सुप्रीम कोर्ट ने किताब पर बैन लगाने से किया इनकार, कहा- लेखकों के काम का सम्मान किया जाना चाहिए

By भाषा | Published: September 5, 2018 05:47 PM2018-09-05T17:47:33+5:302018-09-05T17:47:33+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने दो अगस्त को पुस्तकों पर प्रतिबंध के चलन की आलोचना करते हुये कहा था कि इससे विचारों का स्वतंत्र प्रवाह बाधित होती है।

supreme court refuse to ban on Malayalam novel 'Meesha' | सुप्रीम कोर्ट ने किताब पर बैन लगाने से किया इनकार, कहा- लेखकों के काम का सम्मान किया जाना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने किताब पर बैन लगाने से किया इनकार, कहा- लेखकों के काम का सम्मान किया जाना चाहिए

नयी दिल्ली, पांच सितंबर: उच्चतम न्यायालय ने उस पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने के लिये दायर याचिका बुधवार को खारिज कर दी जिसमें एक हिन्दू महिला के मंदिर में जाने को कथित रूप से अपमानजनक तरीके से पेश किया गया था। 

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने याचिका खारिज करते हुये कहा कि किसी लेखक के कार्य कौशल का सम्मान किया जाना चाहिए और पुस्तक को अंशों की बजाये संपूर्णता में पढ़ा जाना चाहिए। 

पीठ ने दिल्ली निवासी एन राधाकृष्णन की याचिका पर अपने फैसले में कहा कि किसी पुस्तक के बारे में अपने दृष्टिकोण को सेन्सरशिप के लिये कानूनी दायरे में नहीं लाना चाहिए। पीठ ने कहा कि लेखक को अपने शब्दों का उसी तरह से खेलने की अनुमति दी जानी चाहिए जैसे एक चित्रकार रंगों से खेलता है।

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में लेखकर एस हरीश की मलयाली उपन्यास ‘मीशा’ (मूंछ) के कुछ अंश हटाने का अनुरोध किया था।

शीर्ष अदालत ने दो अगस्त को पुस्तकों पर प्रतिबंध के चलन की आलोचना करते हुये कहा था कि इससे विचारों का स्वतंत्र प्रवाह बाधित होती है। न्यायालय ने यह भी कहा था कि साहित्यिक कार्य उसी समय प्रतिबंधित किया जा सकता है जब वह भारतीय दंड संहिता की धारा 292 जैसे किसी कानून का उल्लंघन करता हो। 

राधाकृष्णन ने याचिका में आरोप लगाया था कि पुस्तक में मंदिरों में पूजा कराने वाले ब्राह्मणों के बारे में की गयी चुनिन्दा टिप्पणियां ‘जातीय आक्षेप’ जैसी हैं। इसमें यह भी आरोप लगाया गया था कि केरल सरकार ने इस पुस्तक का प्रकाशन, इसकी आन लाइन बिक्री और उपन्यास की उपलब्धता रोकने के लिये उचित कदम नहीं उठाये।

केन्द्र और राज्य सरकार दोनों ने ही पुस्तक पर प्रतिबंध के लिये दायर याचिका का विरोध करते हुये कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित नहीं किया जाना चाहिए। 

Web Title: supreme court refuse to ban on Malayalam novel 'Meesha'

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