उप्र और उत्तराखंड के जबरन धर्मपरिवर्तन कानूनों को चुनौती देते हुये न्यायालय में जनहित याचिकायें

By भाषा | Updated: December 3, 2020 21:33 IST2020-12-03T21:33:37+5:302020-12-03T21:33:37+5:30

Public interest litigations in court challenging the forced conversion laws of Uttar Pradesh and Uttarakhand | उप्र और उत्तराखंड के जबरन धर्मपरिवर्तन कानूनों को चुनौती देते हुये न्यायालय में जनहित याचिकायें

उप्र और उत्तराखंड के जबरन धर्मपरिवर्तन कानूनों को चुनौती देते हुये न्यायालय में जनहित याचिकायें

नयी दिल्ली, तीन दिसंबर विवाह के लिये धर्म परिवर्तन से संबंधित उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुये उच्चतम न्यायालय में बृहस्पतिवार को दो जनहित याचिकायें दायर की गयीं।

पहली याचिका विशाल ठाकरे, अभय सिंह यादव और प्रणवेश ने दायर की है। इसमें इन कानूनों को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध करते हुये कहा गया है कि ये संविधान के बुनियादी ढांचे को प्रभावित करते हैं।

इस याचिका में कहा गया है कि विवाह की खातिर धर्म परिवर्तन से संबंधित इन कानूनों को चुनौती देते हुये ‘लव जिहाद’ शब्दावली का इस्तेमाल किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि इन दोनों राज्यों के ये कानून लोक नीति और समाज के खिलाफ हैं।

याचिका में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 विशेष विवाह कानून, 1954 के प्रावधानों के खिलाफ है और यह समाज के उस वर्ग के मन में भय पैदा करेगा जो लव जिहाद का हिस्सा नहीं है और जिन्हें आसानी से झूठे मामले में फंसाया जा सकता है।

याचिका में दलील दी गयी है कि यह अध्यादेश समाज के गलत तत्वों के हाथों का एक हथियार बन सकता है। याचिका में इस अध्यादेश को प्रभावी नहीं करने व इसे वापस लेने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

दूसरी जनहित याचिका अधिवक्ता नीरज शुक्ला ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 के खिलाफ दायर की है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने 24 नवंबर को विवाह की खातिर जबरन या झूठ बोलने के धर्म परिवर्तन के मामलों से निबटने के लिये यह अध्यादेश मंजूर किया था जिसके अंतर्गत दोषी व्यक्ति को 10 साल तक की कैद हो सकती है।

प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने 28 नवंबर को इस अध्यादेश को मंजूरी दी थी।

इस अध्यादेश के तहत महिला का सिर्फ विवाह के लिये ही धर्म परिवर्तन के मामले में विवाह को शून्य घोषित कर दिया जायेगा और जो विवाह के बाद धर्म परिवर्तन करना चाहते हैं उन्हें इसके लिये जिलाधिकारी के यहां आवेदन करना होगा।

एक अधिवक्ता ने बताया कि उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता कानून 2018 में लागू किया गया है। इसका उद्देश्य जबरन, अनावश्यक रूप से प्रभावित करके, धमकी देकर या प्रलोभन अथवा छल से धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाकर धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करना है।

हाल के सप्ताहों में भाजपा शासित राज्यों उप्र, हरियाणा और मप्र ने विवाह की आड़ में हिन्दू युवतियों का धर्म परिवर्तन कराने के कथित प्रयासों पर अंकुश लगाने के लिये कानून बनाने की मंशा जाहिर की थी। पार्टी नेता इस तरह की गतिविधि को अक्सर लव जिहाद बताते हैं।

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Web Title: Public interest litigations in court challenging the forced conversion laws of Uttar Pradesh and Uttarakhand

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