रामलला विराजमान के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में बताया- बाबरी मस्जिद से पहले विवादित स्थल पर ‘‘भव्य’’ मंदिर था

By भाषा | Published: August 17, 2019 05:41 AM2019-08-17T05:41:00+5:302019-08-17T05:41:00+5:30

उच्चतम न्यायालय में शुक्रवार को ‘‘रामलला विराजमान’’ के वकील ने कहा कि अध्योध्या में विवादित स्थल पर बाबरी मस्जिद के अस्तित्व से काफी पहले ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में भगवान राम का एक ‘‘भव्य’’ मंदिर था।

Ramlala Virajman's lawyer told the Supreme Court - Before the Babri Masjid there was a "grand" temple at the disputed site | रामलला विराजमान के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में बताया- बाबरी मस्जिद से पहले विवादित स्थल पर ‘‘भव्य’’ मंदिर था

रामलला विराजमान के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में बताया- बाबरी मस्जिद से पहले विवादित स्थल पर ‘‘भव्य’’ मंदिर था

नयी दिल्ली, 16 अगस्तः उच्चतम न्यायालय में शुक्रवार को ‘‘रामलला विराजमान’’ के वकील ने कहा कि अध्योध्या में विवादित स्थल पर बाबरी मस्जिद के अस्तित्व से काफी पहले ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में भगवान राम का एक ‘‘भव्य’’ मंदिर था। दशकों पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुकदमे के एक पक्ष रामलला विराजमान के वकील ने 1950 में स्थल के निरीक्षण के लिए अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नर की रिपोर्ट का हवाला दिया।

उन्होंने अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ भूमि पर अपने दावे के पक्ष में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के निष्कर्षों का भी उल्लेख किया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के सातवें दिन अपनी दलीलों को आगे बढ़ाते हुए रामलला की ओर से वरिष्ठ वकील सी एस वैद्यनाथन ने कहा कि एससआई की रिपोर्ट के अनुसार वहां ‘‘ईसापूर्व दूसरी शताब्दी का स्तंभ आधारित एक भव्य ढांचा मौजूद था’’ तथा एएसआई के सर्वेक्षण में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि उस स्थल पर ‘‘स्तंभों वाला’’ एक ‘‘मंडप’’ था।

वरिष्ठ वकील ने विवादित स्थल पर एएसआई की खुदाई में मिली सामग्री सहित विभिन्न तस्वीरों एवं रिपोर्ट का विस्तार से हवाला दिया। यद्यपि इस इस प्रकार की कोई सामग्री नहीं मिली जिससे यह पता चलता हो कि यह केवल भगवान राम का मंदिर था। वैद्यनाथन ने पीठ से कहा कि भगवान शिव सहित देवताओं की तस्वीरें, सिंह से घिरे हुए गरूड़ स्तंभों पर शिल्प तथा कमल की आकृतियां इस बात के यथेष्ठ संकेत हैं कि यह एक मंदिर था तथा इससे भी बड़ी बात कि यह सब किसी मस्जिद में नहीं पाए जाते।

सुनवाई कर रही पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर शामिल हैं। वरिष्ठ वकील ने कहा, ‘‘हिन्दुओं की आस्था तथा संभाव्यताओं की प्रचुरता को ध्यान में रखते हुए इस बात का संकेत मिलता है कि यह भगवान राम का मंदिर था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘खुदाई में भव्य प्राचीन ढांचे के साथ मिली अन्य सामग्री से सुझाव मिलता है कि यह एक मंदिर था।’’ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों में से एक न्यायमूर्ति एस यू खान ने अपने निर्णय में एएसआई रिपोर्ट पर गौर नहीं किया और त्रुटिपूर्ण तरीके से यह निष्कर्ष दिया कि मस्जिद खाली स्थान और मंदिर के भग्नावशेषों पर बनी। जबकि अन्य दो न्यायाधीशों ने रिपोर्ट का संज्ञान लिया जिसमें कहा गया था कि जहां मस्जिद बनी वहां एक मंदिर था।

वैद्यनाथन ने कहा, ‘‘हम पुरातात्विक साक्ष्यों से इस बात का समर्थन हासिल कर रहे हैं कि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से एक मंदिर था तथा विभिन्न कालखंड, जिनमें ‘शुंग’, ‘कुषाण’, ‘गुप्त’ शामिल हैं, में इसका विस्तार किया गया।’ पीठ ने कहा, ‘‘हमारे समक्ष ढांचे का प्रश्न नहीं है बल्कि यह (सवाल) है कि मस्जिद से पहले क्या यह धार्मिक प्रकृति का था?’’ उसने यह भी कहा कि सभ्यता के क्रम में भवनों का ‘‘निर्माण एवं पुनर्निर्माण’’ हुआ तथा इस बात को स्थापित करने के लिए साक्ष्य चाहिए कि जहां मस्जिद बनी, वहां मंदिर था।

वैद्यनाथ ने कहा, ‘‘यह एक मंदिर था जहां जनता की पहुंच थी। मूलभूत नींव समान रही जबकि ढांचे का पुनर्निर्माण किया गया। नीचे की नींव में कभी बदलाव नहीं हुआ। स्तंभों की कुल 17 पंक्तियां थीं और प्रत्येक पंक्ति में पांच स्तंभ थे।’’ एएसआई 2003 की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इसे विशेषज्ञों ने तैयार किया था और इसके निष्कर्षों को खारिज नहीं किया जा सकता। पीठ ने प्रश्न किया, ‘‘वहां पर एक कब्र भी है। आप इसकी व्याख्या कैसे करेंगे?’’ इसके जवाब में वरिष्ठ वकील ने कहा, ‘‘यह कब्र बहुत बाद के काल की है।’’

उन्होंने कहा कि खुदाई कई परतों में की गयी तथा कब्र को बहुत गहराई में नहीं पाया गया। वैद्यनाथ ने कहा कि दोनों पक्ष के पुरातात्विक विशेषज्ञ खुदाई के दौरान उपस्थित थे जिसकी वीडियोग्राफी की गयी। विचार विमर्श के बाद निष्कर्ष निकाले गये तथा रिपोर्ट में ‘एक मंदिर के विशिष्ट लक्षण’ पाये गये। उनहोंने कहा, ‘‘एएसआई रिपोर्ट में स्तंभों वाले विशाल कक्ष पाए गये जो सामान्य आवासीय भवनों से भिन्न हैं।’’खुदाई उस स्थल पर नहीं की गयी जहां वर्तमान में अस्थायी मंदिर में राम लला विराजमान स्थापित हैं।

उन्होंने ढांचे के भीतर की प्रतिमाओं के फोटोग्राफों वाला एक एलबम भी सौंपा और कहा कि मस्जिदों में ऐसी प्रतिमाएं नहीं होतीं। पूर्व में विवादित स्थल पर नमाज होने का जिक्र करते हुए वैद्यनाथन ने कहा कि प्रार्थना करने का यह अर्थ नहीं होता कि स्थल पर वैध कब्जा हो गया। इस मामले में दलीलों को सोमवार को आगे बढ़ाया जाएगा। शीर्ष अदालत इस समय अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि के मालिकाना हक के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही है।

Web Title: Ramlala Virajman's lawyer told the Supreme Court - Before the Babri Masjid there was a "grand" temple at the disputed site

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