लद्दाख को अधिकार दिलवाने की खातिर सोनम वांगचुक फिर से भूख-हड़ताल के पथ पर, विरोध की आग को हवा दे रही केंद्र की अनदेखी

By सुरेश एस डुग्गर | Published: May 24, 2023 02:47 PM2023-05-24T14:47:26+5:302023-05-24T14:48:50+5:30

लद्दाख को अधिकार दिलवाने की खातिर सोनम वांगचुक फिर से भूख-हड़ताल पर बैठ गए हैं।

Sonam Wangchuk again on hunger strike to get rights for Ladakh Ignoring the central government is fueling the fire in the icy desert of Ladakh | लद्दाख को अधिकार दिलवाने की खातिर सोनम वांगचुक फिर से भूख-हड़ताल के पथ पर, विरोध की आग को हवा दे रही केंद्र की अनदेखी

फाइल फोटो

Highlightsलद्दाख को अधिकार दिलाने के लिए हो रही भूख-हड़ताल सोनम वांगचुक फिर बैठे भूख-हड़ताल पर आरोप है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे की अनदेखी कर रही है

लद्दाख: रेमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित सोनम वांगचुक एक बार फिर लद्दाख की जनता को अधिकार दिलवाने की खातिर आंदोलन की राह पर हैं।

चार महीने पहले उन्होंने बर्फ में शून्य से नीचे 20 डिग्री के तापमान में 5 दिनों की भूख-हड़ताल की थी तो अब 26 मई से शुरू हो रही उनकी 10 दिन की भूख-हड़ताल को करगिल व लेह के सभी दलों ने अपना समर्थन देकर केंद्र सरकार की राह मुश्किल कर दी है।

हालांकि लद्दाख के आंदोलनरत नेता कह रहे हैं कि वे अपने अधिकारों की खातिर किसी से भी बात करने को तैयार हैं पर केंद्र सरकार की अनदेखी और कथित उपनिवेशवाद की रणनीति बर्फीले रेगिस्तान में आग के शोले भड़का रही है।

दरअसल जो केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा 30 सालों के आंदोलन के बाद बर्फीले रगिस्तान लद्दाख के लोगों ने 5 अगस्त 2019 को पाया था वह उन्हें रास नहीं आया है।

यही कारण था कि लद्दाख जिसमें लेह और करगिल जिले शामिल हैं- प्रदेश को पुनः राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर हड़ताल और महा रैली का आयोजन भी कर चुका है। 

इन सबका मकसद वे चार सूत्रीय मांगें हैं जिनसे लद्दाखी कई बार केंद्र सरकार को अवगत करवा चुके हैं। यही नहीं लेह की सर्वाेच्च संस्था लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन के नेता और वरिष्ठ उपाध्यक्ष चेरिंग दोरजे  कह चुके हैं कि कश्मीर का हिस्सा होना लद्दाख के लोगों के लिए बेहतर था।

थोड़े दिन पहले उन्होंने कहा था कि वे केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन की तुलना में जम्मू और कश्मीर के पूर्ववर्ती राज्य में बेहतर थे। लद्दाख अपने अधिकारों का संरक्षण चाहता है।

वे विशेषाधिकार तथा पर्यावरण सुरक्षा चाहते हैं। इसके लिए थ्री इड्यिटस से प्रसिद्ध हुए सोनम वांगचुक इस साल जनवरी में पांच दिनों तक बर्फ के ऊपर माइन्स 20 डिग्री तापमान में क्लाइमेट फास्ट भी कर चुके हैं।

उनके साथ प्रशासन द्वारा किए गए कथित व्यवहार के कारण लद्दाख की जनता का गुस्सा और भड़का था। लेह जिले के आलची के पास उलेयतोकपो में जन्मे 56 वर्षीय वांगचुक सामुदायिक शिक्षा के अपने माडल के लिए दुनियाभर में जाने जाते हैं।

रेमन मैग्सेसे अवार्ड पा चुके वांगचुक लद्दाख क्षेत्र को विशेष अधिकारों और पर्यावरणीय सुरक्षा की मांग के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वह चाहते हैं कि हिमालयी क्षेत्र को बचाने के लिए लद्दाख को विशेष दर्जे की जरूरत है।

भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत जातीय और जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषदों और क्षेत्रीय परिषदों के अपने-अपने क्षेत्रों के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया है।

फिलहाल भारत के चार राज्य मेघालय असम, मिजोरम और त्रिपुरा के दस जिले इस अनुसूची का हिस्सा हैं। लद्दाख की जनता और वांगचुक की मांग है कि लद्दाख को भी इस अनुसूची के तहत विशेषाधिकार दिए जाएं। पांच दिन के उपवास के दौरान वांगचुक की मांगों को भारी समर्थन मिला था।

भारतीय जना पार्टी को छोड़कर बाकी सभी दलों ने उनकी मांगों का समर्थन किया है। वांगचुक के बकौल, पहले यह 10 दिवसीय भूखहड़ताल 26 अप्रैल से आरंभ की जानी थी पर वाई-20 के लद्दाख में आयोजित किए जाने के कारण उन्होंने इसे एक माह के लिए आगे खिसका दिया था।

उन्होंने इस संबंध में कई वीडियो भी जारी किए हैं जिनमें लद्दाख की जनता के अधिकारों की मांग को जोरदार तरीके से उठाया गया है।

Web Title: Sonam Wangchuk again on hunger strike to get rights for Ladakh Ignoring the central government is fueling the fire in the icy desert of Ladakh

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