सुप्रीम कोर्ट की केंद्र पर सख्त टिप्पणी, कहा- 'आपके लॉकडाउन लगाने से ही बढ़ा आर्थिक संकट, कर्ज पर ब्याज में छूट पर रुख स्पष्ट करें'
By भाषा | Published: August 26, 2020 02:29 PM2020-08-26T14:29:01+5:302020-08-26T14:32:34+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने मोरेटोरियम अवधि में कर्ज पर ब्याज में छूट के लिए याचिका के मामले में बुधवार को केंद्र पर सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा- ये स्थिति आपकी वजह से आई क्योंकि आपने देश को लॉकडाउन में डाल दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को लोन मोरेटोरियम अवधि में कर्ज पर ब्याज में छूट की मांग के मामले में केंद्र से जवाब मांगते हुए अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मामले में 1 सितंबर तक अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है।
साथ ही केंद्र पर सख्त टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा, 'आप रिजर्व बैंक के पीछे नहीं छुप सकते। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आपने पूरे देश को बंद कर दिया था। आप दो चीजों पर अपना स्टैंड क्लियर करें- आपदा प्रबंधन कानून पर और क्या ईएमआई पर ब्याज लगेगा?'
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि केंद्र ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, जबकि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत उसके पास पर्याप्त शक्तियां थीं और वह ‘आरबीआई के पीछे छिप रही है।’
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा, जिसे शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया। मेहता ने कहा, ‘हम आरबीआई के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।’
पीठ में जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम आर शाह भी शामिल हैं। मेहता ने तर्क दिया कि सभी समस्याओं का एक सामान्य समाधान नहीं हो सकता। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि कर्ज की स्थगित किस्तों की अवधि 31 अगस्त को समाप्त हो जाएगी और उन्होंने इसके विस्तार की मांग की।
क्या है पूरा मामला और याचिका में मांग क्या है
आगरा के गजेन्द्र शर्मा की ओर से ये याचिका आई है। शर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि रिजर्व बैंक की 27 मार्च की अधिसूचना में किस्तों की वसूली स्थगित तो की गयी है पर कर्जदारों को इसमें काई ठोस लाभ नहीं दिया गया है।
याचिकाकर्ता ने अधिसूचना के उस हिस्से को निकालने के लिये निर्देश देने का आग्रह किया है जिसमें स्थगन अवधि के दौरान कर्ज राशि पर ब्याज वसूले जाने की बात कही गई है। इससे याचिकाकर्ता जो कि एक कर्जदार भी है, का कहना है कि उसके समक्ष कठिनाई पैदा होती है।
इससे उसको भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में दिये गये ‘जीवन के अधिकार’ की गारंटी मामले में रुकावट आड़े आती है।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कहा था, ‘जब एक बार स्थगन तय कर दिया गया है तब उसे उसके उद्देश्य को पूरा करना चाहिये। ऐसे में हमें ब्याज के ऊपर ब्याज वसूले जाने की कोई तुक नजर नहीं आता है।’
कोर्ट का मानना है कि यह पूरी रोक अवधि के दौरान ब्याज को पूरी तरह से छूट का सवाल नहीं है बल्कि यह मामला बैंकों द्वारा बयाज के ऊपर ब्याज वसूले जाने तक सीमित है।
कोर्ट ने कहा था कि यह चुनौतीपूर्ण समय है ऐसे में यह गंभीर मुद्दा है कि एक तरफ कर्ज किस्त भुगतान को स्थगित किया जा रहा है जबकि दूसरी तरफ उस पर ब्याज लिया जा रहा है।