जन्मदिन विशेष: रमेशचंद्र झा के गीतों में हृदय बोलता है और कला गाती है...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 8, 2023 11:41 AM2023-05-08T11:41:34+5:302023-05-08T15:27:23+5:30

स्वतंत्रता सेनानी और कवि-कथाकार रहे रमेशचन्द्र झा का जन्म आज के ही दिन 1928 में बिहार के मोतिहारी जिले के सुगौली स्थित फुलवरिया गाँव के मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था।

Ramesh Chandra Jha birth anniversary, poet and freedom fighter life story, biography and photos | जन्मदिन विशेष: रमेशचंद्र झा के गीतों में हृदय बोलता है और कला गाती है...

जन्मदिन विशेष: रमेशचंद्र झा के गीतों में हृदय बोलता है और कला गाती है...

आजादी का अमृत महोत्सव के तहत स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले महान विभूतियों, क्रांतिकारियों, शहीदों व स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया जा रहा है और उनकी उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास सहेज कर रखने की कोशिश की जा रही है. इसी ऋखला के तरह बिहार के महान स्वतंत्रता सेनानी और कवि-कथाकार रहे रमेशचंद्र झा को श्रद्धांजलि दी जा रही है.  

रमेशचन्द्र झा का जन्म 8 मई 1928 को बिहार के मोतिहारी जिले के सुगौली स्थित फुलवरिया गाँव के मध्यमवर्गीय ब्राम्हण परिवार में हुआ. इनके पिता लक्ष्मीनारायण झा जाने-माने देश-भक्त और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेज़ी हुकूमत से जमकर लड़ाई लड़ी थी और कई बार जेल भी गए थे. चम्पारण सत्याग्रह आन्दोलन के समय 15 अप्रैल 1917 को जिस दिन महात्मा गांधी चम्पारन आये, ठीक उसी दिन वे अंग्रेजो द्वारा गिरफ़्तार कर लिए गए थे और उन्हें 6 महीने की सश्रम कारावास की सज़ा सुनाकर हजारीबाग जेल भेज दिया गया था. 

रमेशचन्द्र झा का जन्म असहयोग आन्दोलन (नॉन कॉपरेशन - 1 अगस्त 1920) के बाद और नमक सत्याग्रह (दांडी यात्रा - 12 मार्च 1930) के पहले का है, जो भारतीय स्वाधीनता के महासमर की आधारशिला भी कही जाती है। इन पर ऐसे ज्वलंत समय का प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सका और सिर्फ 14 वर्ष की उम्र में ही ये स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कूद पड़े. 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में इन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. चंपारण के सुगौली स्थित पुलिस स्टेशन में इनके नाम पर कई मुकदमे दर्ज किये गए जिनमें “थाना डकैती काण्ड” सबसे ज्यादा चर्चित रहा. तब वे रक्सौल के ‘हजारीमल उच्च विद्यालय’ के छात्र थे. 

भारत छोड़ो आंदोलन के दौर में अंग्रेजों के दमन के कारण 24 अगस्त 1942 को बेतिया में जो गोली काण्ड हुआ, उसने पुरे बिहार को आंदोलित कर दिया. सुगौली (मोतिहारी) रेलवे थाना लूट और अग्निकांड को लेकर रमेशचन्द्र झा को भी अभियुक्त बनाया गया पर वे फ़रार हो गए. फिर वे लंबे समय तक फ़रार रहकर ही आन्दोलन चलाते रहे और अगस्त क्रांति को जीवित रखा. रमेशचन्द्र झा पर रक्सौल के थाना लूट और अग्निकांड के साथ साथ कई अन्य मामलों का मुकदमा भी चला. 

यही वजह थी कि उन्हें लंबे समय तक फ़रार रहना पड़ा था. वे जैसे ही एक आरोप से बरी होते, दुसरा आरोप सामने आ जाता. मोतिहारी जिले के एक जज ने तो यह कह कर एक बार उन्हें माफ़ कर दिया था कि इनता छोटा और सीधा-साधा दिखने वाला, ये लड़का थाना को लूटने और पिस्टल चुराने जैसा संगीन जुर्म नहीं कर सकता. पर सच्चाई ये थी कि ये सीधा-साधा दिखने वाला बच्चा दोनों ही ‘अपराधों’ में शामिल था. 

कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ द्वारा सम्पादित तथा विकास लिमिटेड, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) की ओर से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘नया जीवन’ (सन् 1963) में प्रकाशित एक संस्मरण ‘...और तीसरे दर्जे का कैदी करार दिया गया’ में रमेशचन्द्र झा लिखते हैं- “सुगौली का अनवर दारोगा जानता था कि ये सब मेरा किया धरा है, पर उसे सबसे ज्यादा भय गायब हुई पिस्टल की वजह से था, इसलिए जब कभी वह मुझे गिरफ़्तार करने आता तो आदर से ही बात करता और मैं भी कभी कभी कह देता कि आज गिरफ़्तार होने का मेरा मूड नहीं है..” 

