'रेवड़ी कल्चर' पर सख्त हुआ सर्वोच्च न्यायलय, चुनाव आयोग और सरकार से मांगा रोकने के लिए सुझाव
By शिवेंद्र राय | Published: August 3, 2022 01:57 PM2022-08-03T13:57:18+5:302022-08-03T13:59:57+5:30
चुनावों में मुफ्त की घोषणा वाले वादे के खिलाफ दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है जो देश की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार और चुनाव आयोग इस पर रोक लगाने के लिए विचार करे।

सर्वोच्च न्यायलय (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: देश में मुफ्त में सुविधाएं देने के चुनावी वादों पर सर्वोच्च अदालत ने सख्त रूख अपनाया है। इस मामले से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है और सरकार एवं चुनाव आयोग इससे अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चुनावी अभियान के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा दी जाने वाली मुफ्त सुविधाओं को रोकने के लिए नीति आयोग, वित्त आयोग, सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और अन्य हितधारकों के सदस्यों को मिलाकर एक शीर्ष निकाय बनाने की आवश्यकता है जो इस बात पर सुझाव दे कि नियंत्रण कैसे किया जाए।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह भी कहा कि ये मुद्दा सीधे देश की अर्थव्यवस्था पर असर डालता है। इस मामले को लेकर एक हफ्ते के भीतर ऐसे विशेषज्ञ निकाय के लिए प्रस्ताव मांगा गया है। अदालत ने केंद्र, चुनाव आयोग, वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल और याचिकाकर्ताओं को विशेषज्ञ निकाय के गठन पर सात दिनों के भीतर अपने सुझाव देने को कहा है। अब इस जनहित याचिका पर 11 अगस्त को अगली सुनवाई होगी।
हालांकि सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने अदालत में कहा कि इस मामले पर बहस करने और कानून पारित करने के लिए इसे संसद पर छोड़ दिया जाना चाहिए। सिब्बल के जवाब में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल मुफ्त के खिलाफ खड़ा नहीं होगा। सीजेआई रमण ने कहा, "क्या आपको लगता है कि संसद मुफ्त उपहारों के मुद्दे पर बहस करेगी? कौन सी राजनीतिक पार्टी बहस करेगी? कोई भी राजनीतिक दल मुफ्त का विरोध नहीं करेगा। हर कोई इसे चाहता है। हमें करदाताओं और देश की अर्थव्यवस्था के बारे में सोचना चाहिए।"
बता दें कि चुनावों में मुफ्त की घोषणा वाले वादे के खिलाफ भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर केंद्र सरकार के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सैद्धांतिक तौर पर हम इस याचिका का समर्थन करते हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुफ्त में सुविधाएं देने के चुनावी वादों का विरोध करते हुए कहा था कि 'रेवड़ी कल्चर' बंद होना चाहिए।