शिमला समझौताः इंदिरा गांधी ने घुटने के बल खड़े पाकिस्तान को क्यों बख्श दिया?

By आदित्य द्विवेदी | Published: July 2, 2018 06:32 AM2018-07-02T06:32:39+5:302018-07-02T06:32:39+5:30

कई कूटनीतिक विश्लेषक शिमला समझौते को इंदिरा गांधी की बड़ी भूल मानते हैं। लेकिन दोनों देशों के बीच तीन दशकों तक शांति बहाली में इसका बड़ा योगदान रहा है।

Shimla treaty signed between Indira Gandhi and Julfikar Bhutto is not a disaster for India | शिमला समझौताः इंदिरा गांधी ने घुटने के बल खड़े पाकिस्तान को क्यों बख्श दिया?

शिमला समझौताः इंदिरा गांधी ने घुटने के बल खड़े पाकिस्तान को क्यों बख्श दिया?

1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के फलस्वरूप विश्व मानचित्र पर बांग्लादेश नाम के एक नए देश ने जन्म लिया। पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए। भारतीय सेना का लाहौर तक कब्जा हो गया। पाकिस्तानी सेना का नेतृत्व कर रहे लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी ने हार स्वीकार करते हुए अपने 93 हजार सैनिकों को भारत के हवाले कर दिया। इस युद्ध में भारत ने जीत दर्ज की थी और पाकिस्तान घुटने के बल खड़ा था। लेकिन 2 जुलाई 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में एक समझौता हुआ। कई कूटनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मैदानी युद्ध में जीत के बावजूद इंदिरा गांधी कूटनीतिक युद्ध में हार गई। कई विशेषज्ञ शिमला समझौते को एक बड़ी भूल मानते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि'अपर हैंड' होने के बावजूद इंदिरा गांधी को शिमला समझौते से क्या हासिल हुआ? 

शिमला समझौते के प्रमुख बिंदुः-

- दोनों सरकारें इस बात के लिए सहमत हुई कि भारत और पाकिस्तान की दोनों की सेनाएं अपने-अपने प्रदेशों में वापस चली जाएंगी। भारत ने लाहौर तक कब्जा जमा लिया था वहीं पाकिस्तान कश्मीर में काफी अंदर तक घुस आया था। दोनों देशों ने 17 सितंबर, 1971 की सीजफायर लाइन को लाइन ऑफ कंट्रोल के रूप में मान्यता दी। यह तय हुआ कि इस समझौते के बीस दिन के अंदर सेनाएं अपनी-अपनी सीमा से पीछे चली जाएंगी।

- इंदिरा गाधी और भुट्टो ने यह तय किया कि दोनों देश सभी विवादों और समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सीधी बातचीत करेंगे और स्थिति में एकतरफा कार्यवाही करके कोई परिवर्तन नहीं करेंगे। वे एक दूसरे के विरुद्घ न तो बल प्रयोग करेंगे, न प्रादेशिक अखण्डता की अवेहलना करेंगे और न एक दूसरे की राजनीतिक स्वतंत्रता में कोई हस्तक्षेप करेंगे।

- शिमला समझौते में यह तय किया गया कि हम दोनों देश कश्मीर को लेकर आपस में ही हल निकालेंगे। सीधी बात-चीत करेंगे। लड़ाई या किसी तीसरे का हस्तक्षेप नहीं करेंगे। अभी तक पाकिस्तान का मानना था कि कश्मीर पर पूरा हक हमारा है। इसके लिए बातचीत की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा ही भारत का भी मानना था। लेकिन दोनों देशों ने शिमला समझौते में इसकी जरूरत समझी।

-आवागमन की सुविधाएं स्थापित की जाएंगी ताकि दोनों देशों के लोग असानी से आ-जा सकें और घनिष्ठ संबंध स्थापित कर सकें।

- युद्ध के बंदियों को वापस पाकिस्तान भेज दिया जाएगा।

शिमला समझौते को कई जानकार भले ही एक बड़ी भूल मानते हों लेकिन इसके सकारात्मक नतीजों से भी इनकार नहीं किया जा सकताः-

- शिमला समझौते से पहले पाकिस्तान का मानना था कि कश्मीर पर पूरा हक हमारा है। इसके लिए बातचीत की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा ही भारत का भी मानना था। लेकिन दोनों देशों ने शिमला समझौते में इसकी जरूरत समझी।

- दोनों देशों ने पहली बार लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) को मान्यता दी।

- शिमला समझौते के बाद करीब तीन दशक तक दोनों देशों के बीच शांति स्थापित रही। अन्यथा आजादी के बाद 25 सालों में भारत-पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध हो चुके थे।

लोकमत न्यूज के लेटेस्ट यूट्यूब वीडियो और स्पेशल पैकेज के लिए यहाँ क्लिक कर सब्सक्राइब करें!

Web Title: Shimla treaty signed between Indira Gandhi and Julfikar Bhutto is not a disaster for India

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे