशेष न्यायालय) के समक्ष दायर की गई थी कि पन्नीरसेल्वम ने आय के ज्ञात स्रोतों से 374 फीसदी अधिक संपत्ति अवैध तरीके से अर्जित की है।
उसके बाद साल 2011 में जब पन्नीरसेल्वम की पार्टी एआईएडीएमके तमिलनाडु की सत्ता में लौटी तो पन्नीरसेल्वम राज्य के वित्त मंत्री बने। संयोगवश उसी समय साल 2011 में मदुरै में एक विशेष अदालत का गठन किया गया, जिसने सीजेएम थेनी को मामले से प्रभावी रूप से हटा दिया था। लेकिन मदुरै में एक विशेष अदालत के निर्माण के बावजूद केस के सारे रिकॉर्ड थेनी अदालत में ही रखे गए।
एक असामान्य कदम में आरोपी पन्नीरसेल्वम ने आगे की जांच के लिए एक याचिका दायर की, जिसे थेनी सीजेएम ने स्वीकार कर लिया।
बीते गुरुवार के मद्रास हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि लेकिन आगे की जांच के लिए थेनी अदालत द्वारा उद्धृत कारण "कई प्राथमिक सिद्धांतों की अवहेलना करते हैं, जिन्हें आपराधिक कानून में एक नौसिखिया भी नजरअंदाज नहीं करेगा।
हाईकोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए आदेश जारी किया है कि पन्नीरसेल्वम और डीवीएसी को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 27 सितंबर को तय की है।