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अनिवार्य प्राथमिकी पंजीकरण नीति लागू करने वाला राजस्थान पहला राज्य : गहलोत

By भाषा | Updated: August 18, 2021 23:03 IST

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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बुधवार को कहा कि गहलोत ने कहा कि राजस्थान ऐसा पहला राज्य है, जिसने अनिवार्य एफआईआर पंजीकरण की नीति लागू की। उन्होंने कहा कि इससे न्यायालयों में इस्तगासों में कमी आई है तथा महिला दुराचार के प्रकरणों की जांच में लगने वाला औसत समय भी 287 दिनों से घटकर 140 दिन रह गया है। वह करीब 34 करोड़ रूपए की लागत से तैयार 15 पुलिस थानों के नवीन भवन के लोकार्पण तथा नवसृजित 9 पुलिस थानों की शुरूआत के समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘‘बलात्कार के प्रकरणों में वर्ष 2017-18 में करीब 33 प्रतिशत महिलाओं को प्राथमिकी के लिए अदालत जाना पड़ता था। अब यह आंकड़ा घटकर 16 प्रतिशत रह गया है। वर्ष 2019 में महिला अत्याचारों के 34 प्रतिशत प्रकरण पूरे देश में लंबित थे, जबकि राजस्थान में महिला अत्याचारों के प्रकरणों का प्राथमिकता से निस्तारण करने के कारण वर्ष के अंत तक मात्र नौ प्रतिशत प्रकरण लंबित थे।’’ उन्होंने कहा कि देश के दूसरे कई राज्यों में कम पंजीकरण के बावजूद राजस्थान से ज्यादा प्रकरण लंबित थे। उन्होंने जयपुर, झुंझुनूं, टोंक, हनुमानगढ़, पाली, चित्तौड़गढ़ और राजसमन्द में एक-एक, उदयपुर में दो और भीलवाड़ा एवं नागौर में तीन-तीन थानों के नए भवन का लोकार्पण किया तथा जयपुर पूर्व और डूंगरपुर में दो-दो, चूरू, हनुमानगढ़, उदयपुर, अलवर और चित्तौड़गढ़ में एक-एक नए थाने की शुरूआत की। मुख्यमंत्री ने कहा कि आमजन को त्वरित न्याय, अपराधियों में भय और बेहतर कानून व्यवस्था के लिए राज्य सरकार पुलिस के सुदृढ़ीकरण एवं आधुनिकीकरण के लिए पूरी प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है। उन्होंने कहा कि विगत ढाई वर्ष में अनिवार्य प्राथमिकी पंजीयन, थानों में स्वागत कक्ष, महिला अपराध पर लगाम के लिए स्पेशल इनवेस्टीगेशन यूनिट सहित कई महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले लेने के साथ ही पुलिस को आधुनिक संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं। उन्होंने कहा है कि पुलिस इस भावना के साथ काम करे कि हर हाल में पीड़ित पक्ष को न्याय मिले।उन्होंने कहा ,‘‘थानों में बड़ी संख्या में झूठे प्रकरण दर्ज होने की बात सामने आती है। वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में कुल निस्तारित केसों में से करीब 45 प्रतिशत मामले झूठे (अदम वकू) पाए गए, जबकि राष्ट्रीय औसत 16 प्रतिशत है। पुलिस प्रोफेशनलिज्म के साथ काम करते हुए झूठे मामले दर्ज करवाने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करे और पीड़ित को न्याय दिलाना सुनिश्चित करे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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