‘ताला नगरी’ अलीगढ़ में जीएसटी और नोटबंदी अहम चुनावी मुद्दा!
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 17, 2019 05:30 AM2019-04-17T05:30:49+5:302019-04-17T05:30:49+5:30
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का अलीगढ़ शहर मुगलकाल से तालों के लिए जाना जाता है
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का अलीगढ़ शहर मुगलकाल से तालों के लिए जाना जाता है. कभी इस उद्योग में एक लाख से ज्यादा लोग काम करते थे लेकिन नोटबंदी और जीएसटी के बाद इस उद्योग के ऊपर संकट के बादल छा गए हैं और इस चुनाव में यहां के लोग इसे ही चुनावी मुद्दा बनाने के मूड में नजर आ रहे हैं.
इस उद्योग में काम करने वाली शांति जो 4 अन्य श्रमिकों के साथ एक दिन में 9 घंटे काम करती हैं, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नवंबर, 2016 में नोटबंदी करने के बाद से पहले की तुलना में काफी कम मेहनताना कमा पा रही हैं. शांति के पास की चार मशीनें खाली पड़ी हुई हैं. उन्होंने कहा, ‘‘पिछले तीन साल से नोटबंदी के बाद से ये मशीनें खाली पड़ी हैं. अब मैं दो लोगों का काम 150 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से करती हूं. नवंबर-2016 से पहले मैं 400 रुपए प्रतिदिन कमाती थी.’’
शांति के सहकर्मी जमाल बताते हैं कि हमें नोटबंदी और उंची जीएसटी दर से जो नुकसान उठाना पड़ा है, उसे ध्यान में रखते हुए हम मतदान करेंगे.’’ जमाल और शांति उन अर्ध-कुशल श्रमिकों में से हैं जो न्यूनतम वेतन के दायरे में आने के उपयुक्त नहीं हैं क्योंकि वह जिस कंपनी में काम करती हैं, उसमें 20 से कम कर्मचारी हैं. इनके जैसे श्रमिकों के लिए कुटीर उद्योग में न्यूयनत मेहनताना प्रतिदिन 324 रुपए है. अलीगढ़ का ताला उद्योग देश में कुल तालों के उत्पादन में 75 फीसदी योगदान देता है.