सत्येंद्र नाथ बोस: जिनके नाम पर पड़ा क्वांटम फिजिक्स के 'बोसॉन पार्टिकल' का नाम

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 4, 2023 02:51 PM2023-02-04T14:51:59+5:302023-02-04T15:04:20+5:30

Satyendra Nath Bose The Boson Particle of Quantum Physics | सत्येंद्र नाथ बोस: जिनके नाम पर पड़ा क्वांटम फिजिक्स के 'बोसॉन पार्टिकल' का नाम

फोटो आभार- MyGovIndia

Highlights सत्येंद्र नाथ बोस ने फिजिक्स की दुनिया में बेहतरीन काम कियाआइंस्टीन बोस के रिसर्च से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने खुद उसे जर्मन में ट्रांसलेट किया बोस के लिखे चार पन्नों का यह रिसर्च आज भी मॉडर्न क्वान्टम मेकेनिक्स और पार्टिकल से जुड़ी किसी भी रिसर्च के लिए बेहद अहम माना जाता है।

नई दिल्ली: सत्येन्द्र नाथ बोस क्वांटम फिजिक्स की दुनिया में वह नाम है, जिनके नाम पर एटम पार्टिकल को 'बोसॉन' नाम दिया गया। महान मैथेमैटिशियन और थेओरिटिकल फिजिक्स के महारथी सत्येंद्र नाथ बोस द्वारा क्वांटम फिजिक्स के फिल्ड में किये गये रिसर्च की प्रशंसा ग्रेट साइंटिस्ट अलबर्ट आइंस्टीन भी करते थें, जिन्हें बोस अपना मास्टर कहा करते थे। सत्येंद्र नाथ बोस द्वारा 1924 में क्वांटम फिजिक्स के फिल्ड में किये रिसर्च ने “बोस-आइंस्टीन स्टेटिस्टिक्स” और “बोस-आइंस्टीन कंडनसेट’ जैसी थ्योरी को जन्म दिया।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि फिजिक्स के इस महान साइंटिस्ट को साल 1956, 1959 और 1962 में नॉमिनेटेड होने के बाद भी नोबल पुरस्कार के लिए नहीं चुना गया था। साल 2013 में बेल्जियम के फिजिसिस्ट फ़्रांस्वा इंगलर्ट और ब्रिटेन के पीटर हिग्स को नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया था क्योंकि इंगलर्ट और हिग्स ने 4 जुलाई 2012 को जेनेवा की लैब में हिग्स पार्टिकल को खोजा था, जिसे हिग्स बोसॉन या फिर "गॉड पार्टिकल" के नाम से जाना जाता है।

इंगलर्ट और हिग्स के रिसर्च में छुपी हुई है सत्येंद्र नाथ बोस की कहानी। तो आइये जानते हैं, भारत के उस महान वैज्ञानिक के बारे में...1 जनवरी 1894 को कलकत्ता में जन्में सत्येन्द्र नाथ बोस की शुरूआती पढ़ाई घर के पास ही सामान्य स्कूल से शुरू हुई। उसके बाद वे इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए हिंदू स्कूल पहुंचे। जहां टीचर ने उन्हें गणित के इग्जाम में टोटल 100 मार्क्स में 110 नंबर दिये क्योंकि बोस ने न केवल पूरे सवालों के सही जवाब दिये थे, बल्कि कई सवालों को उन्होंने अलग-अलग तरीकों से हल किया था।इंटर की परीक्षा पूरी करने के बाद सत्येंद्र नाथ बोस कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज पहुंचे। जहां उनके साथ पढ़ने वालों में दोस्तों में मेघनाद साहा और पीसी महालनोबिस भी थे।

जिस तरह से सत्येंद्र नाथ बोस ने फिजिक्स की दुनिया में बेहतरीन काम किया, ठीक उसी तरह मेघनाद साहा ने एस्ट्रोफिजिक्स में काम किया और पीसी महालनोबिस ने इंडियन स्टेटिस्टिक्स को इस्टेबलिस्ट किया। बोस को प्रेसिडेंसी कॉलेज में सर जगदीश चंद्र बोस और आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय जैसे महान शिक्षकों से फिजिक्स की बारीकियों को सिखने का मौका मिला। बोस ने 1913 में बीएससी और 1915 में एमएससी पास की। बीएससी और एमएससी के दौरान मेघनाथ साहा और सत्येंद्र नाथ बोस के बीच टॉप करने को लेकर बराबर कंपटीशन बना रहा और बोस ने हर बार पहला स्थान प्राप्त किया और मेघनाद साहा दूसरे नंबर पर रहे। लेकिन दोनों दोस्तों ने साइंस के फिल्ड में एक से बढ़कर एक महत्वपूर्ण रिसर्च करके देश का नाम रौशन किया। बोस और साहा ने जैसे ही एमएससी पास की, उसके अगले साल 1916 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर सर आशुतोष मुखर्जी ने उन्हें फिजिक्स पढ़ाने के लिए लेक्चरर की पोस्ट पर अप्वाइंट कर लिया।

