सुप्रीम कोर्ट ने बुर्का विवाद की सुनवाई करते हुए कहा, "कृपया पगड़ी की तुलना बुर्के से मत कीजिए, वो महज धार्मिक पहनावा नहीं है"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: September 6, 2022 05:05 PM2022-09-06T17:05:44+5:302022-09-06T17:30:30+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा शैक्षणिक संस्थानों में बुर्का प्रतिबंध को सही ठहराये जाने वाले फैसले के संबंध में चुनौती दी गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पूछा कि क्या कोई छात्रा स्कूल में बुर्का पहन सकती है, जहां सभी के लिए एक ही यूनिफॉर्म लागू की गई हो।

Supreme Court, while hearing the burqa controversy, said, "Please do not compare the turban with the burqa, it is not just a religious dress" | सुप्रीम कोर्ट ने बुर्का विवाद की सुनवाई करते हुए कहा, "कृपया पगड़ी की तुलना बुर्के से मत कीजिए, वो महज धार्मिक पहनावा नहीं है"

फाइल फोटो

Highlightsसुप्रीम कोर्ट ने बुर्का विवाद में सुनवाई करते हुए कहा क्या इसे स्कूल में भी पहना जा सकता हैमूल सवाल यह है कि क्या छात्राएं स्कूल में बुर्का पहन सकती है, जहां यूनिफॉर्म निर्धारित हो सभी अपने धर्म की प्रैक्टिस करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन क्या यह स्कूलों में भी किया जा सकता है

दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में बुर्का प्रतिबंध विषय की सुनवाई करते हुए कहा कि सभी व्यक्ति को धर्म का पालन करने का अधिकार है, लेकिन यहां पर मूल सवाल यह है कि क्या इसे स्कूल में भी निर्धारित किया जा सकता है।

कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार द्वारा शैक्षणिक संस्थानों में बुर्का प्रतिबंध को सही ठहराये जाने वाले फैसले के संबंध में चुनौती दी गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पूछा कि क्या कोई छात्रा स्कूल में बुर्का पहन सकती है, जहां सभी के लिए एक ही यूनिफॉर्म लागू की गई हो।

सर्वोच्च अदालत में जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, "आप जिस भी धर्म की प्रैक्टिस करना चाहते हैं, उसका आपको पूरा अधिकार है लेकिन क्या आप धर्म की उस प्रैक्टिस को स्कूलों में जारी रख सकते हैं, जिसमें सभी के लिए समान यूनिफॉर्म लागू है?

सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल कोर्ट में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े से किया, जो कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस के लिए कोर्ट में मौजूद थे। याचिका में शामिल किये तर्क, जिसमें कहा गया है कि राज्य केवल बुर्के के कारण महिलाओं को शिक्षा से वंचित करने का प्रयास कर रहा है।

बेंच ने कहा कि राज्य तो कहीं भी यह नहीं कह रहा है कि वह बुर्का के कारण शिक्षा के अधिकार को प्रतिबंधित कर रहा है। राज्य तो केवल यह कह रहा है कि सभी छात्र-छात्राओं को स्कूलों द्वारा निर्धारित यूनिफॉर्म में शिक्षा लेने के लिए आना जरूरी है।

जिसके जवाब में संजय हेगड़े ने कहा कि राज्य सरकार के बुर्का प्रतिबंध से समाज के एक बड़े वर्ग की शिक्षा पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और यह प्रतिबंध कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 के प्रावधानों के खिलाफ है। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा, "क्या ऐसी स्थिति हो सकती है, जहां लड़कियों को मिनी और मिडी पहनने की अनुमति दी जा सकती है या वे जो चाहे पहन सकती हैं, अगर सरकार द्वारा स्कूल ड्रेस लागू करने की कोई शक्ति नहीं है?"

हेगड़े ने कहा कि सबरीमाला रिव्यू मामले को 9 जजों की बेंच को भेजा गया था। अनुच्छेद 25 के तहत अधिकार का दायरा क्या है? अनुच्छेद 25 और 26 के तहत नैतिकता शब्द का दायरा और विस्तार क्या है? कोर्ट ने कहा इस मामले में धार्मिक प्रथा कहां है?

