सवर्णों को आर्थिक आरक्षणः क्या 4 साल के दर्द पर असर करेगा चार माह का मरहम?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: January 8, 2019 07:55 AM2019-01-08T07:55:58+5:302019-01-08T17:33:12+5:30
सामान्य वर्ग की मांग आर्थिक आधार पर 15 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण देने की थी, लेकिन सियासी मजबूरी के बावजूद पीएम मोदी टीम ने यह 10 प्रतिशत ही रखा है।
तीन राज्यों में भाजपा क्या हारी, पीएम मोदी टीम ने फिर-से सामान्य वर्ग की ओर कदम बढ़ा दिए हैं, और इसी का नतीजा है- मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए सरकारी नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव को पास किया गया।
राजस्थान के पूर्व मंत्री और आॅल इंडिया ब्राह्मण फेडरेशन के अध्यक्ष विधायक पं। भंवरलाल शर्मा वर्तमान आरक्षण व्यवस्था को जारी रखते हुए सामान्य वर्ग को आरक्षण का अभियान लंबे समय से चला रहे थे, तो बसपा प्रमुख मायावती और केन्द्रीय मंत्री रामदास अठवले भी इसके पक्ष में थे।
सामान्य वर्ग की मांग आर्थिक आधार पर 15 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण देने की थी, लेकिन सियासी मजबूरी के बावजूद पीएम मोदी टीम ने यह 10 प्रतिशत ही रखा है।
उल्लेखनीय है कि पीएम मोदी सरकार ने भाजपा के वोट बैंक- शहरी और सामान्य वर्ग के हितों को नजरअंदाज करते हुए गैर भाजपाई वोट बैंक साधने का प्रयास किया, जिसके नतीजे में नए मतदाता तो भाजपा से जुड़े नहीं, पुराने समर्थक भाजपा से दूर हो गए। सामान्य वर्ग की नाराजगी तब और बढ़ गई जब पीएम मोदी सरकार ने एससी-एसटी एक्ट में संशोधन कर दिया। यह नाराजगी पांच राज्यों के चुनाव के समय साफ नजर आई और तीनों प्रमुख राज्यों की सत्ता भाजपा के हाथ से निकल गई।
इसीलिए एससी-एसटी एक्ट पर पीएम मोदी सरकार के फैसले के बाद सवर्ण जातियों में नाराजगी और विस चुनाव में हार के मद्देनजर इसे सवर्णों को अपने पाले में लाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
हालांकि, केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव तो पास कर दिया है, लेकिन इसे लागू करवाने की राह काफी मुश्किल है। इसके लिए सरकार को संविधान में संशोधन करना होगा तो इसके लिए संसद में शेष दलों के समर्थन की भी जरूरत होगी।
सबसे बड़ा सियासी सवाल यह है कि- क्या पीएम मोदी सरकार के इस निर्णय से सामान्य वर्ग की नाराजगी दूर होगी? क्या लोस चुनाव में भाजपा को फिर-से सामान्य वर्ग का समर्थन हांसिल होगा?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चुनावी समय में इसका बड़ा फायदा मिलना मुश्किल है, क्योंकि यह महज सियासी मजबूरी में किए गए निर्णय के तौर पर देखा जा रहा है। यही नहीं, इससे एससी-एसटी एक्ट संशोधन की नाराजगी का भी कोई सीधा संबंध नहीं है। देखना दिलचस्प होगा कि- चार साल के दर्द पर कितना असर करेगा चार माह का मरहम?