इसके बाद 1921 में ढाका यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई और वाइस चांसलर डॉक्टर हारटॉग ने सत्येंद्र नाथ बोस को अपने यहां बुला लिया और फिजिक्स डिपार्टमेंट में रीडर बना दिया। साल 1924 में मेघनाद साहा जब ढाका आए, तो सत्येंद्र नाथ बोस ने उन्हें बताया कि वो क्लास में प्लांक के रेडिएशन लॉ को पढ़ा रहे हैं, लेकिन उन्हें कुछ खटक रहा है और वो रेडिएशन लॉ से एग्री नहीं करते हैं। इस पर मेघनाद साहा ने आइंस्टीन और प्लांक द्वारा किए गए रिसर्च के बारे में फिर से पढ़ने की सलाह दी।उसके बाद सत्येंद्र नाथ बोस ने 1924 में ही चार पन्नों का एक रिसर्च पेपर लिखा, ‘Planck’s Law and the Hypothesis of Light Quanta’। इस रिसर्च पेपर को उन्होंने लंदन की‘फिलासॉफिकल मैगजीन’ को पब्लिश करने के लिए भेजा लेकिन वहां उनका रिसर्च रिजेक्ट कर दिया गया।

जिसके बाद बोस ने इसे आइंस्टीन के पास बर्लिन भेजा। आइंस्टीन बोस के रिसर्च से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने खुद उसे जर्मन में ट्रांसलेट किया और 1924 में जर्मन जर्नल ‘Zeitschrift fur Physik’ में पब्लिश भी कराया। बोस के लिखे चार पन्नों का यह रिसर्च आज भी मॉडर्न क्वान्टम मेकेनिक्स और पार्टिकल से जुड़ी किसी भी रिसर्च के लिए बेहद अहम माना जाता है। यही रिसर्च पेपर आगे चलकर बोस–आइंस्टीन स्टेटिक्स और बोस–आइंस्टीन कन्डेनसेट के तौर पर जाना गया। बाद में कई साइंटिस्ट ने बोस के रिसर्च के आधार पर क्वान्टम फ़िज़िक्स में रिसर्च किया और उसी का उदाहरण है हिग्स बोसॉन पार्टिकल की खोज है।

बोस प्लांक के रेडिएशन लॉ में और स्पष्टता लाने के लिए रिसर्च करना चाहते थे। इसके लिए उन्हें 1924 में ढाका यूनिवर्सिटी में 2 साल के लिए लीव अप्लाई किया ताकि वो यूरोप जाकर फिजिक्स के फिल्ड में हो रहे नये डेवलपमेंट की जानकारी ले सकें। लेकिन यूनिवर्सिटी ने उनकी लीव तब तक ग्रांट नहीं की, जब तक उन्हें आइंस्टीन ने इसके लिए लेटर लिखकर नहीं दिया। आइंस्टीन का लेटर मिलते ही यूनिवर्सिटी ने उन्हें यूरोप जाने की परमिशन दे दी। यूरोप की यात्रा पर सत्येंद्र नाथ बोस ने न केवल आइंस्टीन से मुलाकात की बल्कि अक्टूबर 1924 में वो फ्रांस में रेडियोएक्टिवी की फिल्ड में रिसर्च कर रहीं मैडम क्यूरी से भी मुलाकात की।

ढाका में दशकों तक पढ़ाने के बाद साल 1945 में बोस वापस कलकत्ता आ गए और कलकत्ता यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर बन गये। सत्येंद्र नाथ बोस को साल 1954 में भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया। 1956 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी से रिटायर होने के बाद वो शांति निकेतन चले गए। साइंस के फिल्ड में बोस के योगदान को देखते हुए 1958 में रॉयल सोसायटी ने उन्हें फैलो चुना और 1959 में उन्हें आजीवन राष्ट्रीय प्रोफेसर नियुक्त किया गया।राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान, भारतीय सांख्यिकी संस्थान और भारतीय भौतिक समाज का अध्यक्ष रहे सत्येंद्र नाथ बोस का निधन 4 फ़रवरी 1974 को कलकत्ता में हुआ था।

Web Title: Satyendra Nath Bose The Boson Particle of Quantum Physics

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