सुप्रीम कोर्ट ने विवाहित महिला को 26 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति नहीं दी, पुराना फैसला पलटा

By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: October 16, 2023 05:27 PM2023-10-16T17:27:26+5:302023-10-16T17:29:56+5:30

शीर्ष अदालत ने नौ अक्टूबर को महिला को यह ध्यान में रखते हुए गर्भ को चिकित्सीय रूप से समाप्त करने की अनुमति दी थी कि वह अवसाद से पीड़ित है और ‘भावनात्मक, आर्थिक और मानसिक रूप से’ तीसरे बच्चे को पालने की स्थिति में नहीं है।

Supreme Court did not allow a married woman to abort a pregnancy of 26 weeks | सुप्रीम कोर्ट ने विवाहित महिला को 26 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति नहीं दी, पुराना फैसला पलटा

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

Highlightsसुप्रीम कोर्ट ने 26 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति नहीं दीकहा- भ्रूण में कोई विसंगति नहीं देखी गयीमहिला का गर्भ 26 सप्ताह और पांच दिन का हो गया था

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने एक अहम फैसले में  विवाहित महिला को 26 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि भ्रूण में कोई विसंगति नहीं देखी गयी। न्यायालय ने कहा है कि गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक की हो गयी है, इसलिए चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति नहीं दी जा सकती।  न्यायालय ने कहा कि महिला का गर्भ 26 सप्ताह और पांच दिन का हो गया है, इस मामले में महिला को तत्काल कोई खतरा नहीं है और यह भ्रूण में विसंगति का मामला नहीं है।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ दो बच्चों की मां को 26-सप्ताह का गर्भ समाप्त करने के शीर्ष अदालत के नौ अक्टूबर के आदेश को वापस लेने की केन्द्र सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चिकित्सकीय बोर्ड से महिला के 26 सप्ताह के भ्रूण के संबंध में यह रिपोर्ट देने को कहा था कि क्या वह (भ्रूण) किसी विकृति से ग्रस्त है।

बता दें कि गर्भ का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के तहत गर्भावस्था को समाप्त करने की ऊपरी सीमा विवाहित महिलाओं और बलात्कार पीड़िताओं सहित विशेष श्रेणियों और विकलांग तथा नाबालिगों के लिए 24 सप्ताह है। 

यह मामला न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष उस वक्त आया था जब  दो न्यायाधीशों की पीठ ने महिला को 26-सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने के अपने नौ अक्टूबर के आदेश को वापस लेने की केंद्र की याचिका पर खंडित फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने नौ अक्टूबर को महिला को यह ध्यान में रखते हुए गर्भ को चिकित्सीय रूप से समाप्त करने की अनुमति दी थी कि वह अवसाद से पीड़ित है और ‘भावनात्मक, आर्थिक और मानसिक रूप से’ तीसरे बच्चे को पालने की स्थिति में नहीं है। 

इसके बाद अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) मेडिकल बोर्ड के एक चिकित्सक ने 10 अक्टूबर को एक ई-मेल भेजा था, जिसमें कहा गया था कि इस चरण पर गर्भ समाप्त करने पर भ्रूण के जीवित रहने की प्रबल संभावना है। शीर्ष अदालत ने नौ अक्टूबर को महिला को यह ध्यान में रखते हुए गर्भ को चिकित्सीय रूप से समाप्त करने की अनुमति दी थी कि वह अवसाद से पीड़ित है और ‘भावनात्मक, आर्थिक और मानसिक रूप से’ तीसरे बच्चे को पालने की स्थिति में नहीं है। 

Web Title: Supreme Court did not allow a married woman to abort a pregnancy of 26 weeks

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