रमेशचन्द्र झा सच्चे मायनों में एक राष्ट्रभक्त और स्वतंत्रता सेनानी थे. आजादी की लड़ाई भी लड़े और जेल की यातनाएं भी भोगी. लेकिन हर जेल-यात्रा उनके लिए साहित्यिक वरदान बनी. अपनी जेल यात्रा से ही उनका झुकाव साहित्य और लेखन की तरफ होता गया और आगे चलकर साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने अपना बहुमूल्य योगदान दिया. 

50 और 60 के दशक में उनकी ख्याति देश भर में फैली. उन्होंने कई बार ‘अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों’ में बिहार का प्रतिनिधित्व भी किया. 

रामवृक्ष बेनीपुरी ने उनके बारे में लिखा है- “दिनकर के साथ बिहार में कवियों की जो नयी पौध जगी, उसका अजीब हस्र हुआ...आखें खोजती हैं इसके बाद आने वाली पौध कहाँ है...कभी कभी कुछ नए अंकुर ज़मीन की मोती पर्त को छेद कर झांकते हुए से दिखाई पड़ते हैं... रमेश भी एक अंकुर है और वह मेरे घर का है, अपना है. पक्षपात ही सही बेधड़क कहूंगा कि रमेश की चीज़ें मुझे बहुत पसंद आती रही हैं...” 

“अकिंचन दिया साधना का अकेला / जनम से जला है मरण तक जलेगा । अमरदीप जीवन सजग प्राण बाती / बहुत ही कठिन साध की लौ बुझाना । विरह का दिया है मिलन तक चलेगा / अकिंचन दिया साधना का अकेला ।”  

प्रयाग से लिखे अपने एक पत्र में हरिवंश राय बच्चन लिखते हैं– “रमेशचंद्र झा के गीतों से मेरा परिचय ‘हुंकार’ नामी एक साप्ताहिक से हुआ. उनके गीतों में हृदय बोलता है और कला गाती है... मेरी मनोकामना है कि उनके मासन से निकले हुए गीत अनेकानेक कंठों में उनकी अपनी सी प्रतिध्वनि बन कर गूंजे...” 

रमेशचन्द्र झा की कविताओं, कहानियों और ग़ज़लों में जहाँ एक तरफ़ देशभक्ति और राष्ट्रीयता का स्वर है, वहीं दुसरी तरफ़ मानव मूल्यों और जीवन के संघर्षों की भी अभिव्यक्ति है. आम लोगों के जीवन का संघर्ष, उनके सपने और उनकी उम्मीदें रमेशचन्द्र झा कविताओं का मुख्य स्वर है. 

उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखते हुए लगभग 70 से भी ज़्यादा पुस्तकों की रचना की, जिनमें मजार का दिया, कलिंग का लहू, स्वागतिका, आसावरी, प्रियंवदा, यह देश है वीर जवानों का, चलो दिल्ली, मेघ-गीत आदि मुख्य हैं. 

बावजूद इसके, साहित्य की मुख्यधारा में उन्हें नहीं जोड़े जाने को लेकर वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अरविंद मोहन कहते हैं -  

“साहित्य में जो खेमाबंदी हुई है, खासतौर पर साठ के दशक के बाद उसके शिकार मुझे लगता है रमेश जी भी थे. एक बड़ी वजह उनके साहित्य के विलुप्त होने की ये भी है. आलोचना में, साहित्य में जो धाराएँ प्रबल हुईं, या जो लॉबी और विचारधारा मज़बूत हुई उससे वे पूरी तरह अछूते रहे. उनके समय के ही जो उनके दूसरे साथी कवि रहे, त्रिलोचन और नागार्जुन, जिन्होंने एक साथ लिखना शुरू किया, एक जैसी लिखाई शुरू हुई, तो ये ज़रूर है कि जो धारा प्रबल हुई उनके साथ रमेश जी का वैसा रिश्ता नहीं रहा...” 

“बांटों मेरी खुशियां मुझको सदमा दे दो / इस जीवन को एक कंठ नया नग्मा दे दो / यह जीवन क्या है एक लावारिश मुर्दा है / इस लावारिश मुर्दे को लाल कफ़न दे दो...” जैसी पंक्तियों के कवि रमेशचन्द्र झा का 66 वर्ष की आयु में 07 अप्रैल, 1994, को फुलवरिया (मोतिहारी, बिहार) में देहांत हो गया था. 

Web Title: Ramesh Chandra Jha birth anniversary, poet and freedom fighter life story, biography and photos

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