राजस्थान चुनावः इन दिग्गज नेताओं के हाथों में है सामाजिक सियासत की चाबी!

By प्रदीप द्विवेदी | Published: November 24, 2018 11:44 AM2018-11-24T11:44:43+5:302018-11-24T11:44:43+5:30

Rajasthan Vidhan Sabha Chunav 2018: देखना दिलचस्प होगा कि इस बार के विधानसभा चुनाव में ये नेता अपने-अपने दलों को कितना फायदा दिलाते हैं?

Rajasthan Election: The key to social politics is in their hands, Key player leaders | राजस्थान चुनावः इन दिग्गज नेताओं के हाथों में है सामाजिक सियासत की चाबी!

राजस्थान चुनावः इन दिग्गज नेताओं के हाथों में है सामाजिक सियासत की चाबी!

Highlightsराजस्थान विस चुनाव में इस बार जातिवाद, परिवारवाद आदि का जोर हैसामाजिक सियासत का ही नतीजा है कि भाजपा ने वैसे तो मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाईप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को रोकने के इरादे से मुस्लिम उम्मीदवार कैबिनेट मंत्री यूनुस खान को भाजपा का उम्मीदवार बना दिया

राजस्थान विस चुनाव में इस बार जातिवाद, परिवारवाद आदि का जोर है, लिहाजा विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी जातिगत समीकरण के आधार पर ही टिकट वितरित किए हैं. जहां करणी सेना, राजस्थान ब्राह्मण महासभा जैसे संगठनों का सियासत पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष असर नजर आता है वहीं कांग्रेस, भाजपा सहित विभिन्न दलों में कई ऐसे नेता हैं जिनके पास सामाजिक सियासत की चाबी है.

सामाजिक सियासत का ही नतीजा है कि भाजपा ने वैसे तो मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, किन्तु प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को रोकने के इरादे से मुस्लिम उम्मीदवार कैबिनेट मंत्री यूनुस खान को भाजपा का उम्मीदवार बना दिया. इसी तरह कांग्रेस ने सीएम वसुंधरा राजे को घेरने के इरादे से मानवेंद्र सिंह को उनके खिलाफ चुनावी मैदान में उतार दिया है.

हनुमान बेनिवाल जाट समाज के नए नेता बन कर उभरे हैं, जिनका असर जाट बाहुल्य क्षेत्रों में नजर आ रहा है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दलों ने भी उनके प्रभाव क्षेत्रों में जाट उम्मीदवारों को ही आगे किया है, इसलिए नतीजे क्या होंगे? यह अभी कहना जल्दीबाजी होगी!

राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मण समाज का प्रभाव रहा है. हालांकि, जनसंख्या की दृष्टि से ब्राह्मणों की आबादी करीब 7-8 प्रतिशत है, लेकिन यह बहुत बड़ा सियासी प्रेरक वर्ग है, इसलिए राजनीति की दिशा बदलने का दम रखता है.

आजादी के बाद से ब्राह्मण कांग्रेस के साथ रहे, किन्तु पिछले विस चुनाव में ब्राह्मणों ने भाजपा का साथ दिया था और नतीजे भी भाजपा के पक्ष में रहे थे. इन पांच वर्षों में केन्द्र और प्रदेश की भाजपा सरकारों ने ब्राह्मणों को नाराज ही किया है.

जहां कांग्रेस में प्रदेश के प्रमुख नेता ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष पं. भंवरलाल शर्मा हैं, वहीं भाजपा में पं. घनश्याम तिवाड़ी थे, परन्तु इन पांच वर्षों में तिवाड़ी, सीएम राजे के खिलाफ ही रहे. जब तिवाड़ी की बात भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने नहीं सुनी तो उन्होंने अपनी नई पार्टी- भावापा, बना ली और अब वे तकरीबन एक तिहाई उम्मीदवारों के साथ चुनाव मैदान में हैं. अब सीएम वसुंधरा राजे के विश्वसनीय एसडी शर्मा भाजपा का ब्राह्मण फेस बन कर उभर रहे हैं.

राजस्थान के पूर्व कैबिनेट मंत्री पं. भंवरलाल शर्मा, सरदार शहर से चुनाव लड़ रहे हैं और उनके समर्थकों को उम्मीद है कि यदि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो शर्मा को सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है.

पं. घनश्याम तिवाड़ी, जयपुर के सांगानेर विस क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं तथा उनके समर्थको को भरोसा है कि राजस्थान में अगली सरकार उनके सहयोग के बगैर नहीं बन पाएगी. अजा-जजा मतदाताओं के लिए जहां भाजपा में पूर्व मंत्री किरोड़ीलाल मीणा है, वहीं कांग्रेस में पूर्व मंत्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीया हैं. जहां मीणा उत्तरी राजस्थान में प्रभावी हैं, वहीं मालवीया का दक्षिण राजस्थान में विशेष असर है. 

देखना दिलचस्प होगा कि इस बार के विधानसभा चुनाव में ये नेता अपने-अपने दलों को कितना फायदा दिलाते हैं?

English summary :
Rajasthan Assembly Elections 2018: Rajasthan Vidhan Sabha Chunav 2018 key players and leaders of Bharatiya Janata Party and Congress.


Web Title: Rajasthan Election: The key to social politics is in their hands, Key player leaders

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