11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली बिलकिस बानो की पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज, जानें मामला
By मनाली रस्तोगी | Published: December 17, 2022 11:37 AM2022-12-17T11:37:15+5:302022-12-17T11:38:23+5:30
सामूहिक बलात्कार और परिवार की हत्या के दोषी 11 लोगों की जल्द रिहाई को चुनौती देने वाली बिलकिस बानो की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को बिलकिस बानो द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें 2002 में उसके साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों की जल्द रिहाई को चुनौती दी गई थी। उन सभी 11 लोगों को अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
हालांकि, इस मामले में 2008 में जिन 11 लोगों को दोषी ठहराया गया था, उन्हें 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से छोड़ दिया गया, जब गुजरात सरकार ने अपनी छूट नीति के तहत उनकी रिहाई की अनुमति दी। बता दें कि जब बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था, तब वो पांच महीने गर्भवती थी। मारे गए परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी।
दोषियों को क्यों रिहा किया गया?
इस मामले के दोषियों में से एक ने 9 जुलाई 992 की नीति के तहत समय से पहले रिहाई के लिए उसके आवेदन पर विचार करने के लिए गुजरात राज्य को निर्देश देने के लिए भारत के सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जो उसकी सजा के समय मौजूद था। सुप्रीम कोर्ट ने तब गुजरात सरकार को आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया क्योंकि छूट या समय से पहले रिहाई सहित सभी कार्यवाहियों पर नीति के संदर्भ में विचार किया जाना था जो गुजरात राज्य में लागू है।
जल्दी रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में गुजरात सरकार ने एक हलफनामा दायर कर सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि 11 दोषियों को उनके अच्छे व्यवहार और केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद जेल में 14 साल पूरे करने के बाद रिहा किया गया था।
याचिका में क्या कहा गया है?
बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट के मई के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें गुजरात सरकार को मामले में 1992 के छूट नियमों को लागू करने की अनुमति दी गई थी। उसने 11 बलात्कार के दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका भी दायर की।
दलील में कहा गया है कि 11 दोषियों को जेल से रिहा नहीं किया जा सकता था और महाराष्ट्र राज्य की छूट नीति को इस मामले को नियंत्रित करना चाहिए क्योंकि शीर्ष अदालत ने 2004 में अहमदाबाद से मुंबई में एक सक्षम अदालत में मुकदमे को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था।
बिलकिस ने कहा कि उन्होंने राज्य सरकार से सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई से संबंधित कागजात या पूरी फाइल का अनुरोध किया, लेकिन रिमाइंडर के बावजूद राज्य सरकार की ओर से कुछ भी नहीं आया। उसने कहा कि अपराध की शिकार होने के बावजूद उसे छूट या समय से पहले रिहाई की ऐसी किसी प्रक्रिया के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।