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि वे शिक्षा के अधिकार से इनकार नहीं कर रहे हैं, बस यूनिफॉर्म की बात कर रहे है। वकील हेगड़े ने कहा लेकिन चुन्नी भी तो ड्रेस का पार्ट होती है। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि कंधों को ढकने के लिए चुन्नी का इस्तेमाल किया जाता है, कृपया चुन्नी की तुलना हिजाब से न करें। सिख महिलाएं इसे गुरुद्वारे में सिर ढकने के लिए पहनती हैं।

मामले में राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज ने कहा कि यह मुद्दा बहुत ही सीमित है और यह सीधे तौर पर शैक्षणिक संस्थानों से संबंधित अनुशासन से जुड़ा हुआ है। एएसजी केएम नटराज के इस तर्क पर कोर्ट ने उनसे पूछा कि "अगर कोई लड़की स्कूल में बुर्का पहनती है तो उसके कारण स्कूल में अनुशासन किस तरह से प्रभावित होता है।

जिसके जवाब में एएसजी ने कहा, "स्कूल परिसर में अगर हर कोई अपनी धार्मिक प्रथा या अधिकार का हवाला देते हुए ऐसा करने लगेगा तो स्कूल में समरसता का अभाव पैदा होगा, इसलिए यह सीधे तौर पर स्कूलों के अनुशासन से जुड़ा हुआ मामला है।"

कर्नाटक के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने कोर्ट में राज्य सरकार के 5 फरवरी 2022 के आदेश का हवाला दिया, जिसके राज्य सरकार ने स्कूलों और कॉलेजों में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने वाले कपड़ों को पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। जिसे राज्य की कुछ मुस्लिम लड़कियों द्वारा कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। .

महाधिवक्ता नवदगी ने अपने तर्क कहा कि यह राज्य का नहीं बल्कि संबंधित शैक्षणिक संस्थान का अधिकार है कि वो स्कूलों में किस तरह की यूनिफॉर्म को लागू करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, "सरकार का यह आदेश छात्राओं के किसी भी अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करता है।"

मामले में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने संविधान के अनुच्छेद 145 (3) का हवाला देते हुए कहा कि यह काफी महत्वपूर्ण मामला है। राजीव धवन ने बेंच के सामने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में भी एक पूर्व जज तिलक लगाते थे और पगड़ी पहना करते थे। कोर्ट नंबर 2 में एक तस्वीर लगी है, जिसमें जज को पगड़ी पहने हुए हैं।

सवाल यह है कि क्या महिलाओं को सरकार द्वारा तय किये ड्रेस कोड का पालन करना चाहिए और क्या बुर्का इस्लाम की अनन्य धार्मिक प्रथा है। यूनिफॉर्म निर्धारित करने की शक्ति सरकार को नहीं दी गई थी और यदि कोई व्यक्ति यूनिफॉर्म पर अतिरिक्त कोई चीज पहनता है तो यह यूनिफॉर्म का उल्लंघन नहीं होगा।

इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि पगड़ी बुर्के के समान नहीं है। यह धार्मिक नहीं है इसकी पगड़ी की तुलना बुर्के से नहीं की की जा सकती है। यह शाही राज्यों में पहनी जाती थी, मेरे दादा जी कानून की प्रेक्टिस करते हुए भी पगड़ी पहनते थे। कृपया पगड़ी की तुलना बुर्के से मत कीजिए। बुर्का पहनना एक आवश्यक प्रथा हो सकती है या नहीं, सवाल यह हो सकता है कि क्या सरकार महिलाओं के ड्रेस कोड को निर्धारित करने की शक्ति रखती है। इसके बाद अदालत ने सुनवाई को बुधवार के लिए टाल दी। (समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

Web Title: Supreme Court, while hearing the burqa controversy, said, "Please do not compare the turban with the burqa, it is not just a religious dress"

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