यूपी में दो हिन्दू ह्रदय सम्राटों के बीच होगी लड़ाई, प्रवीण तोगड़िया अयोध्या या वाराणसी से उतरेंगे मैदान में
By विकास कुमार | Published: February 11, 2019 01:07 PM2019-02-11T13:07:37+5:302019-02-11T13:26:20+5:30
प्रवीण तोगड़िया के अयोध्या से लोकसभा चुनाव लड़ने से विश्व हिन्दू परिषद का एक धड़ा उनके साथ जा सकता है. हाल; ही में जिस तरह से मोहन भागवत का कुंभ के धर्म संसद में विरोध किया गया उससे तो यही लगता है कि विहिप का एक तबका अब संघ और बीजेपी से अप्रत्याशित रूप से नाराज है.
विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी के साथ इंटरव्यू के दौरान इस बात पर जोर दिया है कि वो अयोध्या से आगामी लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने इसके साथ ही कहा है कि वो वाराणसी से भी लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन उनकी इच्छा अयोध्या से ही लड़ने का है. प्रवीन तोगड़िया इन दिनों नरेन्द्र मोदी और संघ से राम मंदिर के मुद्दे को लेकर नाराज चल रहे हैं.
तोगड़िया बन सकते हैं चुनौती
प्रवीण तोगड़िया के लोकसभा चुनाव लड़ने से बीजेपी को यूपी में झटका लग सकता है. हिन्दू ह्रदय सम्राट के नाम से मशहूर प्रवीण तोगड़िया की सीधी टक्कर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से होगी जो मौजूदा वक्त में बीजेपी के हिन्दू ह्रदय सम्राट हैं. प्रवीण तोगड़िया के अयोध्या से लोकसभा चुनाव लड़ने से विश्व हिन्दू परिषद का एक धड़ा उनके साथ जा सकता है. हाल; ही में जिस तरह से मोहन भागवत का कुंभ के धर्म संसद में विरोध किया गया उससे तो यही लगता है कि विहिप का एक तबका अब संघ और बीजेपी से नाराज हो चुका है और राम मंदिर पर टालमटोल की रणनीति अपनाने से नाराज ये लोग प्रवीण तोगड़िया के पाले में जा सकते हैं.
राम मंदिर और किसानों के मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरने वाले तोगड़िया आज खुद का संगठन स्थापित कर चुके हैं. कुछ जगहों पर उन्हें समर्थन भी मिल रहा है. लेकिन उनके काफिले में जो भीड़ है वो विश्व हिन्दू परिषद और संघ के मिजाज वाला है तो ऐसे में इस भीड़ से तोगड़िया कितनी देर तक उम्मीद कर सकते हैं, ये उन्हें भलीभांति पता होगा.
तोगड़िया का किसान प्रेम
प्रवीण तोगड़िया बार-बार राम मंदिर का मुद्दा उठा रहे हैं. अगर बीजेपी ने इस मुद्दे पर कोई पॉजिटिव एक्शन ले लिया तो तोगड़िया का काफिला मुद्दाविहीन हो जायेगा. इसी को मद्देनजर रखते हुए उन्होंने किसानों के मुद्दे को भी बराबर का सम्मान दिया है और उसके साथ ही नौजवानों की बेकारी. क्योंकि मौजूदा वक्त की राजनीति में किसान और युवा का होर्डिंग उठाये बिना लक्ष्य को भेदना तो दूर उसके पास पहुंचना भी नामुमकिन है.
नरेन्द्र मोदी और प्रवीण तोगड़िया आज दो विपरीत धाराएं
कभी मोदी और तोगड़िया की प्रगाढ़ दोस्ती का कोई दूसरा उदाहरण जल्दी मिलता नहीं था. संघ के विचारों को दोनों ने गुजरात के हर कोने तक पहुंचाया. नरेंद्र मोदी के बीजेपी में जाने के बाद भी इनके संबंध बने रहे.
जब अपने राज्य से ही मोदी को राजनीतिक वनवास दे दिया गया तो गुजरात में वो प्रवीण तोगड़िया ही थे जिन्होंने मोदी की वापसी सुनिश्चित करने के लिए अपने स्तर पर उनका भरपूर सहयोग किया. कभी गुजरात की भाजपा सरकार में बड़े स्तर पर दखल रखने वाले तोगड़िया को गुजरात दंगे के बाद नरेन्द्र मोदी ने धीरे-धीरे उन्हें ठिकाना लगाना शुरू कर दिया था और एक समय ऐसा आया जब नरेन्द्र मोदी की विशाल छवि के सामने प्रवीण तोगड़िया विलुप्त हो गए.
बात अगर विचारधारा की है तो नरेन्द्र मोदी और प्रवीण तोगड़िया दोनों ने एक ही 'स्कूल ऑफ थॉट' से डिग्री प्राप्त किया है. लेकिन राजनीतिक मजबूरियां और महत्वाकांक्षाएं दोनों को समय के साथ विपरीत दिशा में बहा ले गई. लेकिन इतना तय है कि अगर प्रवीण तोगड़िया ने लोकसभा का चुनाव लड़ा तो यह बीजेपी और नरेन्द्र मोदी के लिए शुभ संकेत नहीं होंगे, क्योंकि ऐसे में हिन्दू वोटों का बंटवारा हो सकता है. भाजपा को उत्तर प्रदेश में नुकसान उठाना पड़ सकता है.