सबरीमाला को लेकर कोर्ट सलाहकार बोले- महिलाओं का मंदिर में प्रवेश निषेध, दलितों के साथ छुआछूत की तरह

By पल्लवी कुमारी | Published: July 20, 2018 12:49 AM2018-07-20T00:49:03+5:302018-07-20T00:49:03+5:30

उच्चतम न्यायालय ने केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के औचित्य पर भी सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने कहा कि मासिक धर्म 10 वर्ष की उम्र से पहले भी शुरू हो सकता है और रजोनिवृत्ति 50 वर्ष से पहले भी हो सकती है।

sabrimala casw supreme court advisory says ban women entry is like discrimination | सबरीमाला को लेकर कोर्ट सलाहकार बोले- महिलाओं का मंदिर में प्रवेश निषेध, दलितों के साथ छुआछूत की तरह

सबरीमाला को लेकर कोर्ट सलाहकार बोले- महिलाओं का मंदिर में प्रवेश निषेध, दलितों के साथ छुआछूत की तरह

नई दिल्ली, 20 जुलाई: सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट सलाहकार ने 19 जुलाई को कहा कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बैन छुआछूत की तरह है। ठीक वैसे ही दलित के साथ पहले बर्ताव किया जाता था। कोर्ट सलाहकार राजू रामचंद्रन ने कहा कि छुआछूत के खिलाफ जो अधिकार है, उसमें अपवित्रता भी शामिल है। अगर महिलाओं का प्रवेश इस आधार पर रोका जाता है कि वह मासिक धर्म के समय अपवित्र हैं तो यह भी दलितों के साथ छुआछूत की जैसा ही है। 

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई चल रही है। याचिका सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के जाने पर बैन को लेकर चुनौती दी गई है। जिसमें 10 से 50 वर्ष आयु की महिलाए नहीं जा सकती है। इसके पीछे तर्क है कि  मासिक धर्म आने के बाद महिलाएं अपवित्र हो जाती हैं।

राजू रामचंद्रन ने दलील दी कि अगर महिलाओं को मासिक धर्म के कारण रोका जाता है तो ये भी दलित के साथ छुआछुत की तरह है और उसी तरह के भेदभाव जैसा ही मामला है। देश के संविधान में छुआछूत के खिलाफ सबको प्रोटेक्शन मिला हुआ है। धर्म, जाति, समुदाय और लिंग आदि के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। 

उच्चतम न्यायालय ने केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के औचित्य पर भी सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने कहा कि मासिक धर्म 10 वर्ष की उम्र से पहले भी शुरू हो सकता है और रजोनिवृत्ति 50 वर्ष से पहले भी हो सकती है।

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प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ भगवान अयप्पा के 800 साल पुराने मंदिर की देखभाल करने वाले त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड के इस अनुरोध पर सहमति नहीं जतायी कि इस आयुवर्ग की महिलाओं पर पाबंदी इसलिए लगायी गई है क्योंकि वे तीर्थयात्रा के लिए जरूरी 41 दिन तक शुद्धता कायम नहीं रख सकतीं।

बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने कहा कि मंदिर की यह बिना द्वेष वाली परंपरा है और महिलाओं के लिये 41 दिन की शुद्धता का पालन करना शारीरिक रूप से असंभव है।उन्होंने बोर्ड की उस अधिसूचना को सही ठहराया जिसमें दस से 50 वर्ष आयुवर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक लगायी गयी थी।

हालांकि पीठ ने कहा, ''किसी का मासिक धर्म 45 वर्ष की उम्र में बंद हो सकता है। नौ साल की उम्र की लड़की को भी मासिक धर्म हो सकता है। इसलिये, इस अधिसूचना का कोई औचित्य नहीं है।'' इस मामले में आगे की दलीलें 24 जुलाई को दी जायेंगी। 

गौरतलब है कि केरल सरकार भी इस मुद्दे पर तीन बार अपने फैसले में बदलाव ला चुकी है। 2015 में राज्य सरकार ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक का समर्थन किया था। वहीं,  2017 में सरकार ने इस फैसले का विरोध किया था। 2018 में सरकार ने कहा कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश मिलना चाहिए। इंडियन यंग लॉयर्स असोसिएशन ने एक जनहित याचिका दायर कर सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश करने की इजाजत मांगी थी। केरल हाई कोर्ट ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को उस वक्त सही माना था। 

बता दें कि सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर रोक है। सबरीमाला मंदिर की ओर से जारी किए गए आदेश में कहा गया था कि 10 वर्ष से लेकर 50 वर्ष तक की महिलाएं मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती हैं। जिन महिलाओं की उम्र 50 से अधिक है वह दर्शन के लिए आते वक्त अपने साथ आयु प्रमाण पत्र लेकर आए। 

(भाषा इनपुट)

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Web Title: sabrimala casw supreme court advisory says ban women entry is like discrimination

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