डिफाल्टर्स की सूची सार्वजनिक नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, आरबीआई को दी ये चेतावनी
By आदित्य द्विवेदी | Published: April 27, 2019 11:32 AM2019-04-27T11:32:46+5:302019-04-27T11:32:46+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि आरटीआई ऐक्ट के तहत रिजर्व बैंक डिफॉल्टरों को नाम बताने को लेकर बाध्य है। जानें क्या है पूरा मामला...
सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को आखिरी मौका देते हुए चेतावनी जारी की है। कोर्ट ने कहा कि सूचना का अधिकार कानून के तहत बैंक डिफॉल्टर्स के नाम सार्वजनिक किए जाएं।इसके साथ ही कोर्ट ने सालाना इंस्पेक्शन रिपोर्ट का भी खुलासा करने को कहा है। अगर इस आदेश पालन नहीं होता तो इसे गंभीरता से लेते हुए आरबीआई पर अवमानना का केस चलेगा। कोर्ट ने रिजर्व बैंक की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें उसने कहा था कि रिपोर्ट में बैंकिंग ऑपरेशंस की गोपनीय जानकारी होती है और पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक करना ठीक नहीं।
शीर्ष न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय रिजर्व बैंकआरटीआई के तहत ‘‘राष्ट्रीय आर्थिक हित के विषयों ’’ को छोड़ कर निरीक्षण रिपोर्ट के बारे में सभी सूचनाएं और अन्य साम्रगी देने के लिए कर्तव्यबद्ध है। आरबीआई ने न्यायालय के समक्ष कहा कि खुलासा नीति को वेबसाइट से हटा दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या कहा?
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने इस तथ्य पर कड़ी आपत्ति जताई कि आरबीआई ने उसके 16 दिसंबर 2015 के फैसले का उल्लंघन किया और न्यायालय के अवमानना याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लेने के बाद केंद्रीय बैंक ने 12 अप्रैल को अपनी वेबसाइट पर नई खुलासा नीति जारी की। नई नीति के तहत आरबीआई ने विभिन्न विभागों को निर्देश दिया था कि वे उन सूचनाओं का खुलासा नहीं करें जिनका शीर्ष अदालत ने अपने पूर्व के फैसलों में खुलासा करने को कहा था।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमारी राय में प्रतिवादियों (आरबीआई) ने उन सामग्रियों के खुलासे से मना करके इस अदालत की अवमानना की है, जिन्हें इस अदालत ने देने का निर्देश दिया था।’’ पीठ ने यह बात केंद्रीय बैंक को इसमें सुधार करने का अंतिम अवसर देते हुए कही। पीठ ने कहा, ‘‘यद्यपि प्रतिवादियों के इस अदालत के निर्देशों का उल्लंघन करना जारी रखने पर हम गंभीर रुख अपना सकते थे, लेकिन हम उन्हें खुलासा नीति में दी गई वैसी छूट को वापस लेने का अंतिम मौका देते हैं जो इस अदालत के निर्देशों के विपरीत हैं।’’ पीठ ने अपने फैसले में कहा कि प्रतिवादी निरीक्षण रिपोर्ट और सामग्री के अलावा अन्य सामग्री से संबंधित सूचना देने के लिये कर्तव्य से बंधे हैं। किसी भी तरह के उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा।
क्या है पूरा मामला?
गौरतलब है कि इस साल जनवरी में शीर्ष अदालत ने सूचना के अधिकार कानून के तहत बैंकों की वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट का खुलासा नहीं करने के लिए आरबीआई को अवमानना नोटिस जारी किया था। इससे पहले उच्चतम न्यायालय और केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा था कि आरबीआई तब तक पारदर्शिता कानून के तहत मांगी गई सूचना देने से इनकार नहीं कर सकता जब तक कि उसे कानून के तहत खुलासे से छूट ना प्राप्त हो।
रिजर्व बैंक ने अपने बचाव में कहा था कि वह अपेक्षित सूचना की जानकारी नहीं दे सकता क्योंकि बैंक की वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट में ‘‘न्यासीय’’ जानकारी निहित है। न्यायालय रिजर्व बैंक के खिलाफ सूचना के अधिकार कार्यकर्ता एस सी अग्रवाल की अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रहा था। अग्रवाल ने नियमों का उल्लंघन करने वाले बैंकों पर लगाये गये जुर्माने से संबंधित दस्तावेजों सहित रिजर्व बैंक से इस बारे में पूरी जानकारी मांगी थी। उन्होंने उन बैंकों की सूची भी मांगी थी जिन पर जुर्माना लगाने से पहले रिजर्व बैंक ने कारण बताओ नोटिस जारी किये थे।
इस तरह की जानकारी का खुलासा करने के बारे में शीर्ष अदालत के फैसले के बावजूद रिजर्व बैंक ने ‘‘खुलासा करने की नीति’’ जारी की थी जिसके तहत उसने कुछ जानकारियों को सूचना के अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखा था। रिजर्व बैंक ने आर्थिक हितों के आधार पर ऐसी जानकारी देने से इंकार कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने 2015 में अपने फैसले में कहा था कि रिजर्व बैंक को उन बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए जो गलत कारोबारी आचरण अपना रहे हैं। न्यायालय ने यह भी कहा था कि सूचना के अधिकार कानून के तहत इस तरह की जानकारी रोकी नहीं जा सकती है।
समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा से इनपुट्स लेकर