प्रख्यात कानूनविद सोली सोराबजी का कोविड-19 के कारण निधन

By भाषा | Published: April 30, 2021 02:40 PM2021-04-30T14:40:49+5:302021-04-30T14:40:49+5:30

Renowned legalist Soli Sorabjee passed away due to Kovid-19 | प्रख्यात कानूनविद सोली सोराबजी का कोविड-19 के कारण निधन

प्रख्यात कानूनविद सोली सोराबजी का कोविड-19 के कारण निधन

नयी दिल्ली, 30 अप्रैल प्रख्यात न्यायविद और पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली जहांगीर सोराबजी का शुक्रवार को यहां एक अस्पताल में कोविड-19 के कारण निधन हो गया। वह 91 वर्ष के थे।

उन्होंने केशवानंद भारती और एस आर बोम्मई जैसे कई ऐतिहासिक मुकदमों की पैरवी की थी।

उनके परिवार में पत्नी, एक बेटी और दो बेटे हैं।

देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित सोराबजी प्रसिद्ध मानवाधिकार वकील थे। वह वी पी सिंह और अटल बिहार वाजपेयी के कार्यकाल में क्रमश: 1989-90 और 1998-2004 तक अटॉर्नी जनरल रहे।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने प्रख्यात न्यायविद सोली जहांगीर सोराबजी के निधन पर शोक जताया है।

मोदी ने सोराबजी को उत्कृष्ट वकील बताया जो कानून के जरिए गरीबों एवं वंचितों की मदद करने के लिए आगे रहते थे।

भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमण ने भी सोराबजी के निधन पर दुख जताया।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल श्री सोली जहांगीर सोराबजी के निधन के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ। न्यायिक जगत के साथ अपने करीब 68 वर्ष लंबे संबंध में उन्होंने मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों के वैश्विक न्यायशास्त्र को समृद्ध बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया।’’

सर्वश्रेष्ठ संवैधानिक विधि विशेषज्ञों में से एक माने जाने वाले सोराबजी ने कानून और न्याय, प्रेस सेंसरशिप और आपातकाल पर कई किताबें लिखीं तथा मानवाधिकार और मौलिक अधिकारों के खिलाफ जोरदार ढंग से लड़ाई लड़ी।

मौलिक अधिकार उल्लंघनों से जुड़ी उनकी हाल की कानूनी लड़ाई श्रेया सिंघल मामला था जिसमें 2015 में उच्चतम न्यायालय उनकी दलीलों पर राजी हो गया और उसने भाषण एवं अभिव्यक्ति की ऑनलाइन स्वतंत्रता पर पाबंदी से संबंधित सूचना प्रौद्योगिकी कानून का एक प्रावधान रद्द कर दिया।

शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि धारा 66ए असंवैधानिक है क्योंकि यह संविधान के तहत भाषण की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है। सोराबजी ने भी यही दलील दी थी।

वाजपेयी के करीबी माने जाने वाले सोराबजी ने अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में भारत की लड़ाई का तब नेतृत्व किया जब पाकिस्तान ने करगिल युद्ध के बाद 1999 में उसके नौसैन्य गश्ती विमान अटलांटिक को मार गिराने के लिए भारत से मुआवजा मांगा था।

हेग में स्थित आईसीजे ने सोराबजी की दलीलों को स्वीकार करते हुए भारत के पक्ष में फैसला दिया था।

उन्होंने नागरिकों की न्याय समिति के लिए भी काम किया जो सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करती है।

एक पारसी परिवार में 1930 में जन्मे सोराबजी 1953 में बार में पंजीकृत हुए और बंबई उच्च न्यायालय ने 1971 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया।

सोराबजी ने केशवानंद भारती मामले ओर राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित एस आर बोम्मई मामले समेत कई महत्वपूर्ण मुदकमों में पैरवी की।

संयुक्त राष्ट्र ने नाइजीरिया में मानवाधिकारों की स्थिति पर रिपोर्ट देने के लिए 1997 में उन्हें अफ्रीकी देश का विशेष दूत नियुक्त किया और बाद में उन्हें 1998 से 2004 तक मानवाधिकारों के प्रचार एवं रक्षा पर संयुक्त राष्ट्र के उप-आयोग का अध्यक्ष तथा सदस्य बनाया।

सोराबजी 1998 से अल्पसंख्यकों के भेदभाव निवारण और उनकी रक्षा पर संयुक्त राष्ट्र के उप-आयोग का सदस्य भी रहे।

वह 2000 से 2006 तक हेग में स्थायी मध्यस्थता अदालत के सदस्य भी रहे।

सोराबजी ने अपनी तरफ से बमुश्किल कभी कोई जनहित याचिका दायर की थी लेकिन वह 2008 में मुंबई में आतंकवादी हमले से इतने आहत हुए कि उन्होंने शीर्ष न्यायालय में खुद जनहित याचिका दायर कर आतंकवादी हमलों से निपटने के लिए पुलिस बल को प्रशिक्षित करने तथा उपकरणों से लैस करने के निर्देश देने की मांग की।

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