सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला, अब आरटीआई के दायरे में आएगा CJI का ऑफिस 

By रामदीप मिश्रा | Published: November 13, 2019 02:37 PM2019-11-13T14:37:00+5:302019-11-13T14:44:30+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि 'पारदर्शिता न्यायिक स्वतंत्रता' को कम नहीं करती है। इसलिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का पद आरटीआई के दायरे में आता है।

Supreme Court holds that office of CJI is public authority under the purview of transparency law, RTI | सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला, अब आरटीआई के दायरे में आएगा CJI का ऑफिस 

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Highlightsअब सीजेआई का ऑफिस आरटीआई के दायरे में आएगा। सीजेआई रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है।

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के कार्यालय को सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में लाने संबंधी दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। अब सीजेआई का ऑफिस आरटीआई के दायरे में आएगा। 

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि 'पारदर्शिता न्यायिक स्वतंत्रता' को कम नहीं करती है। इसलिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का पद आरटीआई के दायरे में आता है। सीजेआई रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है। पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना हैं। 


पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने उच्च न्यायालय और केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के आदेशों के खिलाफ 2010 में शीर्ष अदालत के महासचिव और केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा दायर अपीलों पर गत चार अप्रैल को निर्णय सुरक्षित रख लिया था।

प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि कोई भी ‘‘अपारदर्शिता की व्यवस्था’’ नहीं चाहता, लेकिन पारदर्शिता के नाम पर न्यायपालिका को नष्ट नहीं किया जा सकता। इसने कहा था, ‘‘कोई भी अंधेरे की स्थिति में नहीं रहना चाहता या किसी को अंधेरे की स्थिति में नहीं रखना चाहता। आप पारदर्शिता के नाम पर संस्था को नष्ट नहीं कर सकते।’’ 

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 10 जनवरी 2010 को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई कानून के दायरे में आता है। इसने कहा था कि न्यायिक स्वतंत्रता न्यायाधीश का विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि उस पर एक जिम्मेदारी है। इस 88 पृष्ठ के फैसले को तब तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन के लिए निजी झटके के रूप में देखा गया था जो आरटीआई कानून के तहत न्यायाधीशों से संबंधित सूचना का खुलासा किए जाने के विरोध में थे। 

उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत की इस दलील को खारिज कर दिया था कि सीजेआई कार्यालय को आरटीआई के दायरे में लाए जाने से न्यायिक स्वतंत्रता ‘‘बाधित’’ होगी। 
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के आधार पर)

Web Title: Supreme Court holds that office of CJI is public authority under the purview of transparency law, RTI

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