राजस्थान: पिछले 20 साल से हर चुनाव में जनता बदल देती है सरकार, सीएम वसुंधरा राजे के सामने हैं ये 5 बड़ी चुनौतियाँ
By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 20, 2018 07:25 AM2018-10-20T07:25:54+5:302018-10-20T07:25:54+5:30
Rajasthan Chunav 2018: राजस्थान विधान सभा में कुल 200 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए कम से कम 101 सीटों पर जीत हासिल करनी होगी। बीजेपी निवर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है तो कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की अगुवाई में सत्ताधारी दल की चुनौती दे रही है।
देश की राजनीति में राजस्थान को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती लेकिन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए यह रेगिस्तानी राज्य नाक का विषय रहा है। राजस्थान उन राज्यों में हैं जहाँ सबसे पहले बीजेपी राज्य की सत्ता में आयी थी। बीजेपी के कद्दावर नेता भैरो सिंह शेखावत पहले जनता पार्टी सरकार में और फिर भारतीय जनता पार्टी सरकार में राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे। अभी भी राज्य में वसुंधरा राजे के नेतृत्ववाली बीजेपी सरकार है। राजस्थान की कुल 200 विधान सभा सीटों के लिए सात दिसंबर को मतदान होगा। चुनाव नतीजे 11दिसंबर को आएंगे। आइए देखते हैं कि आगामी चुनाव के मद्देनजर सीएम वसुंधरा राजे के सामने 5 सबसे बड़ी चुनौतियाँ क्या हैं-
1- राजस्थान बीजेपी में कई शक्ति केंद्र-
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट की मानें तो राजस्थान बीजेपी में वसुंधरा राजे सर्वमान्य नेता नहीं रह गयी हैं। कई मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जाता रहा है कि वसुंधरा राजे की बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से भी ज्यादा पटरी नहीं बैठती। इस तरह की भी अफवाहें उड़ीं कि बीजेपी चुनाव जीतने के बाद किसी और नेता को राज्य में सीएम बना सकती है।
वसुंधरा राजे को भी इस बात का अंदाजा था शायद इसीलिए उन्होंने चुनाव से पहले ही यह साफ करवा लिया कि पार्टी सत्ता में आती है तो वही राज्य की सीएम बनेंगी। लेकिन इससे उनकी आगे की राह पूरी तरह निष्टकंट नहीं हो गयी है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो पिछले कुछ सालों बीजेपी सांसद अर्जुन राम मेघवाल और गजेंद्र सिंह शेखावत राजस्थान बीजेपी के नए शक्ति केंद्र बनकर उभरे हैं। ये दोनों ही सांसद नरेंद्र मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं।
अगर अंदरखाने की खबरें सही हैं तो चुनाव के लिए टिकट बंटवारे में वसुंधरा की पूरी तरह नहीं चलेगी। अगर ऐसा हुआ तो इसका असर प्रत्याशियों के चयन और चुनावी मुकाबले पर पड़ना तय है।
2- वसुंधरा राजे की लोकप्रियता पर सवाल
वसुंधरा राजे की लोकप्रियता "अब पहले जैसी नहीं रही", ऐसे दावे पिछले कुछ सालों से किये जा रहे हैं। इन अफवाहों में कितना दम है यह तो आगामी चुनाव में ही पता चलेगा लेकिन मतदाताओं का छोटा प्रतिशत भी इनकी चपेट में आ गया तो बीजेपी को भारी पड़ेगा।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार वसुंधरा राजे पर अपने मंत्रियों और अन्य पार्टी नेताओं के साथ "रानी" की तरह पेश आने के आरोप लगते रहे हैं। जाहिर इसकी वजह से पार्टी के एक धड़े में उनके प्रति नाखुशी है। राजे पर आरोप लगता रहा है कि वो पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से सहज संवादन हीं रखतीं।
पार्टी कैडरों की तरह आम जनता को भी राजे से इस तरह की शिकायतें हैं। अगर इन शिकायतों को अफवाहों का सहारा मिला और ये ज्यादा फैल गयीं तो राजस्थान में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन होने की संभावना बलवती हो जाएगी।
3- पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह से वसुंधरा राजे का रिश्ता
वसुंधरा राजे की एक बड़ी चुनौती उनके पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से सम्बन्ध को लेकर लगायी जाने वाली अटकलें भी हैं।
एक समय इस अफवाह को काफी बल दिया गया कि अमित शाह चाहते हैं कि वसुंधरा राजे को हटाकर ओम माथुर को राजस्थान का सीएम बना दे। हालाँकि ऐसा हुआ नहीं लेकिन ये अफवाहें अभी पूरी तरह थमी भी नहीं हैं।
अभी भी कुछ लोग मानते हैं कि बीजेपी केवल चुनाव पूर्व टूटफूट से बचने के लिए वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है। अगर पार्टी को बहुमत मिलता है तो उनकी जगह किसी और नेता को प्रदेश की कमान सौंपी जा सकती है।
4- राजस्थान में सत्ता विरोधी लहर
आजादी के बाद तीन दशकों तक राजस्थान में कांग्रेस का एकक्षत्र राज्य रहा। सन् 1977 में भैरो सिंह शेखावत के नेतृत्व में राज्य में जनता पार्टी की सरकार बनी। 1980 में जनता पार्टी से अलग हुए भारतीय जन संघ धड़े ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की स्थापना की। मार्च 1990 में भैरो सिंह शेखावत राज्य के पहले बीजेपी मुख्यमंत्री बने।
1993 में हुए राज्य विधान सभा चुनाव में जीत हासिल करके शेखावत फिर मुख्यमंत्री रहे लेकिन 1998 में हुए चुनाव में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस ने उन्हें हरा दिया। साल 2003 में हुए राजस्थान विधान सभा चुनाव में बीजेपी ने वसुंधरा राजे के नेतृत्व में गहलोत को चुनौती दी और कांग्रेस के हाथों से सत्ता छीन ली। लेकिन साल 2008 में फिर से राजस्थान की जनता ने सत्ता कांग्रेस के हाथों में सौंप दी।
साल 2013 के विधान सभा चुनाव में जनता ने फिर से सत्ता परिवर्तन करते हुए वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली बीजेपी को बहुमत दे दिया। ऐसे में साल 2018 में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि राजस्थान की जनता के सत्ता परिवर्तन के मिजाज को कैसे शांत किया जाये।
5- नरेंद्र मोदी के करिश्मा पर सवाल
वसुंधरा राजे की एक बड़ी चुनौती राष्ट्रीय स्तर पर पीएम नरेंद्र मोदी की छवि पर उठते सवाल भी हैं। जब से बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लोक सभा चुनाव 2014 में प्रचण्ड बहुमत हासिल किया है पीएम मोदी छोटे-बड़े हर चुनाव में पार्टी के नंबर वन स्टार प्रचारक रहे हैं।
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, असम, मणिपुर इत्यादि देश के अलग-अलग क्षेत्रों में हुए विधान सभा चुनावों में पीएम मोदी के कन्धों पर पार्ट को जिताने का जिम्मा रहा है।
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और उनकी पार्टी के कई दूसरे नेता यह कह चुके हैं कि आगामी चुनावों में भी बीजेपी को सबसे ज्यादा भरोसा पीएम मोदी के करिश्मे पर ही है। लेकिन पिछले एक-डेढ़ साल में पीएम नरेंद्र मोदी के करिश्मे पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं।
राजनीतिक जानकार कहने लगे हैं कि भले ही लोक सभा चुनाव में बीजेपी को पीएम मोदी की छवि का लाभ मिलेगा लेकिन राज्य के चुनावों में जनता स्थानीय मुद्दों और नेताओं के आधार पर वोटिंग कर सकती है, खासकर उन राज्यों में जहाँ बीजेपी की सरकार है।
राजनीतिक जानकार अपने इस तर्क में गुजरात विधान सभा चुनाव का उदाहरण देते हैं। गुजरात पीएम मोदी और अमित शाह का गृह प्रदेश है फिर भी बीजेपी ने मामूली बढ़त के साथ ही सरकार बनायी। ऐसे में अगर पीएम मोदी का करिश्मा जरा भी कम हुआ तो वसुंधरा राजे को चुनावी भवसागर अकेले दम पर पार करना होगा और ये आसान नहीं होगा।