NCERT ने इतिहास की किताब से हटाया नाथूराम गोडसे के 'पुणे का ब्राह्मण' होने का उल्लेख
By विशाल कुमार | Published: April 25, 2022 02:20 PM2022-04-25T14:20:23+5:302022-04-25T14:45:51+5:30
पिछले 15 सालों से कक्षा 12 की इतिहास की किताब में गोडसे की जाति का उल्लेख था। सूत्रों ने कहा कि एनसीईआरटी को पिछले कुछ महीनों में शिकायतें मिली थीं कि स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में किसी की जाति का अनावश्यक रूप से उल्लेख नहीं किया जाना चाहिए।
नई दिल्ली: महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को पुणे का ब्राह्मण बताने वाले वाक्यांश को एनसीईआरटी की कक्षा 6-12 के पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है जो कि सरकार के पाठ्यपुस्तकों को 'तर्कसंगत' बनाने के अभियान का हिस्सा है।
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 15 सालों से कक्षा 12 की इतिहास की किताब में गोडसे की जाति का उल्लेख था। सूत्रों ने कहा कि एनसीईआरटी को पिछले कुछ महीनों में शिकायतें मिली थीं कि स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में किसी की जाति का अनावश्यक रूप से उल्लेख नहीं किया जाना चाहिए।
बता दें कि, एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों का उपयोग राष्ट्रीय बोर्ड सीबीएसई और अधिकांश राज्य स्कूल बोर्डों द्वारा किया जाता है।
यह वाक्यांश महात्मा गांधी और स्वतंत्रता आंदोलन के अध्याय, 'द थीम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री: पार्ट 3' में आया है। वाक्यांश में कहा गया कि 30 जनवरी की शाम को उनकी दैनिक प्रार्थना सभा में एक युवक ने गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। बाद में आत्मसमर्पण करने वाला हत्यारा पुणे का एक ब्राह्मण था, जिसका नाम नाथूराम गोडसे था।
सरकार द्वारा स्कूली पाठ्यक्रमों की समीक्षा किए जाने की कहने के बाद एनसीईआरटी ने प्राप्त आपत्तियों के आधार पर सामग्री के हिस्से को संशोधित करने के अलावा सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम में लगभग 30 प्रतिशत की कटौती की है।
हटाए गए अध्यायों में 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से शीत युद्ध के युग और गुटनिरपेक्ष आंदोलन पर एक अध्याय है। 'शीत युद्ध काल' के अध्याय में दो महाशक्तियों के प्रभुत्व और भारत की स्थिति को रेखांकित किया गया है। इसने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को महाशक्तियों के लिए एक चुनौती के रूप में प्रस्तुत किया। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
शिक्षा राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी ने 30 मार्च को राज्यसभा में इतिहास की पाठ्यपुस्तकों के संशोधन पर शिवसेना सांसद अनिल देसाई के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि महामारी और स्कूल के दिनों के नुकसान को ध्यान में रखते हुए भार को तर्कसंगत किया गया था।