Highlights2008 में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने 70 में से 43 सीटों पर जीत दर्ज कीशीला दीक्षित के दो संतानें हैं जिनमें एक बेटा संदीप दीक्षित और बेटी लतिका है.
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का आज दोपहर तीन बजे निधन हो गया. उन्हें आज सुबह हृदय में तकलीफ होने के कारण राजधानी के एस्कॉर्ट अस्पताल में भर्ती किया गया था जहां उन्होंने अंतिम सांस ली.
शीला दीक्षित का जीवन उतार चढ़ाव भरा रहा. वे तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं लेकिन 2013 में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल से चुनाव हार जाने के कारण उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा.
शीला दीक्षित की राजनीतिक जीवन की शुरुआत
शीला दीक्षित ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत उस समय की जब उनके ससुर उमाशंकर दीक्षित, इंदिरा गांधी की सरकार में देश के गृह मंत्री थे. उमाशंक़र दीक्षित के एक मात्र पुत्र विनोद दीक्षित से दाम्पत्य जीवन में बंध जाने के बाद वे राजनीति में अधिक सक्रिय हो गयी.
शीला दीक्षित को इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी काम करने का अवसर मिला. पी.वी नरसिंह राव के प्रधानमंत्री औैर कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद गांधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा को दिखाने के लिए शीला दीक्षित ने कांग्रेस से अपना नाता तोड़ लिया और वे तिवारी कांग्रेस में शामिल हो गयीं.
शीला दीक्षित के बारे में
31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में जन्मीं शीला का रिश्ता कपूर परिवार से था जहां से वे दिल्ली आ गईं और उनकी शिक्षा-दीक्षा दिल्ली के मिरांडा हाऊस तथा जीसस एंड मैरी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की. विवाह के उपरांत पति विनोद दीक्षित के प्रशासनिक अधिकारी होने के कारण जब उनकी नियुक्ति आगरा जिला अधिकारी के रुप में हुई तो शीला दीक्षित ने सामाजिक कार्यो में पहला कदम रखा.
उन्होंने अपनी रुचि के अनुसार कांच के शहर फिरोज़ाबाद को चुना और 70-80 के दशक में व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण किया. उनके इस अभियान में शहर के निवासियों ने शीला दीक्षित का भरपूर सहयोग किया जिससे उनके अंदर छिपी राजनीति की चाहत बाहर निकल कर आईं. वे राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में 1986-1989 मंत्रिपरिषद की सदस्य रहीं. पहले इन्हें संसदीय कार्य राज्यमंत्री बनाया गया बाद में यह प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री का कार्यभार सौंप दिया.
शीला दीक्षित ने कन्नौज से लोकसभा सीट जीत कर संसद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व भी किया. 1998 में उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और उसके बाद दिल्ली में अपने अथक प्रयासों से कांग्रेस को बहुमत दिला कर सत्ता हासिल की. 2008 में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने 70 में से 43 सीटों पर जीत दर्ज की.
दिल्ली की राजनीतिक में दीक्षित का योगदान
दिल्ली की राजनीति में जब भी कांग्रेस का इतिहास लिखा जाएगा तो हरकिशन लाल भगत के बाद शीला दीक्षित का नाम सबसे ऊपर होगा. उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए दिल्ली का कायाकल्प किया और पूरे शहर को दुनिया के बेहतरीन शहरों के रुप में तब्दील कर दिया. उनके ही कार्यकाल में कॉमनवेल्थ खेल का आयोजन किया गया हालांकि इन आयोजनों को लेकर शीला दीक्षित को आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा.
उनको कांग्रेस के कार्यकाल में ही केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया, 11 मार्च 2014 से 25 अगस्त 2014 तक वे केरल की राज्यपाल रहीं.
जानें कैसा रहा 2019 तक का सफर
शीला दीक्षित के दो संतानें हैं जिनमें एक बेटा संदीप दीक्षित और बेटी लतिका है. संदीप दीक्षित गैर सरकारी संस्था के सक्रिय कार्यकर्ता है और वे लोकसभा में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व भी कर चुके है.
2019 में जब कांग्रेस मोदी सरकार से लोकसभा चुनाव के दौरान दो-दो हाथ करने के लिए तैयार थीं उस समय शीला दीक्षित को एक बार फिर 81 वर्ष की उम्र में दिल्ली प्रदेश का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. उन्होंने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण वे बहुत अधिक प्रचार नहीं कर सकीं परिणाम शीला दीक्षित भाजपा के मनोज तिवारी से चुनाव हार गई.
चुनाव हार जाने के बावजूद शीला दीक्षित ने सक्रिय राजनीति से नाता नहीं तोड़ा. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के अनुसार 18 जुलाई को लगभग आधे घंटे तक शीला दीक्षित ने पटेल के साथ दिल्ली की राजनीति में चल रही उठा पटक पर लंबी चर्चा की थी. उस समय किसी को पता नहीं था कि अगले 72 घंटे में शीला दीक्षित सभी से विदा ले लेगीं.
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Web Title: sheila dikshit Death: about know her life, political career and interesting facts
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