रवीश कुमार: हाशिये पर धकेली गयी जनता का पत्रकार, जानें उनकी जिंदगी का सफरनामा

By भाषा | Published: August 4, 2019 11:30 AM2019-08-04T11:30:38+5:302019-08-04T11:30:38+5:30

एनडीटीवी के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक और टेलीविजन के जरिए पिछले 22 बरस से देश का एक पहचाना चेहरा रहे रवीश को ‘रैमॉन मैगसायसाय’ पुरस्कार के लिए चुना गया है।

Ravish Kumar: Journalist of the voiceless public, journey of his life | रवीश कुमार: हाशिये पर धकेली गयी जनता का पत्रकार, जानें उनकी जिंदगी का सफरनामा

रवीश कुमार: हाशिये पर धकेली गयी जनता का पत्रकार, जानें उनकी जिंदगी का सफरनामा

Highlightsरैमॉन मैगसायसाय’ पुरस्कार रवीश को पत्रकारिता के क्षेत्र में मिले पुरस्कारों की सूची की ताजा कड़ी है। 2013 में उन्हें पत्रकारिता में उत्कृष्ठता के लिए ‘रामनाथ गोयनका पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

हाशिए पर पड़े मुद्दों को पूरी गंभीरता के साथ मुख्य धारा में लाने का हुनर बखूबी जानने वाले देश के एक पत्रकार को अगर ईमानदार और आम लोगों की वास्तविक और अनकही समस्याओं को उठाने वाला बताकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया जाए तो भीतर कहीं यह एहसास मजबूत होता है कि तमाम दुश्वारियों के बावजूद लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अभी मजबूत है। एनडीटीवी के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक और टेलीविजन के जरिए पिछले 22 बरस से देश का एक पहचाना चेहरा रहे रवीश को ‘रैमॉन मैगसायसाय’ पुरस्कार के लिए चुना गया है।

1957 में स्थापित पुरस्कार के आयोजकों ने यह कहकर रवीश का कद और बढ़ा दिया कि वह जिस तरह की पत्रकारिता करते हैं, वही उनकी विशेषता है। कुछ बरस पहले सोशल मीडिया पर रवीश का एक इंटरव्यू आया था, जिसमें अंग्रेजी की एक मशहूर पत्रकार ने हिंदी न जानने के लिए माफी मांगते हुए बहुत से मुद्दों पर उनसे बात की थी। यह देश की पत्रकारिता में हिंदी की बढ़ती पहुंच की मजबूत आहट थी।

बिहार के मोतीहारी में 5 दिसंबर 1974 को जन्मे रवीश कुमार ने पटना के लोयोला हाई स्कूल से पढ़ाई करने के बाद दिल्ली का रूख किया और दिल्ली विश्विवद्यालय के देशबंधु कॉलेज से स्नातक की उपाधि हासिल की। उन्होंने भारतीय जनसंचार संस्थान में स्नातकोत्तर में दाखिला लिया। अपने कार्यक्रम के दौरान किसी भी मुद्दे को उठाने के दौरान पांच से सात मिनट तक उसके बारे में बेहद आसान और दिलचस्प शब्दों में जानकारी देकर समा बांध देने वाले रवीश बताते हैं कि पढ़ाई के दौरान ही उनके एक शिक्षक ने उनसे कहा था कि वह अच्छा लिखते हैं इसलिए पत्रकार बन सकते हैं। पढ़ाई अभी पूरी नहीं हुई थी कि उन्हें एनडीटीवी में 50 रूपए रोज पर डाक छांटने का काम मिल गया और उसके बाद पत्रकारिता के रास्ते पर उनके कदम बढ़ते चले गए।

वक्त के साथ रवीश हर उस मुद्दे पर बात करने लगे जो आम लोगों के दिल को छूता था। वह हर उस इनसान के हमदर्द बने, जिसका दर्द सुनने वाला कोई नहीं था और हर उस शख्स को अपनी आवाज दी, जिसकी आवाज जमाने भर के शोर में कहीं गुम हो गई थी। नतीजा यह निकला कि उनके काम को हर ओर सराहा जाने लगा। ‘रैमॉन मैगसायसाय’ पुरस्कार रवीश को पत्रकारिता के क्षेत्र में मिले पुरस्कारों की सूची की ताजा कड़ी है।

उन्हें हिंदी पत्रकारिता और रचनात्मक लेखन के लिए 2010 का ‘गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार’ प्रदान किया गया। 2013 में उन्हें पत्रकारिता में उत्कृष्ठता के लिए ‘रामनाथ गोयनका पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। इंडियन एक्सप्रेस ने 2016 में उन्हें सौ सबसे प्रभावी भारतीयों में जगह दी और इसी वर्ष मुंबई प्रेस क्लब ने उन्हें वर्ष का श्रेष्ठ पत्रकार बताया। मार्च 2017 में पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें पहला ‘कुलदीप नैयर पत्रकारिता अवार्ड’ दिया गया।

Web Title: Ravish Kumar: Journalist of the voiceless public, journey of his life

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