इंसान को गलती का एहसास होना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-हमने भूषण को समय दिया, लेकिन उनका कहना है कि वह माफी नहीं मांगेंगे
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 25, 2020 01:26 PM2020-08-25T13:26:54+5:302020-08-25T14:14:07+5:30
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि अवमानना के लिए दोषी ठहराए गए वकील प्रशांत भूषण को माफी दी जानी चाहिए। प्रशांत भूषण को बोलने की स्वतंत्रता है, लेकिन उनका कहना है कि वह अवमानना के लिए माफी नहीं मांगेंगे।
नई दिल्लीः एक्टिविस्ट अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक दो ट्वीट के लिये उच्चतम न्यायालय से माफी मांगने से सोमवार को इंकार कर दिया।
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि अवमानना के लिए दोषी ठहराए गए वकील प्रशांत भूषण को माफी दी जानी चाहिए। प्रशांत भूषण को बोलने की स्वतंत्रता है, लेकिन उनका कहना है कि वह अवमानना के लिए माफी नहीं मांगेंगे।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इंसान को अपनी गलती का एहसास होना चाहिए, हमने भूषण को समय दिया, लेकिन उनका कहना है कि वह माफी नहीं मांगेंगे। अदालत को भूषण को चेतावनी देनी चाहिए और दयापूर्ण रुख अपनाना चाहिए। अदालत केवल अपने आदेश के जरिए ही अपनी बात रख सकती है। अपने हलफनामे में भी प्रशांत भूषण ने अपमानजनक टिप्पणी की है।
प्रशांत भूषण ने कहा कि इनमें उन्होंने अपने उन विचारों को व्यक्त किया है जिन पर वह हमेशा विश्वास करते हैं। प्रशांत भूषण ने स्वत: अवमानना के मामले में दाखिल अपने पूरक बयान में कहा कि पाखंडपूर्ण क्षमा याचना मेरी अंतरात्मा और एक संस्थान के अपमान समान होगा।
अटॉर्नी जनरल ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि प्रशांत भूषण खेद व्यक्त करेंगे। शीर्ष अदालत की पीठ ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि प्रशांत भूषण ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ध्वस्त हो गया है, क्या यह आपत्तिजनक नहीं है। न्यायपालिका के खिलाफ अपने अपमानजनक ट्वीट को लेकर खेद नहीं प्रकट करने के अपने रुख पर दोबारा विचार करने के लिए उच्चतम न्यायालय ने प्रशांत भूषण को 30 मिनट दिए।
Supreme Court starts hearing in the 2020 suo moto criminal contempt case against lawyer Prashant Bhushan. Attorney General KK Venugopal tells Court that Bhushan may be allowed to go with a warning.
— ANI (@ANI) August 25, 2020
न्यायालय ने भूषण के खिलाफ 2009 के अवमानना मामले को दूसरी पीठ को भेजा
उच्चतम न्यायालय ने कार्यकर्ता-अधिवक्ता प्रशांत भूषण तथा पत्रकार तरुण तेजपाल के खिलाफ 2009 के अवमानना मामले को मंगलवार को दूसरी पीठ को सौंपने का फैसला किया है। एक समाचार पत्रिका को दिए साक्षात्कार में भूषण ने शीर्ष अदालत के कुछ तत्कालीन न्यायाधीशों और पूर्व न्यायाधीशों पर कथित तौर पर कुछ आरोप लगाए थे, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने नवंबर 2009 में भूषण और तेजपाल को अवमानना के नोटिस जारी किये थे। जिस पत्रिका को भूषण ने साक्षात्कार दिया था, उसके संपादक तेजपाल थे।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष प्रशांत भूषण की ओर से पेश अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा था कि उनके मुवक्किल की ओर से उठाए गए कम से कम दस प्रश्न ऐसे हैं, जो संवैधानिक महत्व के हैं तथा उन्हें संविधान पीठ को ही देखने की जरूरत है।
न्यायमूर्ति बीआर गवई तथा न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी भी पीठ का हिस्सा हैं। पीठ ने कहा, ‘‘ये व्यापक मुद्दे हैं, जिन पर विस्तार से विचार करने की आवश्यकता है। हम इसमें न्याय मित्र की मदद ले सकते हैं और मामले पर एक उपयुक्त पीठ विचार कर सकती है।’’
वीडियो कॉन्फ्रेस के माध्यम से हुई सुनवाई में पीठ ने कहा कि यह मामला काफी समय से लंबित है, इसे 10 सितंबर को एक उपयुक्त पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए। दो सितंबर को सेवानिवृत्त होने जा रहे न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि इस मामले को देखने के लिए समय चाहिए अत: इसे ‘‘एक उपयुक्त पीठ को सौंपते हैं’’।
प्रशांत भूषण को इन दो ट्वीट के लिये न्यायालय की आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया
शीर्ष अदालत ने प्रशांत भूषण को इन दो ट्वीट के लिये न्यायालय की आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया है। भूषण ने कहा कि अदालत के अधिकारी के रूप में उनका मानना है कि जब भी उन्हें लगता है कि यह संस्था अपने स्वर्णिम रिकार्ड से भटक रही है तो इस बारे में आवाज उठाना उनका कर्तव्य है। भूषण ने कहा, ‘‘इसलिए, मैंने अपने विचार अच्छी भावना में व्यक्त किए, न कि उच्चतम न्यायालय या किसी प्रधान न्यायाधीश विशेष को बदनाम करने के लिये, बल्कि रचनात्मक आलोचना पेश करने के लिए ताकि संविधान के अभिभावक और जनता के अधिकारों के रक्षक के रूप में अपनी दीर्घकालीन भूमिका से इसे किसी भटकाव से रोका जा सके।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरे ट्वीट इस सदाशयता के विश्वास का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें मैं हमेशा अपनाता हूं। इन आस्थाओं के बारे में सार्वजनिक अभिव्यक्ति एक नागरिक के रूप में उच्च दायित्वों और इस न्यायालय के बफादार अधिकारी के अनुरूप है। इसलिए इन विचारों की अभिव्यक्ति के लिये सशर्त या बिना शर्त क्षमा याचना करना पाखंड होगा।’’ भूषण ने आगे कहा कि क्षमा याचना सिर्फ औपचारिकता ही नहीं हो सकती है और कि यह पूरी गंभीरता से की जानी चाहिए।
बिना शर्त माफी मांगने के लिये 24 अगस्त तक का समय दिया था
न्यायालय ने 20 अगस्त को भूषण को न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक ट्वीट के लिये क्षमा याचना से इंकार करने संबंधी अपने बगावती बयान पर पुनर्विचार करने और बिना शर्त माफी मांगने के लिये 24 अगस्त तक का समय दिया था। न्यायालय ने अवमानना के लिये दोषी ठहराये गये भूषण की सजा के मामले पर दूसरी पीठ द्वारा सुनवाई का उनका अनुरोध ठुकराया दिया है।
शीर्ष अदालत ने 14 अगस्त को प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक दो ट्वीट के लिये आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था। न्यायालय ने कहा था कि इन ट्वीट को ‘जनहित में न्यायपालिका की कार्यशैली की स्वस्थ आलोचना के लिये किया गया’ नहीं कहा जा सकता। न्यायालय की अवमानना के जुर्म में उन्हें अधिकतम छह महीने तक की कैद या दो हजार रुपए का जुर्माना अथवा दोनों की सजा हो सकती है।