विदर्भ-मराठवाड़ा समेत देशभर में दूसरा सबसे बड़ा प्री-मानसून सूखा, 65 साल में दूसरी बार बनी ऐसी स्थिति
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 3, 2019 07:47 AM2019-06-03T07:47:27+5:302019-06-03T07:47:27+5:30
भारतीय मौसम विभाग में क्लाइमेंट ऐप्लिकेशन ऐंड यूजर इंटरफेस के पुलक गुहा ठाकुरता ने बताया कि रिसर्च के मुताबिक पिछली सदी में पश्चिमी भारत में प्री-मॉनसून बारिश में काफी तेजी से गिरावट आई है.
अमूमन एक या दो जून तक केरल में दस्तक देने वाला मानसून इस मर्तबा रूठा हुआ है और तीखी तपन के साथ लू के थपेड़ों का कहर देशभर में बदस्तूर जारी है. वहीं अब तक मार्च-अप्रैल-मई में होने वाली प्री-मानसून बारिश सिर्फ 99 मिलीमीटर ही दर्ज की गई है. भारतीय मौसम विभाग के डेटा के मुताबिक बीते 65 वर्षों में यह दूसरा मौका है, जब इस तरह से प्री-मानसून सूखे की स्थिति बनी है.
इतना ही नहीं वर्षा का सबसे कम औसत विदर्भ, मराठवाड़ा और मध्य महाराष्ट्र क्षेत्रों में हुआ है. इसके अलावा कोंकण-गोवा, गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ इलाके में भी तकरीबन यही स्थिति रही. तटीय कर्नाटक, तमिलनाडु और पुडुचेरी जैसे इलाकों में भी प्री-मॉनसून बारिश में कमी दर्ज की गई है. पहाड़ी राज्य जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम उत्तर प्रदेश, उत्तर कर्नाटक, तेलंगाना और रायलसीमा में भी कम ही बारिश हुई. हालांकि इन इलाकों में महाराष्ट्र की तुलना में बारिश का औसत अच्छा रहा है.
कब-कब बनी ऐसी स्थिति
1954 के बाद से ऐसा दूसरी बार हुआ है, जब प्री-मॉनसून में इतनी कम वर्षा हुई हो. तब देश में 93.9 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी. इसके बाद 2009 में मार्च, अप्रैल और मई के दौरान 99 मिलीमीटर बारिश हुई थी. फिर 2012 में यह आंकड़ा 90.5 मिलीमीटर का था और इसके बाद अब 2019 में 99 मिलीमीटर बारिश हुई है.
महाराष्ट्र में बढ़ा है यह संकट
भारतीय मौसम विभाग में क्लाइमेंट ऐप्लिकेशन ऐंड यूजर इंटरफेस के पुलक गुहा ठाकुरता ने बताया कि रिसर्च के मुताबिक पिछली सदी में पश्चिमी भारत में प्री-मॉनसून बारिश में काफी तेजी से गिरावट आई है. खासतौर पर महाराष्ट्र में यह समस्या और बढ़ी है. हालांकि अब तक पूरे देश में इस तरह का ट्रेंड देखने को नहीं मिला है. यह एक तरह से मानसून सीजन में बदलाव का पैटर्न है. बदरा की धीमी चाल मौसम विभाग के अनुसार मानूसन भले ही 6 जून तक केरल पहुंच जाएगा लेकिन इसकी धीमी चाल का असर देशभर में देखने को मिलेगा.
शुरुआती 10 दिनों में मानसूनी बारिश सामान्य से कम रहने का अनुमान है. हालांकि मानसून तेजी से बदलता है, लेकिन अगर पश्चिमी तट पर उसकी प्रगति तेज रही तो मानसून आने में ज्यादा देरी नहीं होगी.
- मानसून की देरी बढ़ाई चिंता, तप रहा देश का कोना-कोना
- 1954 में दर्ज की गई थी 93.9 मिमी बारिश
- 2009 में मार्च, अप्रैल और मई में हुई 99 मिमी बारिश
- 2012 में यह आंकड़ा 90.5 मिमी रह गया
- अब 2019 में सिर्फ 99 मिमी बारिश दर्ज की गई है