RBI vs Govt: मोदी सरकार ने तोड़ी चुप्पी, कहा- हमने RBI से नहीं मांगे 3.60 लाख करोड़, मीडिया में गलत खबर
By पल्लवी कुमारी | Published: November 9, 2018 04:58 PM2018-11-09T16:58:30+5:302018-11-09T16:58:30+5:30
RBI vs Govt: उर्जित पटेल ने RBI गवर्नर बनने के बाद पिछले दो साल में आरबीआई ने कई फैसले लिए हैं। जिसमें बैड लोन के मामलों को दिवालिया अदालत में भेजने के साथ एक दिन के डिफॉल्ट पर बैंकों के लोन रेजॉलुशन पर काम शुरू करने जैसे फैसले शामिल हैं। जो मोदी सरकरा को ना पसंद हैं।
नरेन्द्र मोदी सरकार ने शुक्रवार को कहा कि वह भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से 3.6 लाख करोड़ रुपये की पूंजी की कोई मांग नहीं की थी। सरकार ने सिर्फ आरबीआई इकनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क को तय करने के बारे में चर्चा कर रही है। वित्त मंत्रालय के आर्थिक विभाग के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने ट्वीट में कहा, 'मीडिया में सिर्फ गलत खबरें और कयास लगाए जा रहे हैं। सरकार का राजकोषीय हिसाब-किताब बिल्कुल सही चल रहा है। सरकार ने आरबीआई से 3.6 या एक लाख करोड़ रुपये मांगने का कोई प्रस्ताव नहीं रखा है।'
Lot of misinformed speculation is going around in media. Government’s fiscal math is completely on track. There is no proposal to ask RBI to transfer 3.6 or 1 lakh crore, as speculated. (continued...).
— Subhash Chandra Garg (@SecretaryDEA) November 9, 2018
सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने एक और ट्वीट में कहा, 'वर्ष 2013-14 में सरकार का वित्तीय घाटा यानी फिस्कल डेफिसिट जीडीपी के 5.1 प्रतिशत के बराबर था। उसके बाद से सरकार इसमें लगातार कमी करती आ रही है। हम वित्त वर्ष 2018-19 के अंत में वित्तीय घाटे को 3.3 तक सीमित कर देंगे। सरकार ने बजट में इस साल बाजार से कर्ज जुटाने का जो अनुमान रखा था उसमें 70000 करोड़ रुपय की कमी स्वयं ही कम कर दी है।'
Government’s FD in FY 2013-14 was 5.1%. From 2014-15 onwards, Government has succeeded in bringing it down substantially. We will end the FY 2018-19 with FD of 3.3%. Government has actually foregone 70000 crore of budgeted market borrowing this year. ( continued .....)
— Subhash Chandra Garg (@SecretaryDEA) November 9, 2018
इसके अलावा ऐसी भी खबरें हैं कि सरकार रिजर्व बैंक के मुनाफे का अधिकांश हिस्सा लाभांश के रूप में लेना चाहती है। हालांकि रिजर्व बैंक अपनी बैलेंस शीट को मजबूत बनाने के लिये मुनाफे का एक हिस्सा अपने पास रखना चाहता है।
एक अन्य अधिकारी के अनुसार, सरकार चाहती है कि रिजर्व बैंक लाभांश तथा पूंजी भंडार के बारे में नयी नीति तय करे।
अधिकारी ने कहा, ‘‘अभी रिजर्व बैंक की पूंजीगत आवश्यकताओं के अनुसार 27 प्रतिशत के बराबर पूंजी का प्रावधान रखा जाता है। हालांकि अधिकांश केंद्रीय बैंक इसे 14 प्रतिशत पर रखते हैं। हमारा मानना है , यदि रिजर्व बैंक पूंजी के प्रावधान को 14 प्रतिशत कर ले तो बाजार को 3.6 लाख करोड़ रुपये मिल सकते हैं।’’
राहुल गांधी ने लगाया था खरबों मांगने का आरोप
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पांच नवंबर को इंडियन एक्सप्रेस की खबर को ट्वीट करते हुए लिखा था, Rs 36,00,00,00,00,000( 3.60 लाख करोड़ रुपये ) इतने रुपये पीएम मोदी मांग रहे हैं आरबीआई से फैली अव्यवस्था को ठीक करने के लिए।
Rs 36,00,00,00,00,000
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 6, 2018
That’s how much the PM needs from the RBI to fix the mess his genius economic theories have created.
Stand up to him Mr Patel. Protect the nation. https://t.co/6BI0ePFvvH
रिजर्व बैंक का निदेशक मंडल की 19 नवंबर को बैठक
रिजर्व बैंक का निदेशक मंडल 19 नवंबर को होने वाली बैठक रिजर्व बैंक के पूंजीगत रिवर्ज और लाभांश आदि की नीति और नियमों पर चर्चा कर सकता है।
इससे पहले रिजर्व बैंक ने सरकार को राजकोषीय घाटा लक्ष्य पाने में मदद करने के लिये सरकार को चालू वित्त वर्ष में 50 हजार करोड़ रुपये का लाभांश देने का निर्णय लिया था जो सरकार द्वारा बजट में किए गए प्रावधान के अनुरूप ही है। यह 2016-17 के 30,659 करोड़ रुपये के लाभांश की तुलना में 63 प्रतिशत अधिक है।
इससे एक साल पहले उसने सरकार को 65,876 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए थे।
सरकार ने इस बार के बजट में रिजर्व बैंक, राष्ट्रीयकृत बैंकों और सरकारी वित्तीय संस्थानों से लाभांश के रूप में 54,817.25 करोड़ रुपये की प्राप्ति का प्रावधान रखा है।पिछले वित्त वर्ष में इस मद में 51,623.24 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे।
RBI vs Govt: क्या है इस विवाद में आरबीआई और सरकार का पक्ष
सरकार बैंकों में त्वरित सुधारात्मक कदम (पीसीए) की रूपरेखा से लेकर नकदी प्रबंधन तक के मुद्दों पर रिजर्व बैंक से असहमत है। सबसे पहले कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये यह दावा किया गया कि सरकार और आरबीआई के संबंध अच्छे नहीं चल रहे हैं। इसी बीच आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य का बयान सामने आया। आचार्य ने सरकार को चेतावनी दी कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को हल्के में लेना विनाशकारी हो सकता है, जिसके बाद ये पूरा मामला गर्मा गया। विरल आचार्य ने कहा, 'जो सरकारें केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का आदर नहीं करतीं, उन्हें आज नहीं तो कल बाजार की नाराजगी और आर्थिक आग की आंच झेलनी पड़ती है. इसके बाद वे उस दिन को कोसेंगे जब उन्होंने महत्वपूर्ण नियामक संस्थान की अनदेखी की थी।'
उनकी इस टिप्पणी को रिजर्व बैंक के नीतिगत रुख में नरमी लाने तथा उसकी शक्तियों को कम करने के लिए सरकार के दबाव और केंद्रीय बैंक की ओर से उसके प्रतिरोध के रुप देखा जा रहा है।
उर्जित पटेल ने गवर्नर बनने के बाद पिछले दो साल में आरबीआई ने कई फैसले लिए हैं। जिसमें बैड लोन के मामलों को दिवालिया अदालत में भेजने के साथ एक दिन के डिफॉल्ट पर बैंकों के लोन रेजॉलुशन पर काम शुरू करने जैसे फैसले शामिल हैं। प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन (पीसीए) फ्रेमवर्क के तहत कई सरकारी बैंकों पर कार्रवाई की गई है। सूत्रों के मुताबिक इस तरह के फैसले और कई नियमों के लागू होने के बाद से इंडस्ट्री नाराज है।